ब्लॉग

नेगी दा ने दिया युवाओं की पीड़ा को स्वर, सत्ता को चेताया भी

दिनेश शास्त्री
पृथक राज्य गठन के बाद से ही उत्तराखंड में नौकरियों की बंदरबांट होती रही। प्रजा प्रजा ही रह गई और कांग्रेस तथा भाजपा ने बारी बारी से अपने बेटे – बहुओं, दामाद, समधी, भांजे – भांजियों, यहां तक की दूर बिहार के रिश्तेदारों को भी उत्तराखंड लाकर सरकारी नौकरियां बांट दी। सब कुछ व्यवस्थित चल रहा था। दिखावे के लिए अधीनस्थ सेवा चयन आयोग, लोक सेवा आयोग तथा अन्य उपक्रमों से भर्ती की प्रक्रिया दिखाई जा रही थी, किंतु 2022 का साल आया तो पानी सिर के ऊपर से गुजर गया। नतीजतन युवा सड़कों पर उतर आए। भर्तियों में धांधली तो राज्य स्थापना के पहले दिन से हो रही थी। इस बार नकल कराने का खुलासा हुआ तो पता चला 2015 से यह सिलसिला अनवरत जारी है।

सरकारी नौकरियों में अपनों को लाभान्वित करने और नकल के जरिए बिक्री व्यवस्था के चलते योग्य लोगों के वंचित रह जाने के घावों से उत्तराखंड कराह रहा हैं। हर भर्ती में झोल ही झोल दिख रहे हैं। इस हताशापूर्ण स्थिति को देख हर कोई आक्रोशित और विचलित है। ऐसे में कोई संस्कृतिकर्मी, रचनाकार और लोक का मर्मज्ञ चुप कैसे रहता? यही कारण है कि पहाड़ के युवाओं की वेदना और सत्ता के मिजाज को उकेरता गढ़ रत्न नरेंद्र सिंह का लोकतंत्र शीर्षक से रचा गीत दो दिन में पहाड़ के कोने कोने तक पहुंच गया है। कथ्य, तथ्य, सत्य और बेजोड़ शिल्प के जरिए नेगी जी ने जो गीत परोसा, वह उनकी जनपक्षधरता का प्रमाण तो है ही, सत्ता प्रतिष्ठान को चेताने का उपक्रम भी है।
गीत के कुल छह पदों का भाव कुछ इस प्रकार है –
लोकतंत्र में हम प्रजा के प्रजा ही रह गए और आप जनसेवक कहलाने वाले राजा बन गए हो। 1।।
लोकतंत्र की यह विडंबना ही तो है कि जनता सड़क पर उतर कर भ्रष्टाचार के विरुद्ध संघर्ष कर रही है और सत्ताधीशों आप भ्रष्टाचार के साझीदार बन गए हो।2।।
राज्य स्थापना आंदोलन के दौरान सबने यही तो सोचा था कि हमारा राज्य फलेगा, फूलेगा, सब चैन से खायेंगे, सुखी होंगे लेकिन आपने तो कच्चे फल ही खाने शुरू कर दिए। बैकडोर, शॉर्टकट नकल जैसे तरीकों से अपनों को मलाई देने लग गए और योग्य युवाओं को घर बैठने के लिए विवश कर दिया है। यही आपका लोकतंत्र है?। 3।।
तुम्हारे ही बाल बच्चे (बेटे – बहू), परिजन, स्वजन ही उत्तराखंड में नौकरियों के योग्य पाए जा रहे हैं, हम तो न काम के, न काज के दुश्मन अनाज के साबित हुए हैं। 4।।
नेता जी आपने करना धरना कुछ नहीं है, आप सिर्फ भौपू बजाते हो, किसका भौंपू बने हो, आप जानते हो, बताना क्या है, सच में आप बाजा बन कर रह गए हो। लोकतंत्र की यही तो विडंबना है। 5।।
सत्ताधीशों और सुनो! हम लोग अलसा गए थे, हमारी उदासीनता कहो या लापरवाही, आप मनमर्जी पर उतर आए लेकिन याद रखना, अब आपकी धांधलेबाजी ज्यादा दिन तक चलने नहीं देंगे। अब हम जाग गए हैं। हम आपको तख्त और ताज देते रहे किंतु उसे छीन भी सकते हैं। लोकतंत्र की वास्तव में स्थापना हम ही करेंगे, आप देखते रहना। 6।।
हमारी आज की व्यवस्था के सत्य और शिल्प का बखान करते इस जनगीत में नेगी जी ने व्यवस्था के मठाधीशों को खूब खरी खोटी सुनाई है और साथ ही समूचे तंत्र की बखिया भी उधेड़ कर रखी है। प्रदेश के लोगों ने इस गीत को हाथों हाथ लिया। आखिर यह उनकी पीड़ा को जो दर्शाता है। लोकतंत्र की विडंबना और नेता – अफसरों का चाल चलन किसी रचनाकार को जब अंदर तक कचोटता है तो निसंदेह यही स्वर फूटते हैं और लोगों की भावनाओं का प्रस्फुटन इसी तरह होता है। यह उलाहना नहीं बल्कि चेतावनी है कि जनता को हाशिए पर धकेल कर आप अपनों को लाभ तो पहुंचा सकते हो किंतु उसकी कीमत भी आपको ही चुकानी होगी, इस बात को भूल न जाना। इसी का नतीजा है कि इंटरनेट प्लेटफार्म पर मात्र एक दिन में इस गीत को 80 हजार से अधिक लोग देख चुके हैं और हर गुजरते घंटे के साथ यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है।
इस जनगीत के मूल स्वर को आप भी पढ़ें, देखें, सोचें और मनन करें तो कमोबेश आपको यकीन हो जायेगा कि नेगी जी ने अपने कंठ से राज्य आंदोलन के दौरान पहाड़ के लोगों के भावों को व्यक्त किया था, कुछ उसी अंदाज में झकझोरते हुए लोगों को निंद्रा से जगाने की कोशिश की है। जनगीत के मूल स्वर इस तरह हैं –

हम त प्रजा का प्रजा हि रैग्याँ लोकतंत्र मा –
तुम जनसेवक राजा हवेग्यां लोकतंत्र मा।।

जनता सड़क्यूंमा भ्रष्टाचार्यों से लडणी अर तुम
भ्रष्टाचार मा साझा हवेग्यां लोकतंत्र मा।।

फलफूलालों जब राज्य हमारु सब चैन से खाला फल लगिनी तुम काचा खैग्याँ लोकतंत्र मा।।

तुमारै ननतिन परिजन छन यख नौकर्या काबिल हम बल काम न काजा हवेग्यां लोकतंत्र मा।।

करणी धरणी कुछ नी तुम बस भोंपु बजौदां नेताजि तुम त बाजा हवेग्यां लोकतंत्र मा।।

अब नि चल्ण द्योला हम तुमारी धाँधलबाजी अळंसे गेछा, ताजा हवेग्यां लोकतंत्र मा।।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!