एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी): उत्तरकाशी के लाल चावल का उत्पादन 25% बढ़ गया
Amidst the serene Himalayas, Uttarkashi is emphasizing the transformative power of self-reliance. NGOs, local administration, and over 700 farmers were empowered with organic farming skills through 15 tailored training sessions. Equipped with vital tools for 1000+ beneficiaries, red rice production surged 25%. This Aatmanirbhar Bharat success story not only bolsters Uttarakhand’s economy but also fortifies its future with sustainable farming practices.
-uttarakhandhimalaya.in-
2018 में, साहसिक दृष्टिकोण के साथ एक बीज बोया गया, जिसका लक्ष्य क्षेत्रीय आर्थिक विभाजन को पाटना और भारत के विविध जिलों में आत्मनिर्भरता को पोषण करना था। एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) नामक इस बीज का उद्देश्य एकल प्रतिष्ठित उत्पाद के माध्यम से प्रत्येक जिले की अनूठी शक्तियों की पहचान करना, उसके उत्पादन क्षमता को बढ़ाना और स्थानीय समाज को आत्मनिर्भर और सशक्त बनाना है। “वोकल फॉर लोकल” संदेश के भाव से प्रेरित ओडीओपी, कारीगरों, किसानों और उद्यमियों को सशक्त बनाने के लिए ग्रामीण परिदृश्य को संपन्न उद्यम केंद्र के रूप में विकसित कर रहा है।
2018 में बोया गया यह बीज विगत वर्षों में तेजी से विकास करते हुए कोमल पौधे से एक हरे-भरे बगीचे की शक्ल ले लिया है, या यूं समझिए कि ओडीओपी के परिश्रम का फल अब पक गया है, जिसका मधुर स्वाद संबंधित समाज को मिलने भी लगा है। ओडीओपी पहल ने देश भर के 760 से अधिक जिलों के एक हजार से अधिक उत्पादों की पहचान की है। हथकरघा, सुगंधित मसालों और उत्कृष्ट हस्तशिल्प की एक जीवंत तस्वीर पीएम-एकता मॉल में भी प्रदर्शित होती है, जो एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) पहल की परिवर्तनकारी शक्ति का प्रमाण है।
पूरे भारत में, एक जिला, एक उत्पाद (ओडीओपी) पहल की जीवंत छवि के नीचे, परिवर्तन की उल्लेखनीय कहानियाँ छिपी हुई हैं। ये एकल प्रतिभा के एकमात्र आख्यान नहीं हैं, बल्कि आत्मनिर्भरता और परस्पर सहयोग की जादूई शक्ति के साथ आगे बढ़ रहे सामूहिक विकास का मंगल गान हैं। आइए, उन प्रेरणादायक कहानियों को साझा करते हैं जो भारत के विभिन्न जिलों और राज्यों के आर्थिक विजय और सांस्कृतिक गौरव को दर्शाती हैं।
शोपियां, जम्मू और कश्मीर – गुणवत्तापूर्ण सेब
कश्मीर की बर्फीली हवाओं के बीच, शोपियां के सेब विश्व तक पहुंचने की संभावनाओं से चमक रहे हैं। ओडीओपी का जादुई स्पर्श, संबंधित जिलों और राज्यों को आर्थिक और आत्मनिर्भरता के धागों में पिरोता जा रहा है। प्रधानमंत्री विकास पैकेज (पीएमडीपी), एसएमएएम और एमआईडीएच से उत्पादन बढ़ाने के सपने साकार हो रहे हैं। इसी के परिणाम स्वरूप उत्पादन में 20 प्रतिशत की शानदार वृद्धि देखने को मिली है जो इस क्षेत्र में आर्थिक विकास की संभावना को दर्शाती है।
उत्तरकाशी, उत्तराखंड – लाल चावल
उत्तरकाशी जिले में विशिष्ट गुणों वाले लाल धान का उत्पादन होता है। जिले के पुरोला क्षेत्र सहित रवांई घाटी में परंपरागत रूप से बड़े पैमाने पर लाल धान की खेती होती है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने पारम्परिक खेती के क्षेत्र में विद्यमान सम्भावनाओं को देखते हुए लाल धान और अन्य पारम्पारिक फसलों के उत्पादन को बढ़ावा देने की हिदायत देते हुए अधिकारियों को इस दिशा में प्रतिबद्ध प्रयास करने की अपेक्षा की थी। जिला प्रशासन एवं कृषि विभाग के द्वारा जिले में लाल धान की पारंपरिक खेती का संरक्षण व संवर्द्धन के लिए बहुआयामी प्रयास करने के साथ ही गंगा घाटी के इलाकों में भी इसकी पैदावार करने के लिए किसानों को प्रोत्साहित कर पिछले वर्ष से लाल धान की खेती शुरू करवाई गई। इस मुहिम में स्वयं डीएम अभिषेक रुहेला और अन्य अधिकारी खुद खेतों में उतर कर रोपाई की थी। जिला प्रशासन ने किसानों को लाल धान के बीज, खाद व अन्य तकनीकी जानकारी देने के साथ ही कृषि विभाग की टीम निरंतर लाल धान की खेती को बढावा देने के लिए किए जा रहे प्रयासों को जमीन पर उतारने में जुटी रही। जिलाधिकारी अभिषेक रूहेला ने किसानों को तकनीकी जानकारी और अन्य मदद उपलब्ध कराई। उत्साहित किसानों ने बड़े पैमाने पर लाल धान की खेती को अपनाया।
हिमालय के मनभावन दृश्यों के बीच रचा-बसा उत्तरकाशी, आत्मनिर्भरता के लिए आवश्यक परिवर्तनकारी शक्ति पर विशेष जोर दे रहा है। इसी ओर कदम बढ़ाते हुए गैर सरकारी संगठनों, स्थानीय प्रशासन और 700 से अधिक किसानों को 15 प्रशिक्षण सत्रों के माध्यम से जैविक खेती कौशल से सशक्त किया गया है। एक हजार से अधिक लाभार्थियों को महत्वपूर्ण उपकरण भी प्रदान किए गए हैं जिसके फलस्वरूप यहां पर लाल चावल का उत्पादन 25% बढ़ गया है। यह आत्मनिर्भर भारत की सफलता की कहानी न केवल उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था को सशक्त करती है बल्कि टिकाऊ कृषि पद्धतियों के साथ इसके भविष्य को भी मजबूत करती है।
अराकू घाटी, आंध्र प्रदेश – उत्तम कॉफी की खेती
भारत के पूर्वी घाट में स्थित, “अराकू वैली कॉफी” अपने स्वाद और समृद्ध सुगंध से मन मोह लेती है। यह कॉफी स्थानीय समाज के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं है। लगभग डेढ़ लाख आदिवासी परिवार, कॉफी बोर्ड और एकीकृत जनजातीय विकास एजेंसी (आईटीडीए) के साथ मिलकर इस बेशकीमती पेय को उत्पादित कर रहे हैं। पारंपरिक तरीकों का सम्मान करते हुए, उत्पादनकर्ताओं ने 20% की जबरदस्त वृद्धि हासिल की है। गिरीजन को-ऑपरेटिव कॉरपोरेशन (जीसीसी) द्वारा प्राप्त एक करोड़ से अधिक की ऋण ने भी उत्पादन की बढ़ोतरी में अहम भूमिका निभाई है। अराकू घाटी का यह पेय पदार्थ आत्मनिर्भर भारत का एक सामुदायिक गान है।
कंधमाल, ओडिशा – सुगंधित हल्दी
ओडिशा के कंधमाल जिले में उगने वाली सुगंधित हल्दी, भारत की दूसरी सबसे बड़ी उत्पादक है। आत्मनिर्भरता की गाथा गाती यह हल्दी न केवल स्वादिष्ट और औषधीय गुणों से भरपूर है, बल्कि आर्थिक विकास की प्रेरणा भी बन गई है। इसी क्रम में आगे बढ़ते हुए, वित्तीय योजनाओं से सशक्त पांच हजार से अधिक प्रशिक्षित कर्मचारी, 1,300 किसानों के साथ मिलकर घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में अपनी धाक जमा रहे हैं। सरकारी खरीद में 70% की वृद्धि ने सफलता की गाथा में चार चांद लगा दिए हैं। इस प्रगति ने आदिवासी बंधुओं के आत्मविश्वास को बढ़ाया है और कंधमाल को आत्मनिर्भर भारत की ओर अग्रसर किया है।
बठिंडा, पंजाब – उच्च गुणवत्ता वाला शहद उत्पादन
बठिंडा, पंजाब का यह ऐतिहासिक शहर अब एक नई पहचान बना रहा है – स्वर्णिम मधु के रूप में। यह मधु न केवल स्वादिष्ट है, बल्कि आत्मनिर्भर भारत की भावना से भी गूंज रहा है। स्थानीय स्तर पर सुलभता से उपलब्ध परीक्षण प्रयोगशालाएं, मधुमक्खी पालकों को समय बचाने और गुणवत्तापूर्ण मधु उत्पादन में मदद कर रही हैं। सब्सिडी, ऋण और प्रधानमंत्री माइक्रो फूड प्रोसेसिंग एंटरप्राइजेज (पीएमएफएमई) जैसे विकासरूपी सरकारी मददों से मधुमक्खी पालक आर्थिक रूप से सशक्त बन रहे हैं। निफ्टेम (एनआईएफटीईएम) द्वारा बेहतर ब्रांडिंग और पैकेजिंग मधु को बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बना रही है। इन प्रयासों के फलस्वरूप शहद उत्पादन में 30% की वृद्धि दर्ज हुई है। बठिंडा का मधु आत्मनिर्भर भारत की सफलता की कहानी का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि सरकारी सहयोग, कड़ी मेहनत और नवीनतम तकनीक के साथ भारत के हर क्षेत्र में विकास और समृद्धि संभव है।
बुरहानपुर, मध्य प्रदेश – बेहतर गुणवत्ता वाले केले
बुरहानपुर के बेहतर गुणवत्ता वाले केले मध्य प्रदेश के दिल में बसी एक मीठी सफलता की कहानी बयां कर रहे हैं। ओडीओपी के अंतर्गत मिल रहे नवाचार और किसानों के समर्थन के परिणामस्वरूप उत्पादन में 15% की वृद्धि हुई है। अब, अपना बुरहानपुर फल-फूल रहा है, इस क्षेत्र में केले से प्राप्त आर्थिक मिठास से संतोषजनक वातावरण का निर्माण हो रहा है। ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट 2023 सहित वैश्विक आयोजनों में इस उत्पाद की भागीदारी ने बुरहानपुर की आर्थिक झलक को प्रदर्शित किया है, जिससे विश्व मंच पर इसका स्वाद और निखर कर सामने आया है।
कश्मीरी सेब से लेकर आंध्र प्रदेश की कॉफी तक, ओडीओपी की सफलता, नवाचार और विजय की कहानियों से बुनी गई है। प्रत्येक जिले का अनोखा उत्पाद, जो कभी स्थानीय बाजारों तक ही सीमित था, अब विश्व मंच पर चमक रहा है, वैश्विक स्तर पर लोगों को लुभा रहा है और अंतर्राष्ट्रीय प्रशंसा प्राप्त कर रहा है।
सुनहरे उत्पादों से परे, ओडीओपी केवल एक अभियान नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता की एक क्रांति है। ओडीओपी, क्षेत्र-विशिष्ट उत्पादों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ, न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं को ऊपर उठाता है बल्कि आत्मनिर्भर और विकसित भारत की संकल्पना में भी योगदान देता है। यह तो इस सफल यात्रा की शुरूआत है, अभी भी मीलों संभावनाओं की खोज की जानी है, नए सूत्र बुने जाने हैं और अनकही कहानियां बताई जानी हैं। जैसे-जैसे ओडीओपी की मुहिम आगे बढ़ रही है, वैसे-वैसे ओडीओपी की मीठी महक हवाओं को सुगंधित करने लगी है।