धर्म/संस्कृतिब्लॉग

गढ़ – कुमों के रिश्ते की सांझी विरासत है पौड़ी की होली

-डॉ योगेश धस्माना

उत्तराखंड में होली की परंपरा का विवरण अठारवी शताब्दी में राजा प्रद्युमन शाह के युग से मिलता है । राज घरानों के समय श्रीनगर , अल्मोड़ा और टेहरी , तीन प्रमुख सांस्कृतिक केंद्र थे । गढ़ – कुमों में राजवंशों की समाप्ति के बाद अल्मोड़ा और पौड़ी नए सांस्कृतिक केंद्रों के रूप में उभरे । पौड़ी में 1860 के बाद डिप्टी कमिश्नर ग्रास्टीन के समय से कुमाऊं और गढ़वाल में संपर्क मार्गों के निर्माण से कुमाऊं का जागरूप वर्ग नौकरी में गढ़वाल आया , जो अपने साथ कुमाऊं की समृद्ध परंपराओं को लेकर भी आए थे ।

इन्हें भारत रत्न , गोबिंद वल्लभ पंत के पिता मनोरथ पंत , चौधरी प्रेम लाल शाह, दुर्गा लाल शाह , खजांची मदन मोहन लाल शाह , श्री राम शाह और अल्मोड़ा के चौधरी समृद्ध परंपराओं के साथ पौड़ी पहुंचे। तब इन लोगों ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर पौड़ी में गढ़ -कुमो के रिश्तों को एक नई पीछे दिलाने का भी काम किया । आगे चलकर होली , दीपावली और रामलीला ने जो लोकप्रियता प्राप्त की उसने गढ़वाल और कुमाऊं के अन्य क्षेत्रों को भी दिशा देने का काम किया ।


अल्मोड़ा का चौधरी , चंपावत से राम लाल वर्मा , चिरंजी लाल शाह का परिवार और खजांची परिवार 1915 में पौड़ी आकार बस गया था । इन लोगों ने लोअर बाजार में चौधरात नाम से बड़े याकूब , हुसैनी और रामजानी परिवार के साथ मिलकर इसे होली का एक प्रमुख स्थल बना दिया । इनके द्वारा पौड़ी में प्रेम सुंदरी भवन कला – साहित्य और व्यापारी गतिविधियों का भी केंद्र बन गया था । इन्ही परिवार के युवकों ने भगवान वर्मा , आलोक शाह , प्रेम प्रकाश शाह , अजीत सिंह नेगी , सुखदेव सिंह रावत , रविदत्त जखवाल , मोहम्मद सिद्दीकी , जब्बार , गौरी शंकर थपलियाल और पौड़ी गांव के संकृतिकर्मियों ने नारायण दत्त थपलियाल और वीरेंद्र कश्यप , दया सागर धस्माना तारी लाल शाह , नरेंद्र सिंह नेगी ने इस गौरवशाली परंपरा को 1980 तक जीवित रखा ।
इससे पूर्व मोहन उप्रेती , बृजेंद्र लाल शाह , सिने जगत के लोकप्रिय कलाकार प्रेमनाथ ने तक पौड़ी में संचालित गतिविधियों को मुक्त कंठ प्रशंशा की थी । वर्तमान में यद्यपि लोक संस्कृति के रंग उड़ने लगे हैं , फिर भी नई पीढ़ी के कलाकार मनोज रावत , पदमेद्र नेगी , इंद्रमोहन चमोली , वीरेंद्र खकरियाल नवांश बहुगुणा इस सांझी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं ।

डॉ योगेश धस्माना

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