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मुहब्बत के नाम पर नफरत के बीज बो रहे हैं शांत उत्तराखंड में दंगाई मानसिकता के लोग

जयसिंह रावत

सुप्रीम कोर्ट की उत्तराखंड सरकार को नसीहत के बावजूद सांप्रदायिक उन्माद की खुली छूट के कारण यह  हिमालयी राज्य उत्तराखण्ड धर्मान्तरण को लेकर अशांत होता जा रहा है। यद्यपि धर्मान्तरण सभी धर्मों में हो रहा है और खास कर धर्मान्तरण कराने वालों के निशाने पर राज्य की सभी 5 जनजातियां हैं लेकिन चर्चा और प्रतिरोध केवल लव जेहाद और लैंड जेहाद को लेकर है। जबकि पिछली जनगणना रिपोर्ट सभी धर्मों में मतान्तरण की पुष्टि करती है। उत्तरकाशी का जो पुरौला क्षेत्र लव जेहाद को लेकर इन दिनों झुलस रहा है, वहां मिशनरियों की सक्रियता के किस्से पटवारी पुलिस और सिविल पुलिस के रिकार्ड में दर्ज हैं। हेट स्पीच के मामले में उत्तराखण्ड सरकार  सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद भी साम्प्रदायिक विद्वेष रोकने में रूचि नहीं ले रही है।अनुच्छेद 21 के तहत आजीविका का अधिकार जीवन के अधिकार का एक अभिन्न अंग है। अगर किसी की आजीविका के अधिकार से वंचित किया जाएगा तो इसका मतलब है कि हम उस व्यक्ति के जीने के अधिकार को छीन रहे हैं।  कुछ जगहों पर कुछ नागरिकों  के आजीविका  के मौलिक अधिकार का हनन हो रहा है और पुलिस तथा प्रशासन तमाशबीन बना  हुआ है.

On 9 July 2017, activists of Bajrang Dal and other right-wing organizations vandalized a vegetable shop belonging to a family of a minor boy in Satpuli who allegedly posted an offensive picture of the shrine.

पुरोला में लड़की को भगाने के प्रयास को लेकर उठा बवाल थमा भी नहीं था कि चमोली जिले के गौचर में एक और लड़की को लेकर बवाल हो गया। पौड़ी के नगरपालिका अध्यक्ष कीे बेटी की शादी एक मुस्लिम युवक से करने का विवाद भी तब थमा जब पालिका अध्यक्ष ने शादी के कार्यक्रम रद्द करने की सार्वजनिक घोषणा की। उत्तरकाशी जिले की यमुना घाटी के लव जेहाद का विवाद भौगोलिक सीमाओं को लांघ कर भागीरथी घाटी के चिन्यालीसौड़ तक आ गया। एक मजहब विशेष के व्यापारियों की दुकानें जबरन बंद कराई जा रही हैं। दुकानों को खाली करने के नोटिस चिपकाये जा रहे हैं और शासन प्रशासन तमाशबीन बना हुआ है। यही नहीं सरकार सर्वोच्च न्यायालय की फटकार की परवाह न करते हुये कभी धर्मान्तरण कानून तो कभी समान नागरिक संहिता और कभी लैण्ड जेहाद के नाम पर साम्प्रदायिक तत्वों को हवा दे रही है। बिगत में चम्बा, अगस्त्यमुनी, सतपुली और कोटद्वार में सम्प्रदाय विशेष की दुकानों में तोड़फोड़ हो चुकी है। जिस दर्शन भारती उर्फ देवेन्द्र सिंह पंवार का नाम इन साम्प्रदायिक हिंसा की घटनाओं में आता रहा है वह इन दिनों पुरोला में सक्रिय है। दर्शन भारती विगत में हरिद्वार आदि स्थानों पर उन कथित धर्म संसदों के आयोजकों में से रहा जिनकी हेट स्पीच की गूंज सारे देश में गूंजी थी।

वर्ष 2011 के बाद 2021 में सारे देश में जनजणना होनी थी जो अब तक नहीं हुयी। मगर उत्तराखण्ड में धर्म विशेष के लोगों की जनसंख्या बढ़ जाने के फर्जी आंकड़े सोशियल मीडिया में सरे आम प्रचारित कराये जा रहे हैं। इन फर्जी आकड़ों से हिन्दू जनमानस को इस्लाम के काल्पनिक खतरे से डराया जा रहा है। यही नहीं पहाड़ के लोगों को लैंड जेहाद का नरेटिव गढ़ कर पहाड़ की जनसंाख्यकी प्रभावित होने की बात बतायी जा रही है। जबकि पहाड़ के लोगों की प्राइम लैंड हड़पने वाले कोई और नहीं बल्कि राजनीतिक लोग और नवधनाड्य ही हैं। चारधाम मार्ग सहित धार्मिक और पर्यटन महत्व के स्थानों पर पहाड़ियों की जमीनें बिक चुकी हैं। मजबूत भूकानून बनाने के बजाय जो कानून नारायण दत्त तिवारी सरकार ने बनाया था उसे भी नकारा बना दिया ताकि भूमाफिया और भ्रष्ट नेता काली कमाई को जमीनों की खरीद में निवेश कर सकें। उत्तराखण्ड सरकार धर्मान्तरण, लैंड जेहाद, मजार जेहाद और लव जेहाद के काल्पनिक मुद्दों को काउंटर करने के बजाय उन्हें हवा दे रही है।

अब तक का अनुभव बताता है कि सर्वाधिक धर्मान्तरण जनजातियों में हो रहा है। अनुसूचित जातियों के साथ सदियों से भेदभाव होता रहा है। इसलिये उन्होंने अस्पृष्यता से मुक्ति के लिये धर्मान्तरण किया है। स्वयं बाबा सहेब अम्बेडकर बौद्ध बन गये थे। पूर्वाेत्तर भारत की ही तरह उत्तराखण्ड में भी मिशनरियों का ध्यान जनजातियों पर ही है। चकराता, मोरी और खटीमा विकासखण्डों में धर्मान्तरण मिशनरियों द्वारा भी कराया जा रहा है लेकिन राजनीतिक कारणों से बबालियों को केवल लव जेहाद और जमीन जेहाद ही नजर आ रहा है। पिछले साल क्रिसमस के दो दिन पहले उत्तरकाशी के पुरोला में बड़ी संख्या में धर्मांतरण के आरोप में दो गुटों में तनाव हो गया था जिसके बाद एक पादरी पर केस दर्ज कर लिया गया था। पुरोला तहसील के अलग-अलग गांवों में सेब के बगीचों में रह रहे नेपाल मूल के लगभग 27 परिवारों का धर्मान्तरण कर उनके द्वारा मिशन आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा था। करीब 11 साल पूर्व भी विकासखंड मोरी के आराकोट बंगाण पट्टी के कलीच गांव में भी दर्जनों परिवारों पर मतांतरण का आरोप लगा था। उस समय दोनों पक्षों के 69 व्यक्तियों के विरुद्ध ठडियार पटवारी चौकी में मारपीट और गालीगलौज का मुकदमा दर्ज हुआ था। लोगों ने रोहडू व त्यूणी से आने वाले मिशनरी के दो पादरियों के बार- बार आने की शिकायत प्रशासन से की थी। लेकिन शोर केवल लव जेहाद का ही है। मोरी ब्लाक में कलीच, आराकोट, ईशाली, जागटा, मैंजणी, थुनारा, भुटाणु, गोकुल, माकुडी, देलन, मोरा, भंकवाड़, बरनाली, डगोली एवं पावली आदि दर्जनों गांवों में हिमाचल से आए कुछ लोग सभाएं कर और पैसे का लालच देकर धर्म परिवर्तन के प्रयास करते रहे हैं।

Six shops belonging to a community burnt in Agastyamuni in 2018.

सन् 2011 की जनगणना के आकड़ों पर गौर करें तो उत्तराखण्ड की पांचों जनजातियों के लोगों में से 2,87,809 ने स्वयं को हिन्दू बताया है। शेष 437 ने इसाई, 364 ने सिख, 1141 ने बौद्ध और 7 ने स्वयं को जैन बताया है। जबकि मूल रूप से सभी हिन्दू ही थे। भोटिया जनजाति के 30 लोगों ने स्वयं को इसाई, 45 ने मुसलमान और 6 ने सिख बताया है। इसी प्रकार बुक्सा समुदाय में 5 ने स्वयं को इसाई और 23 ने सिख बता रखा है। पिछली जनगणना में 53 थारुओं ने स्वयं का इसाई और 25 ने सिख के साथ ही 124 ने मुसलमान बता रखा है।

ऊधमसिंहनगर जिले के खटीमा ब्लाक के मोहम्मदपुर भुड़िया, जोगीठेर नगला, सहजना, फुलैया, अमाऊं, चांदा, मोहनपुर, गंगापुर, भक्चुरी, भिलय्या, टेडाघाट, नौगवा ठगू, पहनिया, भूड़िया थारू आदि गांवों के कई थारू परिवार धर्म परिवर्तन कर इसाई बन गए हैं। तराई क्षेत्र ही नहीं बल्कि जनजाति क्षेत्र जौनसार बावर के दलितों और खास कर कोल्टा जाति के लोगों पर भी मिशनरियों की नजर टिकी हुयी है। चकराता में सुन्दर सिंह चौहान को मिशनरियों ने धर्मान्तरण करा कर पादरी तो बना दिया मगर उसका नाम और जाति नहीं बदली। वास्तविकता यह है कि जौनसार में कोल्टा और अन्य अनुसूचित जाति के लोग मिशनरियों द्वारा सम्मान की जिन्दगी देने और अस्पृस्यता से मुक्ति दिलाने के वायदे से काफी प्रभावित हो रहे हैं। अस्पृस्यता वास्तव में बहुत बड़ा सामाजिक कलंक है, और इस दाग से मुक्ति पाये बिना मिशनरियों का विरोध बेमानी है।

 

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