राष्ट्रीयसुरक्षा

साइबर एवं अंतरिक्ष से संबंधित उभरते खतरों से निपटने के लिए भारत को अनिवार्य रूप से उन्नत प्रौद्योगिकी में प्रगति करनी चाहिए

The Raksha Mantri stated that Science & Technology and methods of warfare are evolving at a rapid pace and there is a need to make fast progress in advanced technology to deal with non-kinetic or contactless warfare, which the world today is witnessing, in addition to the conventional methods. “If our adversary possesses more advanced technologies, it can be a cause of concern for us in the future. There is an urgent need to move fast towards technological advancements in line with the changing times. This responsibility lies with our institutions. Defence sector is not a stagnant lake, but a flowing river. Just as a river, we need to keep surging ahead overcoming obstacles,” he said.

—uttarakhandhimalaya.in —-

नयी दिल्ली, 15  मई।  रक्षा मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने साइबर एवं अंतरिक्ष से संबंधित उभरते खतरों से निपटने में भारत को पूरी तरह सक्षम बनाने के लिए अनुसंधान संस्थानों को उन्नत प्रौद्योगिकी से संबंधित कार्यकलापों में तेजी लाने और प्रगति अर्जित करने के लिए प्रेरित किया है। श्री राजनाथ सिंह ने 15 मई  को महाराष्ट्र के पुणे स्थित डीआईएटी के 12वें दीक्षांत समारोह के दौरान अनुसंधान संस्थानों को संबोधित करते हुए वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में राष्ट्रों के बीच निरंतर बदलते राजनीतिक और आर्थिक समीकरणों पर अंतर्दृष्टि साझा की।

रक्षा मंत्री ने कहा कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा युद्धकला के तरीके तेजी से विकसित हो रहे हैं और गैर – कानेटिक या संपर्करहित युद्धकला, जिसे आज दुनिया देख रही है, से निपटने के लिए पारंपरिक पद्धतियों के अतिरिक्त उन्नत प्रौद्योगिकी में तेजी से प्रगति करने की आवश्यकता है  उन्होंने कहा ‘‘ अगर हमारे शत्रुओं के पास अधिक उन्नत प्रौद्योगिकी है तो यह हमारे लिए भविष्य में चिंता का एक कारण हो सकता है। बदलते समय के अनुरुप प्रौद्योगिकीय उन्नति की दिशा में तेजी से बढ़ने की तत्काल आवश्यकता है। यह उत्तरदायित्व हमारे संस्थानों का है। रक्षा सेक्टर कोई ठहरी हुई झील नहीं बल्कि एक बहती हुई नदी है। किसी नदी की ही तरह, हमें बाधाओं को पार करते हुए आगे बढ़ने की आवश्यकता है।

अत्याधुनिक प्रौद्योगिकीयों तथा रक्षा अनुसंधान के बीच गहरे संपर्क को रेखांकित करते हुए, श्री राजनाथ सिंह ने डीआईएटी जैसे संस्थानों से ऐसे नए नवोन्मेषणों को प्रस्तुत करने की अपील की जो न केवल रक्षा क्षेत्र के लिए उपयोगी हों बल्कि नागरिकों के लिए भी समान रूप से  प्रभावी हों। रक्षा क्षेत्र में ‘ आत्मनिर्भरता ‘ अर्जित करने के सरकार के विजन के बारे में विस्तार से बताते हुए, रक्षा मंत्री ने इसे सबसे महत्वपूर्ण घटक बताया जो देश की सुरक्षा तंत्र को मजबूत करने के लिए आवश्यक है बहरहाल, उन्होंने स्पष्ट किया कि आत्मनिर्भरता का अर्थ अलगाव नहीं है। उन्होंने कहा कि आज विश्व एक वैश्विक गांव बन गया है और अलगाव संभव नहीं है। आत्म निर्भरता का लक्ष्य  मित्र देशों की सुरक्षा आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए हमारी अपनी क्षमता के साथ आवश्यक उपकरण/मंचों के निर्माण के द्वारा सशस्त्र बलों की आवश्यकता की पूर्ति करना है।

श्री राजनाथ सिंह ने जोर देकर कहा कि रक्षा उपकरणों के आयात पर निर्भरता भारत की रणनीतिक स्वायतत्ता के लिए एक बाधा बन सकती है और यही मुख्य वजह है कि प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में सरकार इस सेक्टर में आत्म निर्भरता हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। उन्होंने कहा,‘‘ आत्मनिर्भर बने बिना, हम अपने राष्ट्रीय हितों के अनुरुप वैश्विक मुद्वों पर स्वतंत्र निर्णय नहीं ले सकते। हम जितना अधिक उपकरण आयात करते हैं, इसका उतना ही अधिक प्रतिकूल प्रभाव हमारे व्यापार संतुलन पर पड़ेगा। हमारा लक्ष्य शुद्ध आयातक बनने के बजाये शुद्ध निर्यातक बनना है। यह न केवल हमारी अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाएगा बल्कि इससे  रोजगार के अवसर भी बढेंगे।

रक्षा मंत्री ने आत्म निर्भरता को बढ़ावा देने के लिए रक्षा मंत्रालय द्वारा उठाये गए कई कदमों को सूचीबद्ध किया जिसमें 411 प्रणालियों/उपकरण से निर्मित्त सशस्त्र बलों के लिए चार सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियों की घोषणा शामिल है। इसके अतिरिक्त, डीपीएसयू के लिए चार सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियां जारी की गई हैं, जिनमें कुल 466 रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण लाइन रिप्लेसमेंट यूनिट / स्पेयर्स और कंपानेंट शामिल हैं। उन्होंने इन कदमों को रक्षा क्षेत्र में ‘ आत्मनिर्भरता ‘ अर्जित करने के लिए सरकार की दृढ़ प्रतिबद्धता का प्रमाण बताया।

श्री राजनाथ सिंह ने नवोन्मेषण के क्षेत्र में सरकार द्वारा दिए जा रहे विशेष जोर पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि भारत स्टार्टअप्स के लिए दूसरा सबसे बड़ा हब है और रक्षा मंत्रालय को नियमित रूप से नवोन्मेषी विचार प्राप्त हो रहे हैं। उन्होंने कहा,‘‘ डिफेंस इंडिया स्टार्टअप्स चैलेंज के पिछले सात संस्करणों में 6,000 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए जिससे इंगित होता है कि भारतीय स्टार्टअप्स रक्षा सेक्टर में आत्म निर्भरता की खोज में उल्लेखनीय रूप से योगदान दे रहे हैं। अब और अधिक पैटेंट दायर किए जा रहे हैं जोकि नवोन्मेषी क्षमता का एक संकेत है। ‘‘

सरकार के प्रयासों के कारण दिखाई पड़ने वाले स्पष्ट परिणामों के बारे में रक्षा मंत्री ने कहा कि आज भारत राइफल, ब्रह्मोस मिसाइलों, लाइट कम्बैट एयरक्राफ्ट तथा स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियरसन का खुद से विनिर्माण कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि रक्षा निर्यात हाल के वर्षों में कई गुना बढ़ा है और यह 2014 के 900 करोड़ रुपये की तुलना में बढ़ कर वित्त वर्ष 2022-23 में लगभग 16,000 करोड़ रुपये तक पहुंच गया है भारत कई देशों को रक्षा उपकरण का निर्यात कर रहा है जिसमें से कई देश भारत की विनिर्माण क्षमताओं में रुचि और विश्वास दिखा रहे हैं। श्री राजनाथ सिंह ने 2047 तक एक मजबूत, समृद्ध, आत्म निर्भर और विकसित भारत के प्रधानमंत्री के स्वप्न को साकार करने के लिए देश की पूरी क्षमता का उपयोग करने की अपील की।

दीक्षांत समारोह के दौरान, रक्षा मंत्री जो डीआईएटी के कुलाधिपति भी हैं, ने विभिन्न विषयों के 261 एम. टेक/एम.एससी छात्रों तथा 22 पीएचडी छात्रों सहित 283 छात्रों को डिग्री प्रदान की। कुल 20 स्वर्ण पदक प्रदान किए गए। श्री राजनाथ सिंह ने डीआईएटी में संचालित की गई विभिन्न अग्रिम अनुसंधान गतिविधियों के प्रयोगशाला प्रदर्शनों का भी अवलोकन किया जिनमें फ्रीस्पेस इंटैंगलमेंट डिस्ट्रिब्यूशन, डीआईएटी में किसी स्टार्टअप द्वारा विकसित बायोमेडिकल हेल्थ-केयर डिवाइस, न्यूक्लियर डायमंड बैटरी, ड्रोन इंटरसेप्शन तथा कम्बैट टेक्नालॉजी, टेरा-एचजेड ऐप्लीकेशंस तथा स्पेस टू अंडरसी कम्युनिकेशन शामिल है।

रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव, डीआरडीओ के अध्यक्ष एवं शासी परिषद ( डीआईएटी ) के अध्यक्ष डॉ. समीर वी कामत, रक्षा मंत्री के वैज्ञज्ञनिक सलाहकार डॉ. जी सतीश रेड्डी, डीआईएटी के कुलपति डॉ. सी पी रामनारायणन, विभिन्न डीआरडीओ लैब्स के महानिदेशकों एवं निदेशकों ने भी समारोह में भाग लिया।

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