गढ़वाली कविता के सशक्त हस्ताक्षर कवि गिरीश सुंदरियाल यानी नाम एक – काम अनेक
-दिनेश शास्त्री-
एक व्यक्ति एकसाथ कितनी भूमिकाएं निभा सकता है? यह सवाल आपको थोड़ा अटपटा लग सकता है किंतु यह सवाल न सिर्फ कई खिड़कियां खोलता है, बल्कि नई पीढ़ी के लिए संभावनाओं के द्वार भी खोलता है। हम बात कर रहे हैं गढ़वाली कविता के सशक्त हस्ताक्षर गिरीश सुंदरियाल की।
वैसे गिरीश सुंदरियाल को सिर्फ कवि बताना उनके साथ नाइंसाफी होगी और साथ ही उनके व्यक्तित्व को कमतर आंकने जैसा भी। उन्हें अगर कवि माना जाता है तो एक योग्य शिक्षक के रूप में भी उससे अधिक जाने जाते हैं। इसके अलावा अभिनय की बात करें तो उस विधा में भी वे पीछे नहीं हैं। उत्तराखंड आंदोलन पर बनी तेरी सौँ तथा कई अन्य आंचलिक फिल्मों में अपनी अभिनय क्षमता का परिचय भी दे चुके हैं।
स्कूल के पाठ्य सहगामी क्रियाकलापों में उनकी अग्रणी भूमिका छात्र छात्राओं के मनोबल को न सिर्फ बढ़ाती है बल्कि वे उनसे कुछ न कुछ नित नया सीखते हैं। यही नहीं गिरीश सुंदरियाल ज्योतिष की विधा के भी अच्छे जानकार तो हैं ही, पोरोहित्य कर्म में भी निष्णात हैं। यानी जरूरत पड़ने पर हर जगह भूमिका निर्वहन कर सकते हैं।
यह अलग बात है कि ज्योतिषीय गणना और पोरोहित्य भूमिका के लिए समय निकालना उनके लिए संभव नहीं होता किंतु ज्ञान और कर्म के धरातल पर वे कहीं पीछे नहीं हैं। इस तरह उन्हें निरंतर साहित्य सृजन, रंगमंच, सामाजिक, सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय देख आश्चर्य तो होता ही है कई बार ईर्ष्या भी होती है कि एक व्यक्ति एक साथ इतनी सारी भूमिकाएं कैसे निभा सकता है।
विद्यालयी गढ़वाली भाषा पाठ्यक्रम के लेखक के तौर पर भी उन्हें जाना जाता है तो उत्तराखंड मुक्त विश्वविद्यालय के गढ़वाली भाषा सर्टिफिकेट कोर्स के लेखक के रूप में उनके नाम उपलब्धि दर्ज है।
इन्हीं सब विशिष्टताओं के मद्देनजर अभी पिछले दिनों गिरीश सुंदरियाल को उत्तराखंड भाषा संस्थान ने भजन सिंह “सिंह” साहित्य गौरव सम्मान से अलंकृत किया।
यद्यपि यह पहला मौका नहीं है कि उन्हें यह सम्मान मिला। लोकभाषा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य के लिए उन्हें पहले भी उत्तराखंड भाषा संस्थान द्वारा गोविंद चातक सम्मान से विभूषित किया जा चुका है। इसके अलावा स्वतंत्रता सेनानी दयाल सिंह स्मृति सम्मान तथा अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान द्वारा उन्हें विद्या भारती सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है किंतु गिरीश सुंदरियाल को इस बार का साहित्य गौरव सम्मान कई मायनों में उन्हें समकालीन साहित्यकारों से अलग खड़ा करता है।
गढ़वाली कविता में गीतकार के रूप में उनकी विशिष्ट छवि है। कवि सम्मेलन के मंच पर उनकी उपस्थिति एक नए लोक का भ्रमण कराती है तो लोक के सहज, सरल और भावनात्मक पक्ष के दर्शन हो जाते हैं। श्रृंगार के रस में डूबी उनकी कविताएं श्रोताओं को विभोर किए बिना नहीं रहती। इस दृष्टि से भी उन्हें सुकुमार कवि के रूप में भी जाना जाता है। मौल्यार, अन्वार, सजिलु सिंगार और पैतुल्यु पराज़ कविता संग्रह पढ़ कर आप सहज ही उनकी लेखन क्षमता, सहज दृष्टि और कोमलतम भावनाओं के प्रतिबिंब देख सकते हैं।
हालांकि गीत के साथ गजल और कथा विधा में भी उनका सृजन निरंतर जारी है। लोकगाथाओं के मामले में उनका विशिष्ट काम है और शीघ्र ही उनकी पुस्तक आने वाली है। उनका कविता संग्रह अनवार, मौल्यार काफी चर्चित रहे हैं। उनके लिखे नाटक कब खुललि रात की भी खूब चर्चा हुई। गीति काव्य में उड़ी जा आगास, होलि स्वां, बाल कविता संग्रह कुटमणि, गीत संग्रह सजिलु सिंगार और पैतुल्यु पराज के अलावा गढ़वाली पत्रिका चिट्ठी पत्री, कविता संग्रह अंग्वाल, गढ़वाली कथा संग्रह हुंगरा और विद्यालय पत्रिका वसुंधरा के संपादन में उन्होंने अपने कौशल, बहुमुखी प्रतिभा और क्षमता का शानदार प्रदर्शन किया है।
पौड़ी जनपद के चौबट्टाखाल प्रखंड के चुरेडगौ को गिरीश सुंदरियाल ने गौरवान्वित तो किया ही है, गढ़वाली भाषा की श्रीवृद्धि में भी अपने ढंग से अतुलनीय योगदान दिया है।