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भारत का ‘ऑपरेशन दोस्त’ दिल और मन, दोनों जीत रहा है

–लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. सुब्रत साहा    

रिक्टर पैमाने पर 7.8 और 7.5 की तीव्रता वाले दो बड़े भूकंपों ने दक्षिणी तुर्की और उत्तरी सीरिया को गंभीर रूप से प्रभावित किया। ऐसा प्रतीत होता है कि अरब टेक्टोनिक प्लेट, अनातोलियन प्लेट के साथ घर्षण करते हुए उत्तर की ओर बढ़ गई है। पहला भूकंप, 6 फरवरी को स्थानीय समय के अनुसार 04:17 बजे (6:47 पूर्वाह्न, आईएसटी) गजियांटेप शहर के पास आया। दूसरा भूकंप पहले भूकंप के तीव्र झटके से शुरू हुआ और यह 12 घंटे के बाद आया, जिसका केंद्र कहरामनमारस के एलबिस्तान जिले के उत्तर में स्थित था। भूकंपों ने हजारों लोगों की जान ले ली और बड़े पैमाने पर तबाही मचाई। कई दिनों के बाद भी पूरे क्षेत्र में भूकंप के झटके महसूस किए जाते रहे।

भारत के मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) मिशन का कोड नाम, ऑपरेशन दोस्त (तुर्किये) था, जिसमें राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के खोज व बचाव दल और भारत की 50 इंडिपेंडेंट पैराशूट ब्रिगेड के 60 पैराशूट फील्ड अस्पताल शामिल थे। 60 पैराशूट फील्ड (जिसे पहले एम्बुलेंस कहा जाता था) ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए 1950-53 के कोरियाई युद्ध में बहुत ख्याति अर्जित की थी।

भारत की अंतर्राष्ट्रीय संकट प्रबंधन संरचना ने बहुत तेजी से काम किया, क्योंकि भूकंप के कुछ घंटों के भीतर, सेना मुख्यालय से 60 पैरा फील्ड अस्पताल को 11 पूर्वाह्न आईएसटी तक मिशन के लिए तैयार होने के आदेश प्राप्त हुए। 60 पैरा फील्ड अस्पताल ने तत्परता से जवाब दिया – चिकित्सा विशेषज्ञ, सर्जिकल विशेषज्ञ, एनेस्थेटिस्ट, हड्डी रोग विशेषज्ञ, मैक्सिलोफेशियल सर्जन, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, चिकित्सा अधिकारी, पैरामेडिक्स और एनडीआरएफ टीमों के 99 कर्मियों सहित चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, दंत चिकित्सा और आपदा राहत उपकरणों को भारतीय वायु सेना द्वारा हिंडन एयरबेस से हवाई मार्ग से पहुंचाया गया। 8 फरवरी को तुर्किये पहुंचने के तीन घंटे के भीतर, हटे के इस्केंडरन में फील्ड अस्पताल स्थापित किया गया, जो तुर्किये में सबसे गंभीर रूप से प्रभावित प्रांतों में से एक था और एनडीआरएफ की टीमों ने गाजियांटेप में जमीनी स्तर पर बचाव व राहत अभियान शुरू किए।

लोकप्रिय रूप से ‘इंडिस्तानी सहारा हस्तनेसी’ कहे जाने वाले भारतीय फील्ड अस्पताल ने 12 दिनों की अवधि में 3604 घायलों का इलाज किया, आपातकालीन चिकित्सा देखभाल की, फ्रैक्चर ठीक किया, दंत चिकित्सा की तथा बड़े ऑपरेशन किए। 100 से अधिक घायलों को भर्ती किए जाने की आवश्यकता थी। चिकित्सा और शल्य चिकित्सा उपकरणों की त्वरित पुनःपूर्ति के साथ, भारत से आ रहे आर्थोपेडिक उपकरणों के साथ गति को बनाए रखा गया।

संयुक्त राष्ट्र मिशन के साथ-साथ देश के अशांत क्षेत्रों में जन-केंद्रित अभियानों का संचालन करने के भारतीय सेना के वर्षों के अनुभव ने निश्चित रूप से मदद की। संयुक्त राष्ट्र मिशन के हिस्से के रूप में, युद्धग्रस्त अंगोला, कांगो, रवांडा, दक्षिण सूडान और अन्य में भारतीय सेना के अभियान तथा उग्रवाद और आतंकवाद विरोधी अभियानों के तहत अनिवार्य रूप से नागरिक केन्द्रित कार्रवाई की गई थी। तुर्किये में भाषा की बाधा को स्थानीय स्वयंसेवकों को राहत प्रयासों में शामिल करके दूर किया गया, जिनसे बातों की व्याख्या करने और रोगियों एवं फार्मेसियों के प्रबंधन में आसानी हुई।

तुर्किये के लोगों ने आपदा राहत दलों को दिल छू लेने वाली विदाई दी। एक तुर्की स्वयंसेवक उल्स के परिवार का एक संदेश बहुत कुछ बयां करता है, “आप 99 चिकित्साकर्मियों की टीम के रूप में पहुंचे थे, लेकिन जब आप भारत वापस जा रहे हैं, तो आपके पास पूरे तुर्किये का आशीर्वाद है।” तुर्किये की एडा इस्केंड्रम ने एक ट्वीट के रूप में आभार व्यक्त किया, जो सैनिक-चिकित्सकों के प्रति लोकप्रिय भावना को व्यक्त करती है, “आप सभी हमारे नायक हैं। हम उन दिनों में एक-दूसरे को देखेंगे, जब हम रो नहीं रहे होंगे [यानि, खुशी के समय में]। मैं भारत आऊंगी, लेकिन हम आपको भविष्य में हटे में फिर से देखना चाहेंगे। हम आप लोगों से प्यार करते हैं।“ तुर्की के एक मेडिकल छात्र ने सी17 से वापस भारत आने वाले एक चिकित्सा अधिकारी को विदाई संदेश भेजा, “आपको याद रखना चाहिए कि आपका एक घर तुर्किये में भी है और आपका एक भाई भी है, जो आपकी मेजबानी करने के लिए आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।“

यहां तक कि 60 पैरा फील्ड अस्पताल और एनडीआरएफ की टीमों ने क्षेत्र के लोगों का दिल और मन, दोनों जीत लिया। वैश्विक स्तर पर भी, भारत की मानवीय सहायता तीन बातों में अलग रही; पहला, संकट की स्थिति में तेजी से निर्णय लेना और तेजी से कार्यान्वयन; दूसरा, हमारे सैन्य बलों की कठिनतम परिस्थितियों के लिए अनुकूल होने और पीड़ितों के साथ सहानुभूति रखने की सराहनीय क्षमता और तीसरा, मानवीय मूल्यों व सिद्धांतों को किसी भी अन्य विचार से ऊपर रखना।

प्राकृतिक आपदाओं से निपटने और मानवीय सहायता तथा आपदा राहत (एचएडीआर) में सबसे आगे रहने के लिए बहुपक्षवाद के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का एक और व्यावहारिक प्रदर्शन था – ऑपरेशन दोस्त। कोविड महामारी के दौरान भारत के प्रयास जगजाहिर हैं; इसने अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा राहत प्रदान की; विदेशी नागरिकों के प्रत्यावर्तन की सुविधा दी और कई देशों को टीकों का निर्यात किया। भारत 2016 से बिम्सटेक देशों के बीच एचएडीआर में सहयोग के लिए सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है। सितंबर 2022 में, क्वाड समूह के चार देशों- भारत, यू.एस., ऑस्ट्रेलिया और जापान ने एचएडीआर साझेदारी के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। नवंबर 2022 में, भारत ने आगरा में एक बहु-राष्ट्रीय, बहु-एजेंसी एचएडीआर अभ्यास ‘समन्वय 2022’ की मेजबानी की, जिसमें आसियान देश शामिल थे।

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा व्यक्त किए गए जी-20 मंत्र, “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” की भावना के अनुरूप भारत दुनिया भर में आपदाओं के पीड़ितों के साथ मजबूती से खड़े होकर आपदा प्रबंधन और राहत कार्यों में नेतृत्व की भूमिका निभा रहा है।

 

लेखक, एनएसएबी और डीसीओएएस के पूर्व सदस्य हैं; 2014 में जीओसी, 15 कोर के रूप में उन्होंने कश्मीर में बड़े पैमाने पर बाढ़ से बचाव और राहत कार्यों का नेतृत्व किया था।

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–लेफ्टिनेंट जनरल डॉ. सुब्रत साहा

रिक्टर पैमाने पर 7.8 और 7.5 की तीव्रता वाले दो बड़े भूकंपों ने दक्षिणी तुर्की और उत्तरी सीरिया को गंभीर रूप से प्रभावित किया। ऐसा प्रतीत होता है कि अरब टेक्टोनिक प्लेट, अनातोलियन प्लेट के साथ घर्षण करते हुए उत्तर की ओर बढ़ गई है। पहला भूकंप, 6 फरवरी को स्थानीय समय के अनुसार 04:17 बजे (6:47 पूर्वाह्न, आईएसटी) गजियांटेप शहर के पास आया। दूसरा भूकंप पहले भूकंप के तीव्र झटके से शुरू हुआ और यह 12 घंटे के बाद आया, जिसका केंद्र कहरामनमारस के एलबिस्तान जिले के उत्तर में स्थित था। भूकंपों ने हजारों लोगों की जान ले ली और बड़े पैमाने पर तबाही मचाई। कई दिनों के बाद भी पूरे क्षेत्र में भूकंप के झटके महसूस किए जाते रहे।

भारत के मानवीय सहायता और आपदा राहत (एचएडीआर) मिशन का कोड नाम, ऑपरेशन दोस्त (तुर्किये) था, जिसमें राष्ट्रीय आपदा मोचन बल (एनडीआरएफ) के खोज व बचाव दल और भारत की 50 इंडिपेंडेंट पैराशूट ब्रिगेड के 60 पैराशूट फील्ड अस्पताल शामिल थे। 60 पैराशूट फील्ड (जिसे पहले एम्बुलेंस कहा जाता था) ने भारत का प्रतिनिधित्व करते हुए 1950-53 के कोरियाई युद्ध में बहुत ख्याति अर्जित की थी।

भारत की अंतर्राष्ट्रीय संकट प्रबंधन संरचना ने बहुत तेजी से काम किया, क्योंकि भूकंप के कुछ घंटों के भीतर, सेना मुख्यालय से 60 पैरा फील्ड अस्पताल को 11 पूर्वाह्न आईएसटी तक मिशन के लिए तैयार होने के आदेश प्राप्त हुए। 60 पैरा फील्ड अस्पताल ने तत्परता से जवाब दिया – चिकित्सा विशेषज्ञ, सर्जिकल विशेषज्ञ, एनेस्थेटिस्ट, हड्डी रोग विशेषज्ञ, मैक्सिलोफेशियल सर्जन, सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ, चिकित्सा अधिकारी, पैरामेडिक्स और एनडीआरएफ टीमों के 99 कर्मियों सहित चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, दंत चिकित्सा और आपदा राहत उपकरणों को भारतीय वायु सेना द्वारा हिंडन एयरबेस से हवाई मार्ग से पहुंचाया गया। 8 फरवरी को तुर्किये पहुंचने के तीन घंटे के भीतर, हटे के इस्केंडरन में फील्ड अस्पताल स्थापित किया गया, जो तुर्किये में सबसे गंभीर रूप से प्रभावित प्रांतों में से एक था और एनडीआरएफ की टीमों ने गाजियांटेप में जमीनी स्तर पर बचाव व राहत अभियान शुरू किए।

लोकप्रिय रूप से ‘इंडिस्तानी सहारा हस्तनेसी’ कहे जाने वाले भारतीय फील्ड अस्पताल ने 12 दिनों की अवधि में 3604 घायलों का इलाज किया, आपातकालीन चिकित्सा देखभाल की, फ्रैक्चर ठीक किया, दंत चिकित्सा की तथा बड़े ऑपरेशन किए। 100 से अधिक घायलों को भर्ती किए जाने की आवश्यकता थी। चिकित्सा और शल्य चिकित्सा उपकरणों की त्वरित पुनःपूर्ति के साथ, भारत से आ रहे आर्थोपेडिक उपकरणों के साथ गति को बनाए रखा गया।

संयुक्त राष्ट्र मिशन के साथ-साथ देश के अशांत क्षेत्रों में जन-केंद्रित अभियानों का संचालन करने के भारतीय सेना के वर्षों के अनुभव ने निश्चित रूप से मदद की। संयुक्त राष्ट्र मिशन के हिस्से के रूप में, युद्धग्रस्त अंगोला, कांगो, रवांडा, दक्षिण सूडान और अन्य में भारतीय सेना के अभियान तथा उग्रवाद और आतंकवाद विरोधी अभियानों के तहत अनिवार्य रूप से नागरिक केन्द्रित कार्रवाई की गई थी। तुर्किये में भाषा की बाधा को स्थानीय स्वयंसेवकों को राहत प्रयासों में शामिल करके दूर किया गया, जिनसे बातों की व्याख्या करने और रोगियों एवं फार्मेसियों के प्रबंधन में आसानी हुई।

तुर्किये के लोगों ने आपदा राहत दलों को दिल छू लेने वाली विदाई दी। एक तुर्की स्वयंसेवक उल्स के परिवार का एक संदेश बहुत कुछ बयां करता है, “आप 99 चिकित्साकर्मियों की टीम के रूप में पहुंचे थे, लेकिन जब आप भारत वापस जा रहे हैं, तो आपके पास पूरे तुर्किये का आशीर्वाद है।” तुर्किये की एडा इस्केंड्रम ने एक ट्वीट के रूप में आभार व्यक्त किया, जो सैनिक-चिकित्सकों के प्रति लोकप्रिय भावना को व्यक्त करती है, “आप सभी हमारे नायक हैं। हम उन दिनों में एक-दूसरे को देखेंगे, जब हम रो नहीं रहे होंगे [यानि, खुशी के समय में]। मैं भारत आऊंगी, लेकिन हम आपको भविष्य में हटे में फिर से देखना चाहेंगे। हम आप लोगों से प्यार करते हैं।“ तुर्की के एक मेडिकल छात्र ने सी17 से वापस भारत आने वाले एक चिकित्सा अधिकारी को विदाई संदेश भेजा, “आपको याद रखना चाहिए कि आपका एक घर तुर्किये में भी है और आपका एक भाई भी है, जो आपकी मेजबानी करने के लिए आपकी प्रतीक्षा कर रहा है।“

यहां तक कि 60 पैरा फील्ड अस्पताल और एनडीआरएफ की टीमों ने क्षेत्र के लोगों का दिल और मन, दोनों जीत लिया। वैश्विक स्तर पर भी, भारत की मानवीय सहायता तीन बातों में अलग रही; पहला, संकट की स्थिति में तेजी से निर्णय लेना और तेजी से कार्यान्वयन; दूसरा, हमारे सैन्य बलों की कठिनतम परिस्थितियों के लिए अनुकूल होने और पीड़ितों के साथ सहानुभूति रखने की सराहनीय क्षमता और तीसरा, मानवीय मूल्यों व सिद्धांतों को किसी भी अन्य विचार से ऊपर रखना।

प्राकृतिक आपदाओं से निपटने और मानवीय सहायता तथा आपदा राहत (एचएडीआर) में सबसे आगे रहने के लिए बहुपक्षवाद के प्रति भारत की प्रतिबद्धता का एक और व्यावहारिक प्रदर्शन था – ऑपरेशन दोस्त। कोविड महामारी के दौरान भारत के प्रयास जगजाहिर हैं; इसने अंतर्राष्ट्रीय चिकित्सा राहत प्रदान की; विदेशी नागरिकों के प्रत्यावर्तन की सुविधा दी और कई देशों को टीकों का निर्यात किया। भारत 2016 से बिम्सटेक देशों के बीच एचएडीआर में सहयोग के लिए सक्रिय रूप से योगदान दे रहा है। सितंबर 2022 में, क्वाड समूह के चार देशों- भारत, यू.एस., ऑस्ट्रेलिया और जापान ने एचएडीआर साझेदारी के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे। नवंबर 2022 में, भारत ने आगरा में एक बहु-राष्ट्रीय, बहु-एजेंसी एचएडीआर अभ्यास ‘समन्वय 2022’ की मेजबानी की, जिसमें आसियान देश शामिल थे।

प्रधानमंत्री मोदी द्वारा व्यक्त किए गए जी-20 मंत्र, “एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य” की भावना के अनुरूप भारत दुनिया भर में आपदाओं के पीड़ितों के साथ मजबूती से खड़े होकर आपदा प्रबंधन और राहत कार्यों में नेतृत्व की भूमिका निभा रहा है।

 

लेखक, एनएसएबी और डीसीओएएस के पूर्व सदस्य हैं; 2014 में जीओसी, 15 कोर के रूप में उन्होंने कश्मीर में बड़े पैमाने पर बाढ़ से बचाव और राहत कार्यों का नेतृत्व किया था।

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