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देश पर कितना क़र्ज़ : 2014 54 लाख करोड़ रुपये था और अब 2024 में 205 लाख करोड़ रुपये !

इस आँकड़े पर राजनीति हो रही है कि देश पर क़र्ज़ क़रीब चार गुना बढ़ गया. हम हिसाब किताब करेंगे इस आँकड़े का बिना राजनीति में पड़े 

-Milind Khandekar

Managinf Editor Tak Chanel

पहले तो यह समझते हैं कि देश को क़र्ज़ क्यों लेना पड़ता है? किसी भी देश की सरकार की आमदनी कम होती है और ख़र्च ज़्यादा. घाटा पूरा करने के लिए सरकार क़र्ज़ लेती है. क़र्ज़ सरकार या तो अपने देश में बॉण्ड बेचकर उठाती है या विदेश से. अवधि पूरी होने पर सरकार को पैसे ब्याज समेत लौटाने होते हैं. ये ऐसा दुश्चक्र है कि सरकार इससे बाहर नहीं निकल पाती है. हर साल घाटा पूरा करने के लिए सरकार को और क़र्ज़ लेते रहना पड़ता है. भारत ही नहीं दुनिया के सभी बड़े देश क़र्ज़ में डूबे हुए हैं. पेट्रोलियम कारोबार में लगे कुवैत या ब्रुनेई जैसे छोटे देशों पर ना के बराबर क़र्ज़ है.  इनकी आबादी बहुत कम है और आमदनी बहुत ज़्यादा.

 

अब हल्ला इस बात पर है कि दस साल में भारत पर इतना क़र्ज़ बढ़ गया. अर्थशास्त्री आँकड़े को जस का तस नहीं देखते हैं. इसे देश की GDP के अनुपात में देखा जाता है. देश पर क़र्ज़ GDP के 60% से कम है तो लो रिस्क है. 90% से कम है तो मोडरेट रिस्क और 90% से ज़्यादा है तो हाई रिस्क. भारत पर क़र्ज़ GDP के अनुपात में 81% है. जैसे बैंक यह देखता है लोन देने से पहले कि आपकी आमदनी कितनी है? उम्र कितनी है? उसी तरह देश के मामले में सेहत जाँचने का पैमाना GDP की तुलना में क़र्ज़ का अनुपात है.

 

IMF की रिपोर्ट में आगे चलकर हालात बिगड़ने का अंदेशा जताया गया है. आप यह चार्ट देखेंगे तो पिछले 20 साल में ये रेशियो घट रहा था. वर्ल्ड बैंक का डेटा 2018 तक ही उपलब्ध हैं. आप ट्रेंडलाइन देखेंगे तो 2003-2005 के बीच यह पीक पर था और फिर लगातार घटता रहा.

 

2020 में कोरोनावायरस के कारण सरकार को क़र्ज़ लेना पड़ा जबकि GDP में भारी गिरावट आई. इस कारण रेशियो 88% तक पहुँच गया था. अब यह घटकर 81% आ गया है. IMF का अंदेशा है कि 2028 में यह आँकड़ा 100% होगा यानी ख़तरे के निशान से ऊपर. सरकार इससे सहमत नहीं है. IMF यह भी कह रहा है कि हालात बेहतर रहे तो यह आँकड़ा 70% तक पहुँच जाएगा. जापान, अमेरिका और चीन जैसे देशों में यह आँकड़ा 100 से पार है.

 

अनुपात को एक मिनट साइड में रख दें तो यह देखना ज़रूरी है कि क़र्ज़ खर्च कहाँ हो रहा है. आप क़र्ज़ लेकर घर ख़रीदते हैं तो संपत्ति बना रहे हैं लेकिन छुट्टी मनाने के लिए क़र्ज़ ले रहे हैं तो फ़ौरी मज़ा मिलेगा. लाँग टर्म में कुछ हासिल नहीं होगा. वहीं बात सरकार पर लागू होती है कि क़र्ज़ लेकर रेवड़ी बाँट रही है या रोड बना रही है. यह आकलन जटिल विषय है. इस एक न्यूज़ लेटर में समेटना मुश्किल है. बजट में दिए गए दो आँकड़ों से समझने की कोशिश करते हैं. 10 लाख करोड़ रुपये रेलवे, रोड और अन्य संपत्तियों के निर्माण में खर्च होने का अनुमान है. 2019-20 के मुक़ाबले यह खर्च तीन गुना है. यह क़र्ज़ का अच्छा उपयोग हैं वहीं फ़ूड, खाद और पेट्रोलियम सब्सिडी मिलाकर 4 लाख करोड़ रुपये खर्च होना है. 2019-20 के लिए यह आँकड़ा 3 लाख करोड़ रुपए था. जिस अनुपात में संपत्तियों पर खर्च बढ़ा है उससे कम अनुपात में सब्सिडी बढ़ी है. इसका मतलब क़तई नहीं है कि सब चंगा है. सरकार को फ़िज़ूलख़र्ची रोकने पर ध्यान देना होगा वर्ना कोरोनावायरस जैसे बड़े संकट  फिर आने पर हम मुश्किल में पड़ सकते है.

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