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महंगाई के इलाज मंदी का कारण?

-MILIND KHANDEKAR-

हिसाब किताब के पाठकों को पता है कि हम पिछले कुछ हफ़्तों से इकनॉमी को लेकर ख़तरे की घंटी बजा रहे हैं. एक तरफ़ मंदी का ख़तरा और दूसरी तरफ़ महंगाई का. हमारा डर सही साबित हुआ. सितंबर की तिमाही में अर्थव्यवस्था की विकास दर यानी जीडीपी ग्रोथ 5.4% रहीं. दो साल में यह सबसे धीमी ग्रोथ है. इसका असर शेयर बाज़ार पर तो पड़ेगा ही, हमारी आपकी मुश्किलें भी बढ़ेंगी.

आप सोच रहे होंगे सब चंगा सी जैसे नारों के बीच अर्थव्यवस्था यहाँ कैसे फंस गई तो इसका बड़ा कारण है रिज़र्व बैंक की महंगाई कम करने की दवाई. अब उसका साइड इफ़ेक्ट दिखने लगा है. कोरोनावायरस के बाद रिज़र्व बैंक ने महंगाई कम करने के लिए ब्याज दर बढ़ाना शुरू किया. यह पुराना फ़ॉर्मूला है जब महंगाई बढ़ जाए तो लोगों और कंपनियों के हाथ में से पैसा खिंच लो. ब्याज दरों में बढ़ोतरी से क़र्ज़ लेना महँगा होता है. कंपनियाँ नए प्रोजेक्ट लगाने से बचती है और लोग भी ख़र्च में कटौती करते हैं.लोन नहीं लेते हैं. इसका असर सामान और सर्विस की डिमांड पर होता है. डिमांड कम होने से सामान या सर्विस के बढ़ते दाम पर ब्रेक लगता है. इस दवाई में ख़तरा बना रहता है कि कहीं डिमांड इतनी कम ना हो जाए कि मंदी आ जाएँ. लोगों की आमदनी ना बढ़े या नौकरी जाने लगे. कंपनियों का फ़ायदा कम होने लगे. यह सब हम होते हुए देख रहे हैं.

रिज़र्व बैंक का इलाज दो महीने पहले तक काम कर रहा था. महंगाई क़ाबू में आ रही थी. रिज़र्व बैंक को टार्गेट दिया है सरकार ने महंगाई दर 4% रहें. दो प्रतिशत कम ज़्यादा हो सकती है. अक्टूबर में यह दर 6% से पार हो गई. अब तक राहत की बात थी कि जीडीपी ग्रोथ ठीक ठीक बनी हुई थी. पहले क्वार्टर में उम्मीद कम रही तो दलील दी गई कि चुनाव के कारण सरकारी खर्च नहीं हुआ. दूसरे क्वार्टर में ग्रोथ कम होने की आशंका थी लेकिन इतनी कम होगी यह किसी ने नहीं सोचा था.

अब इसका इलाज है कि रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में कटौती करें ताकि लोगों और कंपनियों के हाथ में पैसे आने का चक्र फिर शुरू हो सकें, इसमें अड़चन है महंगाई की. रिज़र्व बैंक जल्दबाज़ी में ब्याज दरें काट दें तो महंगाई फैल सकती हैं. अगर नहीं काटेगी तो मंदी का ख़तरा बढ़ जाता है. रिज़र्व बैंक की बैठक चार और पाँच दिसंबर को होगी. अब देखना है कि ब्याज दरों में अभी कटौती होती है या फ़रवरी में.

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