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गढ़वाल में भाजपा के सभी 34 गढ़ एण्टी इन्कम्बैंसी की जद में

-जयसिंह रावत
कभी 52 गढ़ों का देश रहा गढ़वाल अब लोकतांत्रिक भारत में भले ही 41 गढ़ों का प्रदेश रहा गया है, फिर भी देहरादून की सत्ता की असली चाभी इन्हीं 41 गढ़ों के पास है। इन 41 में 34 गढ़ों पर पिछले विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का कब्जा हुआ था जबकि बहुमत के लिये केवल 36 सीटों की जरूरत होती है। लेकिन इस बार अपने कुशासन, अहंकार, महंगाई, बरोजगारी, भ्रष्टाचार और प्रदेशवासियों की हर बार नये सत्ताधारियों की चाह के कारण भाजपा को अपने जीते हुये गढ़ बचाने के लिये दिन में तारे देखने पड़ रहे हैं। अपने गढ़ बचाने के लिये भाजपा ने अपने कुछ गढ़पतियों के टिकट काट तो दिये फिर भी सत्ता विरोधी हवा के आगे की जा रही किलेबंदी हवाहवाई ही नजर आ रही है। इस चुनाव में साम्प्रदायिक जहर फैलाने का प्रयास भी किया जा रहा है जिससे प्रदेशवासियों को सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि नफरत विनाश की ओर ही ले जाती है।
सीमान्त प्रदेश उत्तराखण्ड के गढ़वाल मण्डल में कोटद्वार बावर से लेकर भारत-तिब्बत सीमा तक फैले 41 विधानसभा क्षेत्रों में नाम वापसी के बाद कुल 391 प्रत्याशी मैदाने जंग में रह गये हैं। इनके भाग्य का फैसला आगामी 14 फरबरी को 46,21,140 मतदाताओं द्वारा किया जाना है। इन सभी सीटों पर एक दो को छोड़ कर मुख्य मुकाबला सत्ताधारी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही है। यद्यपि आम आदमी पार्टी, उत्तराखण्ड क्रांति दल, बसपा और सपा ने भी विभिन्न सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हुये हैं। राजनीतिक दलों के बागियों के अलावा भी काफी संख्या में निर्दलीय भी चुनाव मैदान में रह गये हैं जोकि मुख्य दलों के प्रत्याशियों के गणित गड़बड़ा सकते हैं, खास कर असदुद्ीन ओबेसी की ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल मुसलमीन पार्टी ने केवल कांग्रेस के वोट कटवाने के लिये प्रत्याशी खड़े कर रखे हैं।
पिछले 2017 के चुनाव में चली प्रचण्ड मोदी लहर में भाजपा ने गढ़वाल का लगभग पूरा ही मैदान मार दिया था। उसे कुल 41 सीटों में 34 सीटों की प्रचण्ड जीत मिली थी, जबकि कांग्रेस केवल 6 सीटों पर सिमट गयी थी। उस चुनाव में कांग्रेस के पहाड़ी जिलों से मनोज रावत ने रुद्रप्रयाग की केदारनाथ, राजकुमार ने उत्तरकाशी की पुरोला और प्रीतम सिंह ने देहरादून की चकराता सीट जीती थी। इनके अलावा हरिद्वार जिले की भगवानपुर सीट से कांग्रेस की ममता राकेश, मंगलोर से काजी निजामुद्दीन और पिरान कलियर से फुरकान अहमद ने जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार एण्टी इन्कम्बेंसी, सत्ता के अहंकार, बार-बार मुख्यमंत्री बदले जाने, कुशासन और महंगाई और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को लेकर चुनावी माहौल एकदम बदला-बदला से नजर आ रहा है।

गढ़वाल मण्डल के दोनों सीमान्त जिले चमोली और उत्तरकाशी इस समय कांग्रेस की झोली में जाते नजर आ रहे हैं। जबकि पिछले चुनाव में कांग्रेस चमोली जिले की बदरीनाथ, थराली और कर्णप्रयाग में से कहीं भी खाता नहीं खोल पायी थी। जबकि उत्तरकाशी में राजकुमार पुरोला सीट को बचा पाये थे। इस बार राजकुमार ने पाला बदल दिया मगर फिर भी उनको भाजपा का टिकट नहीं मिला। राजनीतिक विश्लेषक चिरंजीवी सेमवाल इस सीट पर कांग्रेस के मालचन्द काफी मजबूत मानते हैं। सेमवाल के अनुसार गंगोत्री सीट पर मुकाबला आप के कर्नल कोठियाल ने अवश्य ही तिकोना बना दिया फिर भी कांग्रेस के विजय पाल सजवाण सीट निकालने की स्थिति में हैं। इस सीट का मिथक है कि जिस भी पार्टी का प्रत्याशी यहां से जीतता है उसकी ही सरकार प्रदेश में बनती रही है। यह सलिसिला उत्तर प्रदेश के जमाने से चला आ रहा है। उत्तराखण्ड आन्दोलन के प्रखर युवा नेता रहे प्रोफेसर एस.पी. सती के अनुसार पूरे गढ़वाल में कांग्रेस से अधिक उसके प्रत्याशियों की मेहनत रंग ला रही है।
टिहरी जिले में कुल 6 सीटें हैं। यहां भाजपा का पलड़ा थोड़ा भारी नजर आ रहा है। यहां देवप्रयाग सीट पर कांग्रेस के मंत्री प्रसाद नैथाणी और उक्रांद के दिवाकर भट्ट के बीच मुकाबला माना जा रहा है। इसी प्रकार टिहरी सीट पर हाल ही में कांग्रेस छोड़ भाजपा में गये किशोर उपाध्याय, कांग्रेस के धनसिंह नेगी और निर्दलीय दिनेश धनै के बीच माना जा रहा है। यहां नये पुराने भाजपाइयों की भिड़ंत में तीरे की लॉटरी निकल सकती है। घनसाली में भी भाजपा प्रत्याशी शक्तिलाल कांग्रेस प्रत्याशी धनी लाल शाह पर भारी माने जा रहे हैं। जबकि कांग्रेस के विक्रमसिंह नेगी प्रतापनगर में भारी माने जा रहे हैं। नरेन्द्रनगर में कांग्रेस के ओमगोपाल रावत और कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल के बीच काफी तगड़ा मुकाबला है। उनियाल की सीट संकट में बतायी जा रही है। इसी प्रकार धनोल्टी सीट पर भी कांग्रेस के जोतसिंह बिष्ट और भाजपा के प्रीतम सिंह पंवार के बीच माना जा रहा मुकाबला भाजपा के बागी महावीर सिंह रांगड़ ने तिकोना बना दिया। निर्दलीय प्रीतम हाल ही में भाजपा में शामिल हुये थे। प्रीतम सत्ता के लिये अपना स्टैण्ड बदलते रहे हैं इसलिये इस बार उन्हें झटका लग सकता है।
पौड़ी जिले में भी भाजपा और कांग्रेस के बीच जबरदस्त टक्कर चल रही है। इस जिले में अब तक चौबट्टाखाल भाजपा की सबसे आसान सीट मानी जा रही है। उस सीट पर कांग्रेस कैबिनेट मंत्री सतपाल महाराज के मुकाबले कोई दमदार प्रत्याशी नहीं उतार पायी। वहां कांग्रेस प्रत्याशी केशर सिंह नेगी बाहरी माने जा रहे हैं। जबकि कोटद्वार और लैंसडौन सीटें कांग्रेस की आसान सीटें मानी जा रही है। कोटद्वार में कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह नेगी और भाजपा की ऋतु खण्डूड़ी हैं। ऋतु इससे पहले यमकेश्वर से विधायक थीं। इस सीट पर 2012 में ऋतु के पिता भुवनचन्द्र खण्डूड़ी मुख्यमंत्री रहते हुये भी कांग्रेस के सुरेन्द्र सिंह नेगी से हार गये थे। लैंसडौन में भाजपा विधायक दलीपसिंह रावत का मुकाबला हाल ही में कांग्रेस में शामिल अनुकृति रावत से है। अनुकृति पूर्व मंत्री हरक सिंह रावत की बहू हैं। रावत दो बार इस सीट से विधायक रहे हैं। अनुमान है कि हरक सिंह की प्रतिष्ठा से जुड़ी यह सीट मौजूदा विधायक के खिलाफ एण्टी इन्कम्बेंसी के चलते अनुकृति को मिल सकती है। श्रीनगर गढ़वाल में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गणेश गोदियाल का मुकाबला कैबिनेट मंत्री धनसिंह रावत से है। हरक सिंह का गांव इसी क्षेत्र में है। यहां हरक सिंह का समर्थन गोदियाल को विजयश्री दिला सकता है। धनसिंह के खिलाफ भी एण्टी इन्कम्बेंसी है। पौड़ी सीट पर भाजपा के राजकुमार पौरी की स्थिति फिलहाल ठीकठाक बतायी जा रही है। लेकिन यहां भी अगर सत्ताधारी दल के खिलाफ एण्टी इन्कम्बेंसी चली तो पासा पलट सकता है।
राजधानी जिला देहरादून में कांग्रेस की सबसे आसान सीट चकराता मानी जा रही है। वहां कांग्रेस की ओर से प्रतिपक्ष के नेता प्रीतम सिंह और भाजपा की ओर से रामशरण नौटियाल है। नौटियाल नये-नये भाजपाई हैं। वह कभी कैप्टन सतीश शर्मा के करीबी माने जाते थे। नौटियाल के बेटे जुबिन नौटियाल विख्यात गायक हैं। लेकिन इस सीट पर मुन्ना सिंह चौहान की पत्नी मधू चौहान काफी पहले से सक्रिय थी। 2017 के चुनाव में वह प्रीतम सिंह से मात्र 1543 मतों से हारीं थीं। जौनसार बावर की राजनीति पर अब तक प्रीतम सिंह और मुन्ना सिंह के परिवारों का दबदबा रहा है। मुन्ना के परिवार के कारण यहां भाजपा मुकाबले में रही है। इसी प्रकार भाजपा की सबसे आसान सीटें ऋषिकेश और डोइवाला मानी जा रही हैं। लेकिन बादी जितेन्द्र नेगी भाजपा का गणित बिगाड़ सकते हैं। ऋषिकेश में विधानसभाध्यक्ष प्रेम चन्द अग्रवाल का मुकाबला कांग्रेस के जयेन्द्र रमोला से है। हालांकि पूर्व मंत्री शूरवीर सिंह सजवाण वहां मैदान से हट गये फिर भी प्रेम चन्द के आगे कांग्रेस प्रत्याशी की राह आसान नहीं है। डोइवाला में कांग्रेस ने भाजपा के बृजभूषण गैरोला के मुकाबले गौरव चौधरी को उतारा है। बृजभूषण गैराला पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र रावत के प्रत्याशी माने जाते हैं। यहां गैरोला काफी समय से सक्रिय रहे हैं और उनकी छवि भी अच्छी है।
देहरादून की अन्य सीटों में सहसपुर में भाजपा के सहदेव सिंह पुण्डीर का मुकाबला कांग्रेस के आर्येन्द्र शार्मा से, विकासनगर में भाजपा के मुन्ना सिंह चौहान का कांग्रेस के पुराने प्रतिद्वन्दी नव प्रभात से रायपुर में उमेश शर्मा का काग्रेसी दिग्गज हीरा सिंह बिष्ट से धर्मपुर में भाजपा के विनोद चमोली का पूर्व मंत्री दिनेश अग्रवाल से राजपुर रोड में भाजपा के खजानदास का कांग्रेस के राजकुमार से, मसूरी में गणेश जोशी का गोदावरी थापली से और कैंट में भाजपा की सविता कपूर का कांग्रेस के सूर्यकान्त धस्माना से है। फिलहाल देहरादून की 10 सीटों पर 5-5 की जैसी स्थिति के बावजूद हल्का सा रुझान कांग्रेस के पक्ष में अवश्य है जिससे आंकड़ा आगे भी बढ़ सकता हैै। पत्रकार ब्रह्मदत्त शर्मा देहरादून में भाजपा की केवल 4 सीटों पर संभावनाऐं बताते हैं। कांग्रेस की संभावनाओं को आप पार्टी के प्रत्याशी कम कर सकते हैं। इनमें कैंट में धस्माना के हाथ बाजी लग सकती है। इसी प्रकार गणेश जोशी की हरकतों और उनकी पृष्ठभूमि के कारण इस बार उनको झटका लग सकता है। जोशी स्वयं को पूर्व सैनिक प्रचारित कर रहे हैं जबकि कांग्रेसी उनको भगोड़ा सैनिक प्रचारित कर रही है। देहरादून जिले में डोइवाला, सहसपुर और विकासनगर में किसान आन्दोलन का असर हो सकता है। मुन्ना सिंह चौहान जैसे प्रखर नेता को भाजपा ने ही उठने नहीं दिया। इस बार धर्मपुर में विनोद चमोली के लिये बीरसिंह पंवार ने संकट खड़ा कर रखा है। पत्रकार जाहिद अली के अनुसार आबेसी की पार्टी ने प्रदेश में 22 मुस्लिम प्रत्याशी केवल कांग्रेस के वोट काटने के लिये खड़े कर रखे है।
हरिद्वार जिले में सत्ताधारी भाजपा को किसान आन्दोलन के साथ ही सत्ता विरोधी हवा का समाना करना पड़ रहा है। इस जिले में मुस्लिम बहुल पिरान कलियर और मंगलौर में कांग्रेस के फुरकान अहमद और काजी निजामुद्दीन की स्थिति मजबूत मानी जा रही है। भगवानपुर में भी कांग्रेस की ममता रोकश के समक्ष उनके भतीजे की चुनौती अवश्य है जो कि इस बार बसपा से लड़ रहे हैं। फिर भी माना जा रहा है कि ममता अन्ततः सीट निकाल लेंगी। इसी प्रकार रुड़की में भाजपा के प्रदीप बत्रा को इस बार कांग्रेस के यशपाल राणा से कड़ी चुनौती मिल रही है। बत्रा को भी सत्ता विरोधी हवा से नुकसान हो सकता है। खानपुर में प्रणव चैम्पियन की पत्नी देवयानी का मुकाबला सुभाष चौधरी से तथा हरिद्वार में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक का मुकबला सतपाल ब्रह्मचारी से तथा ज्वालापुर में सिटिंग भाजपा विधायक सुरेश राठौर का मुकाबला रवि बहादुर से है। लक्सर में इस बार भाजपा के संजय गुप्ता का मुकबला कांग्रेस के अंतरिक्ष सैनी से है। हरीश रावत की बेटी अनुपमा अपने पिता की सीट हरिद्वार ग्रामीण से लड़ रही है। वहां इस बार भी बसपा प्रत्याशी से खतरा बना हुआ है। हरिद्वार की 11 में से 10 सीटों पर किसान आन्दोलन का असर पड़ सकता है। राजनीतिक विष्लेशक देवेन्द्र शर्मा के अनुसार इस बार हरिद्वार जिले की 11 में से 8 सीटें कांग्रेस को जा सकती हैंं।

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