राजनीति

हरिद्वार जिला पंचायत : कांग्रेस मुंह छुपाने लायक भी नहीं रही

–दिनेश शास्त्री –
हरिद्वार जिला पंचायत अध्यक्ष पद के चुनाव का कार्यक्रम घोषित हो गया है और इसके साथ ही नामांकन प्रक्रिया भी शुरू हो गई है। 14 अक्टूबर को हरिद्वार को नया जिला पंचायत अध्यक्ष भी मिल जायेगा, लेकिन कांग्रेस इस चुनाव में ढूंढे भी नहीं दिख रही है। जाहिर है इस चुनाव में पहली बार कांग्रेस निरीह स्थिति में है। 44 सदस्यों वाले सदन में उसकी इतिहास की अब तक की न्यूनतम हैसियत है। उसके पास कुल चार सदस्य हैं। यानी अंगुलियों पर गिनने लायक संख्या भी नहीं।
निरंजन पुर, बढ़ेडी राजपुतान, गढ़ और हजाराग्रांट से उसके प्रत्याशी जीत दर्ज कर पाए हैं, इसके विपरीत प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा 26 सदस्यों के साथ मैदान में है। कांग्रेस से बेहतर स्थिति में तो बसपा रही है। विपरीत हालात के बावजूद वह 5 सदस्य निर्वाचित करवाने में सफल रही। और तो और एक सीट जीत कर आम आदमी पार्टी कांग्रेस के मुकाबले खड़ी होने में सफल रही है। बेहतर स्थिति में देखें तो आठ निर्दलीय हैं लेकिन उनके पास इस समय यह विकल्प नहीं है कि सौदेबाजी कर सकें, क्योंकि भाजपा को इतना समर्थन प्राप्त है कि निर्दलीयों की हैसियत मापने की जरूरत ही नहीं रही।
यह पहला मौका है जब कांग्रेस जिला पंचायत चुनाव में फिसड्डी दिख रही है जबकि चुनाव से पहले पार्टी टिकट के लिए कांग्रेस में ही सबसे ज्यादा मारामारी दिख रही थी। तब लग रहा था कि विधानसभा चुनाव की हार का जख्म हरिद्वार जिला पंचायत चुनाव में बेहतर प्रदर्शन से भर जाएगा लेकिन हुआ उल्टा। यहां भी कांग्रेस चारों खाने चित्त होकर रह गई। यह स्थिति क्यों हुई, निसंदेह कांग्रेस के रणनीतिकार जरूर सोच रहे होंगे, उन लोगों से भी पूछा जा रहा होगा, जिनके कहने पर टिकट बांटे गए या जिन्होंने टिकट के लिए पार्टी पर दबाव बनाया होगा।
निसंदेह देश और प्रदेश की बड़ी पार्टी कांग्रेस के लिए इस चुनाव में शर्मनाक हार से दो चार होना पड़ा है। पार्टी के जो नेता ताल ठोक रहे थे कि हरिद्वार जिला पंचायत चुनाव के जरिए वे सत्तारूढ़ भाजपा की चूलेँ हिला देंगे, वे अब कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। उनका अंतर्ध्यान होना काबिलेगौर है।
कांग्रेस को अब आत्मचिंतन करना होगा कि आखिर क्यों लगातार वह रसातल की ओर जा रही है जबकि उसके नेता राहुल गांधी देश को एकसूत्र में जोड़ने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हुए पसीना बहा रहे हैं और यहां पार्टी के कर्णधार नितांत जमीनी स्तर पर लड़े जाने वाले चुनाव में पार्टी की साख पर बट्टा लगा बैठे हैं। सवाल जवाबदेही का भी है। पूछा जा सकता है कि अपने लोगों को टिकट दिलाने की पैरवी करने वाले नेताओं से कैफियत क्यों नहीं पूछी जा रही है कि इस बदतर हालत के लिए वह जिम्मेदारी क्यों नहीं ले रहे हैं।
आमतौर पर माना जाता है कि पंचायत चुनावों पर काफी कुछ सत्ता की छाया होती है। इस कारण जिस दल की सरकार होती है, लोगों का झुकाव उस दल का पलड़ा भारी रहता है लेकिन यह पूर्ण सत्य नहीं है। हम अतीत में देख चुके हैं कि पूर्ण बहुमत के अभाव में निर्वाचित सदस्यों को किस तरह भारत भ्रमण कराया जाता रहा है और उस कसरत में कितने संसाधन खर्च किए जाते रहे हैं लेकिन हरिद्वार में तो इसकी भी गुंजाइश नहीं रही। कांग्रेस की कमजोरी ने भाजपा को क्लीन स्वीप की स्थिति उपलब्ध करवा दी। इस कारण उसके पास नहाने और निचोड़ने जैसी स्थिति भी नहीं रही। कौन जानता है जो चार लोग चुन कर आए हैं, वे दो चार महीने कांग्रेस में टिके भी रहेंगे। आखिर उन्होंने भी अपने इलाके में कुछ काम करके दिखाना है, काम कैसे हो सकते हैं, यह बताने की जरूरत नहीं है। कदाचित आजादी के बाद से लेकर अब तक कांग्रेस के लिए यह सबसे बुरा दुस्वप्न है।
हरिद्वार जहां विधानसभा चुनाव में उसने पूरे प्रदेश में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन किया, पंचायत चुनाव में ढेर हो गई। क्या इससे उसके नेतृत्व पर सवाल नहीं खड़ा होता, यह उसे देखना होगा। यह भी सच है कि प्रतिद्वंदी भाजपा यहां कभी इतनी मजबूत नहीं रही, बेशक जोड़ तोड़ से वह अपना अध्यक्ष बनवाती भी रही लेकिन एकतरफा जीत उसके कौशल को तो सिद्ध करती ही है। क्या कांग्रेस के नेताओं को यह नजर आ रहा होगा? मुझे तो संदेह है। अगर आपको संदेह हो तो कांग्रेस के नीति नियंताओं से पूछ सकते हैं। जो भी हो जिस हरिद्वार सीट से 2024 में संसद पहुंचने का कुछ लोग मंसूबा पाले हुए हैं, हरिद्वार जिला पंचायत चुनाव ने खतरे की घंटी बजा दी है।

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