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भारतीय वैज्ञानिकों ने मूंगफली के छिलकों से पर्यावरण के अनुकूल एक स्मार्ट स्क्रीन विकसित की

Indian scientists have developed an eco-friendly smart screen from groundnut shells that could help not only in preserving privacy but also in energy conservation by controlling light and heat passing through it and reducing air conditioning load.

-uttarakhandhimalaya.in-

भारतीय वैज्ञानिकों ने मूंगफली के छिलकों से पर्यावरण के अनुकूल एक स्मार्ट स्क्रीन विकसित की है, जो न केवल गोपनीयता को बनाए रखने में मदद कर सकती है बल्कि इससे गुजरने वाले प्रकाश एवं गर्मी को नियंत्रित करके ऊर्जा संरक्षण और एयर कंडीशनिंग लोड को कम करने में भी मदद कर सकती है।

 

प्रोफेसर एस. कृष्णा प्रसाद के नेतृत्व में शोधकर्ताओं के एक समूह ने सेंटर फॉर नैनो एंड सॉफ्ट मैटर साइंसेज (सीईएनएस), बैंगलोर, जोकि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार का एक स्वायत्त संस्थान है, के डॉ. शंकर राव के साथ मिलकर मूंगफली के फेंके हुए छिलकों से इस तरह के एक सेलूलोज़-आधारित स्मार्ट स्क्रीन को विकसित करने में एक अहम उपलब्धि हासिल की है।

 

इस स्मार्ट स्क्रीन के अनुप्रयोग में, तरल क्रिस्टल अणुओं को एक बहुलक सांचे में ढाला गया। इस सांचे का निर्माण सेलुलोज नैनोक्रिस्टल (सीएनसी) का उपयोग करके किया गया। ये सेलुलोज नैनोक्रिस्टल आईआईटी रुड़की में प्रोफेसर युवराज सिंह नेगी की टीम द्वारा मूंगफली के छोड़े हुए छिलकों से तैयार किए गए थे। तरल क्रिस्टल अणुओं के अपवर्तनांक को एक विद्युतीय क्षेत्र के अनुप्रयोग के जरिए एक खास दिशा की ओर मोड़ दिया गया। विद्युतीय क्षेत्र की अनुपस्थिति में, बहुलक और तरल क्रिस्टल के अपवर्तनांकों के बेमेल होने की वजह से प्रकाश का प्रकीर्णन हुआ। कुछ वोल्ट के एक विद्युतीय क्षेत्र के अनुप्रयोग से, तरल क्रिस्टल अणु दिशा परिवर्तन की एक प्रक्रिया से गुजरे, जिसके परिणामस्वरूप अपवर्तनांकों में मेल हुआ और उपकरण लगभग तुरंत ही पारदर्शी हो उठा। जैसे ही विद्युतीय क्षेत्र का प्रयोग बंद किया गया, यह प्रणाली प्रकीर्णन वाली अवस्था में वापस लौट आई। बटन दबाने पर उपलब्ध दो अवस्थाओं के बीच यह उत्क्रमणीय बदलाव हजारों चक्रों में हुआ। इस उत्क्रमणीय बदलाव के दौरान अनिवार्य रूप से व्यतिरेक या बटन दबाने की गति में कोई परिवर्तन नहीं होने दिया गया।

 

इन वैज्ञानिकों द्वारा विकसित इस उपकरण ने, जिसका जिक्र एप्लाइड फिजिक्स लेटर्स के हाल के अंक में किया गया है, उसी सिद्धांत का अनुसरण किया जिसकी वजह से सर्दियों में सुबह के समय कोहरा पैदा होता है। ऐसा केवल तभी होता है जब पानी की बूंदें सही आकार की होती हैं, और वह हवा के साथ मौजूद रहती हैं। प्रकाश की आने वाली किरणें इन दोनों को अलग-अलग अपवर्तनांकों वाली वस्तुओं के रूप में देखती हैं और इस तरह से उनका प्रकीर्णन हो जाता है जिसके परिणामस्वरुप कोहरे का नजारा उपस्थित होताहै। इसी तरह, बहुलक और तरल क्रिस्टल को सही आकार में सह-अस्तित्व में होना चाहिए ताकि स्मार्ट स्क्रीन के लिए आवश्यक प्रकाशीय गुण निर्मित हो सकें।

 

इस उपकरण पर काम करने वाले छात्र, सुश्री प्रज्ञा और डॉ. श्रीविद्या, इस बात पर जोर देते हैं किवाणिज्यिक स्रोतों से उपलब्ध सीएनसी के मुकाबले आईआईटी रूड़कीकी सामग्री के बेहतर प्रदर्शन के साथ इस उपकरण के व्यतिरेक को नियंत्रित करने में सीएनसी के निर्माण का प्रोटोकॉल एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

 

इन वैज्ञानिकों ने बताया कि सैद्धांतिक रूप से इस उपकरण को किसी भी सेल्यूलोज या कृषि जनित अपशिष्ट से विकसित किया जा सकता है। मूंगफली के कचरे के कुछ खास गुणों के कारण, मूंगफली के कचरे से विकसित स्मार्ट स्क्रीन को सबसे अधिक कारगर पाया गया है।

 

लक्षित गोपनीयता निर्माण के मूल इरादे के अलावा, इस उपकरण को व्यापक संभावित अनुप्रयोगों, खासकर अवरक्त प्रकाश की मात्रा और खिड़की को नियंत्रित करके इसे अनुमन्य सीमा तक गुजारते हुए ऊर्जा संरक्षण के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, इस तकनीक लैस एक खिड़की पूरे दृश्य क्षेत्र के लिए पारदर्शी रहेगी, पूरे प्रांगण को ठंडा रखते हुए गर्मी के विकिरण के अवांछनीय स्तर को काफी कम किया जा सकता है।

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