सिद्धपीठ अनुसूया देवी: सूनी गोद भरने वाली माता के दरबार में लगा बरोहियो का तांता
-महिपाल गुसाईं-
चमोली जिला मुख्यालय गोपेश्वर से मात्र 18 किमी दूर अत्रि मुनि आश्रम यानी सिद्धपीठ अनुसूया देवी में निसंतानों की सूनी गोद को किलकारियों से गुंजाने वाली पुत्रदायिनी माता अनुसूया देवी की आराधना का पर्व सोमवार को शुरू हो गया।
समुद्र तल से 8 हजार फीट ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर बेहद पवित्र स्थल के रूप में विद्यमान है। माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा निर्मित यह मंदिर तमाम प्राकृतिक झंझावातों को सह कर भी अडिग है। अलबत्ता समय समय पर इसका जीर्णोद्धार भी होता रहा है।
जिला मुख्यालय से 13 किमी दूर मंडल कस्बे से पांच किमी चढ़ाई चढ़ने के बाद माता अनुसूया का दिव्य मंदिर सघन वन और उच्च पर्वत श्रृंखला के मध्य अवस्थित है। प्राकृतिक सौंदर्य की दृष्टि से यह अनुपम तीर्थ है। क्षेत्र के वरिष्ठ नागरिक और पूर्व सैनिक धीरेंद्र सिंह बिष्ट के अनुसार इस वर्ष तीन सौ के करीब निसंतान दंपतियों ने माता अनुसूया के दरबार में मन्नत मांगी है। लोक मान्यता है कि संतान प्राप्ति की मनौती मात्र से निसंतान दंपतियों की पुत्ररत्न की प्राप्ति होती आ रही है। वे बताते हैं की जहां विज्ञान की सीमाएं समाप्त हो जाती हैं, वहां से अध्यात्म शुरू होता है और माता अनुसूया उसी का प्रतीक है। इसी लोक विश्वास के चलते अब तक हजारों सूनी गोदें मातानुसूया ने भर दी हैं। पौराणिक उल्लेखों के अनुसार महर्षि अत्रि की पत्नी और योगेश्वर दतात्रेय की माता अनुसूया थी। अपने पतिव्रत और सतीत्व के बल पर वे तीनों देवों को बाल रूप में ले आई थी। श्रीमद भागवत और पौराणिक कथाओं में इस प्रसंग का विस्तार से वर्णन किया गया है कि भगवती श्री लक्ष्मी जी, श्री सती जी और श्री सरस्वती देवी को अपने पतिव्रत धर्म पर अत्यधिक गर्व हो गया था। तीनों को यह अहंकार था कि त्रिलोक में उनसे बढ़ कर कोई स्त्री पतिव्रता नहीं है। देवर्षि नारद इस प्रसंग के दृष्टा बनते हैं। एक दिन घूमते हुए महर्षि नारद देव लोक पहुंचे और बारी बारी से तीनों देवियों की बात सुनी। नारद ने उनके समक्ष भगवान अत्रिमुनि की पत्नी अनुसूया के पतिव्रत की प्रशंसा करते हुए उनके सतीत्व को सर्वश्रेष्ठ बताया। इससे आहत तीनों देवियों ने अपने पतियों क्रमश: भगवान विष्णु, महेश और ब्रह्मा से यह हठ किया कि वे किसी भी तरह अनुसूया का पतिव्रत भंग करवा दें। नारी हठ को पूरा करने के लिए तीनों देव साधु वेश में महामुनि अत्रि आश्रम पहुंचे। अत्रि मुनि उस समय कहीं बाहर अनुष्ठान के लिए गए थे। इस पर अतिथि रूप में आए तीनों देवों का सती अनुसूया का अतिथि सत्कार किया। किंतु तीनों देवों ने कहा कि हम तभी आपका आतिथ्य स्वीकार करेंगे, जब आप निर्वस्त्र होकर हमारे सामने आएंगी। इस पर सती अनुसूया ने अपने पति अत्रि मुनि का ध्यान किया और संकल्प लिया कि यदि मेरा पतिव्रत धर्म सत्य है तो ये अतिथि छह छह माह के शिशु बन जाएं। तीनों देवों पर संकल्प का जल छिड़कते ही तीनों देव शिशु की तरह रूदन करने रोने लगे।
माता अनुसूया ने उन्हें गोद में लेकर स्तनपान कराया और तीनों अनुसूया के पुत्र रूप ही हो गए। यह बात जब तीनों देव पत्नियों तक पहुंची तो वे चिंतित हो उठी। इस पर तीनों मां अनुसूया के पास आई और उनसे अपने अपने पतियों को मुक्त करने की याचना की। नारी हृदय आखिर कोमल होता है। माता सती ने तीनों देवियों की अनुनय से पसीज कर अपने पतिव्रत्य के बल पर उन्हें पूर्ववत प्रदान कर दिया।इस आप क्षमा याचना के साथ आभार जताते हुए तीनों देवियों ने माता अनुसूया से वर मांगने को कहा। बाद में ये तीनों देव माता अनुसूया गर्भ से उत्पन्न हुए। श्रीमद्भागवत के अनुसार ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा तथा विष्णु अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। और माता अनुसूया पुत्रदायिनी के रूप में जानी जाने लगी। तब से ही प्रति वर्ष यह अत्रि मुनि आश्रम में दत्तात्रेय जयंती मेला लगता है, जिसने निसंतान दंपती माता अनुसूया से पुत्र प्राप्ति की कामना करती हैं और अभी तक का प्रमाण और विश्वास यही है कि साल भर के भीतर सुनी गोद में किलकारी गूंजती हैं।
दत्तात्रेय मेले में तीनों देवियों के स्वरूप के तौर पर खल्ला गांव में मां अनुसूया (ब्रह्माणी स्वरूप), बणद्वारा गांव में ज्वाला (वैष्णवी स्वरूप में) तथा कठूड में ज्वाला देवी (रूद्राणी स्वरूप) में मान्यता मिली। बणद्वारा की वैष्णवी की ही प्रतिमूर्ति देवलधार तथा सगर में प्रतिष्ठापित हैं। दत्तात्रेय जन्म जयंती पर सभी देव डोलियां अनुसूया आश्रम पहुंचती हैं। इस मौके पर भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ता है। इस वर्ष सोमवार 25 दिसंबर व मंगलवार 26 दिसंबर को दत्तात्रेय जन्म जयंती मेला है तो लोगों की भारी भीड़ इस आश्रम में जुटी हुई है।
माता अनुसूया का दूसरा नाम पुत्रदायिनी-
पौराणिक मान्यता के अनुसार अनुसूया मंदिर के गर्भ गृह व अहाते में रात्रिभर जाग कर तप करने से निसंतानों की कोख हरी हो जाती हैं। रात को जागरण के बीच यदि झपकी अथवा नींद के झोंके में कोई स्वप्न दिख गया तो मान लिया जाता है कि करुण की प्रतिमूर्ति माता अनुसूया ने उनकी प्रार्थना सुन ली है। इस तीर्थ में सदियों से रात्रि जागरण की यह परंपरा निरंतर जारी है और माता अनुसूया को पुत्रदायिनी देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। यही कारण है कि हर तरफ से निराश निसंतान दंपती संतान की कामना से यहां दत्तात्रेय जयंती मेले पर आकर बरोही के रूप में रात्रि जागरण करते हैं और प्रतिवर्ष यह संख्या बढ़ती जा रही है। इस बार बरोहियों का आंकड़ा तीन सौ पार हो जाना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।