खुल गए कपाट : सनातन धर्मावलम्बियों का सर्वोच्च धाम है बद्रीनाथ
–महिपाल गुसाईं –
करोड़ों सनातन धर्मावलम्बियों की आस्था के केंद्र भगवान बद्रीनाथ के कपाट आज गुरुवार प्रातः श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ खुल गए। माना जाता है की शीत काल में भगवन बद्रीनाथ की पूजा उनके गर्भगृह में देवताओं द्वारा की जाती है और ग्रीष्मकाल में नर याने कि मनुष्यों द्वारा की जाती है। सामान्यतः ग्रीष्मकालीन यात्रा नवम्बर माह तक चलती है। बद्रीनाथ एक धाम होने के साथ ही एक तीर्थ भी है जहाँ लोग पितृ विसर्जन के लिए भी आते हैं। इसीलिए इस बैकुंठ धाम भी कहा जाता है। माना जाता है कि पांडवों ने यहीं से सतोपंथ की स्वर्गारोहण किया था । बद्रीनाथ के शीतकालीन गद्दीस्थल पांडुकेश्वर का नामकरण पांडवों के पड़ाव के कारण हुआ।
देश के चार प्रमुख धामों में एक श्री बदरीनाथ धाम नर और नारायण पर्वतों के मध्य तथा हिमाच्छादित नीलकंठ पर्वत की तलहटी में स्थित है। आदि गुरु शंकराचार्य ने जब सनातन धर्म की रक्षा के लिए भारत के चारों कोनों पर जो चार सर्वोच्च धार्मिक पीठें स्थापित की थी उनमें से एक ज्योतिर्पीठ है। आदि गुरु ने ज्योतिर्पीठ की स्थापना के साथ ही बद्रीनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार भी कराया था। उस काल में बौद्ध धर्म अपने चरम पर था।
समुद्र तल से 3100 मीटर की ऊंचाई पर स्थित बद्रीनाथ सबसे सुगम तीर्थ भी है। दिल्ली माणा राष्ट्रीय राजमार्ग पर इस तीर्थ के लिए सड़क और हेली सेवाएं उपलब्ध हैं। बदरीनाथ मंदिर भगवान विष्णु को समर्पित है और माना जाता है कि उन्होंने इस पवित्र स्थान में तपस्या की थी। पौराणिक मान्यता के अनुसार जब देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु को खुले में तपस्या करते देखा तो उन्हें विपरीत मौसम से बचाने के लिए स्वयं बदरी यानी बेर वृृक्ष का रूप धर लिया, इसलिए मंदिर का नाम बदरी नारायण पड़ा।
मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण गढ़वाल के राजाओं ने कराया था। भारत के उत्तर में, हिमालय की बर्फ से ढकी पर्वत श्रृंखलाओं की गोद में बसा पवित्र धाम बदरीनाथ समस्त हिन्दू जाति के लिए परम पवित्र व पूजनीय तीर्थस्थान है । हिंदू शास्त्रों के अनुसार, बदरीनाथ की यात्रा के बिना सारी तीर्थयात्राएं अधूरी मानी जाती हैं। निसंदेह बदरीनाथ धाम एक मनोरम स्थल है। यहां पहुंच कर ही उसकी अनुभूति की जा सकती है। बदरीनाथ मंदिर को लेकर अनेक मान्यतायें हैं। एक मान्यता के अनुसार जब गंगा नदी धरती पर अवतरित हो रही थी, तो गंगा नदी 12 धाराओ में बट गयीं, इसलिए इस जगह पर मौजूद धारा अलकनंदा के नाम से प्रसिद्ध हुई और इस जगह को भगवान विष्णु ने अपना निवास स्थान बनाया और यह स्थान बाद में बदरीनाथ कहलाया। बदरीनाथ मंदिर के बारे में एक मुख्य कहावत यह है कि-
“जो जाऐ बद्री , वो ना आये ओदरी”
अर्थात जो व्यक्ति बद्रीनाथ के दर्शन कर लेता है। उसे माता के गर्भ में नहीं आना पड़ता है। यही बात इस धाम को न सिर्फ विशिष्ट बनाती है बल्कि भव्य और दिव्य भी बनाती है।
इधर धाम को आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित करने के लिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा युद्धस्तर पर कार्य किए जा रहे हैं। यह धाम बहुत जल्दी दिव्य रूप में हमारे सामने होगा। आधुनिक युग की जरूरतों के मुताबिक प्रदेश की पुष्कर सिंह धामी सरकार उत्तराखंड के सभी तीर्थस्थलों को नया रूप देकर उन्हें विश्व के श्रेष्ठ गंतव्य बनाने के लिए प्रयासरत है। बदरीनाथ के साथ ही केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री के साथ कुमाऊं मंडल के मंदिरों के सौंदर्यीकरण पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इन प्रयासों को देखते हुए कहा जा सकता है कि देवभूमि उत्तराखंड सचमुच देवत्व का अहसास दुनिया को कराने के लिए तत्पर है।