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जोशीमठ संकट – सरकार पर संवेदनहीनता और भाजपा पर आपदा में राजनीतिक लाभ तलाशने का आरोप

जयसिंह रावत द्वारा

देहरादून, 3 दिसंबर । जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने उत्तराखंड सरकार पर संवेदनहीनता और सत्ताधारी दल पर आपदाग्रस्त ऐतिहासिक नगर के संकट पर राजनीति  करने का आरोप लगाया है। समिति का कहना है कि जोशीमठ के सैकड़ों घर, अस्पताल सेना के भवन, मंदिर, सड़कें, प्रतिदिन धंसाव की जद में हैं और यह हर दिन बढ़ रहा है ।
20 से 25 हजार की आबादी वाला नगर अनियंत्रित अदूरदर्शी विकास की भेंट चढ़ रहा है।

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति की ओर से संयोजक अतुल सती,  नगर पालिका परिषद के अध्यक्ष शैलेन्द्र पंवार, सचिव कमल रतूड़ी एवं बद्रीनाथ के विधायक राजेंद्र भंडारी की द्वारा जारी प्रेस बयान में कहा गया है कि

जोशीमठ में पिछले एक साल से अधिक से भूस्खलन भू धंसाव की परिघटना हो रही है जिससे जोशीमठ के सैकड़ों घरों में दरारें आ गयी हैं, ह जारों लोग प्रभावित हैं । लोगों के आशियाने उजड़ रहे हैं । लोग वर्षों की मेहनत से बनाए अपने घरों से उजड़ कर सड़क पर आने को हैं । दुनिया भर के मीडिया ने इस सवाल को उठाया है उसके बावजूद शासन प्रशासन का यह उपेक्षापूर्ण बर्ताव आश्चर्यजनक है ।जोशीमठ के सैकड़ों घर, असपताल सेना के भवन, मंदिर, सड़कें, प्रतिदिन धंसाव की जद में हैं और यह हर दिन बढ़ रहा है ।

बयान में कहा गया है की 20 से 25 हजार की आबादी वाला नगर अनियंत्रित, अदूरदर्शी विकास की भेंट चढ़ रहा है । एक तरफ तपोवन विष्णुगाड परियोजना की एनटीपीसी की सुरंग ने जमीन को भीतर से खोखला कर दिया है दूसरी तरफ बायपास सड़क जोशीमठ की जड़ पर खुदाई करके पूरे शहर को नीचे से हिला रही है ।

एक तरफ जनता पिछले एक साल से अधिक से त्राहि त्राहि कर रही है दूसरी तरफ शाशन परशशन मूक तमाशा देखता रहा है । जोशीमठ के स्थानीय प्रशासन ने एक साल में कई बार लिखने कहने के बावजूद घरों का सर्वे नहीं किया । दिसम्बर प्रथम सप्ताह में बहुत जोर डालने पर नगर पालिका को प्रभावितों की गिनती करने को कहा गया । अर्थात आपदा आने पर मरने वालों की गिनती करने के निर्देश दिए । नगर पालिका ने आदेश के क्रम में लगभग 3000 लोगों को चिन्हित किया जो आपदा आने पर प्रभावित होंगे । आपदा से बचाव के उपाय करने के बजाय आपदा की प्रतीक्षा करने का यह क्रूर ह्र्दयहीन रवैय्या बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है । इस राज्य को जिसे अपने बलिदानों से हमने हासिल किया उसमें जनता को मरने के लिये छोड़ देने का यह अनुपम उदाहरण शायद ही कहीं मिले ।

समिति के बयान के अनुसार 24 दिसम्बर को सरकार के इसी उपेक्षा एवं संवेदनहीन रवैय्ये के खिलाफ हजारों की संख्या में जनता सड़कों पर उतरी ।लोगों ने तत्काल पुनर्वास की मांग करते हुए प्रदर्शन किया ।लोग इस सर्दी के मौसम में दरारों से पटे घरों में बल्लियों के सहारे घर टिकाए रहने को मजबूर हैं ।

आरोप लगाया गया है कि 1 जनवरी को इसी सन्दर्भ में जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति ने विधायक बद्रीनाथ राजेंद्र भंडारी के साथ मुख्यमंत्री से समय लिया था । इस अपेक्षा से कि मुख्यमंत्री जोशीमठ की जनता के इन हालात को जानेंगे सुनेंगे  व तत्काल निर्णय लेंगे । किन्तु मुख्यमंत्री ने पूर्व कैबिनेट मंत्री, वर्तमान विधायक व संघर्ष समिति के लोगों, अध्यक्ष नगर पालिका जोशीमठ व अन्य लोगों को जो सुदूर जोशीमठ से बड़ी आशा से आए थे, बैठने तक को नहीं कहा । एक मिनट से कम में बात आधी अधूरी सुनकर चीफ सेक्रेटरी से बात करने की कह कर वह  आगे बढ़ गए । हमारे जोर देने पर विधायक बद्रीनाथ के दोबारा यह पूछने पर कि हम रुंके या जांय? उन्होंने  कह दिया कि चले जाओ ।

समिति के संयोजक अतुल सती का कहना है कि  यह बर्ताव न सिर्फ विधायक का बल्कि क्षेत्र की जनता का अपमान था। यह जोशीमठ की पीड़ित ठंड में राहत की उम्मीद कर रही जनता का भी अपमान था । मुख्यमंत्री से इस पर माफी की अपील करते हैं । सती के अनुसार शाम को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती को बुलाकर उनसे जोशीमठ के हालात व मांग जानने व इस पर मुख्यमंत्री से रात 10 बजे की मुलाकात में रखने की बात कही । यह सोचकर कि जनता के हित में शायद यह हो । और दिन में जो व्यवहार मुख्यमंत्री का रहा उसके शमन का यह प्रयास हो, संघर्ष समिति के संयोजक प्रदेश अध्यक्ष के आवास पर गए । उन्हें स्थिति से अवगत कराया व लोगों की तत्काल जरूरत से अवगत कराया गया । जिस पर तत्काल निर्णय लेना जरूरी था ।

किन्तु  सुबह के अखबार में उनका बयान आया है । जिससे यह लगता है कि बयान पहले ही अखबार को देकर बाद में लीपापोती को हमे बुलाया गया । सती के अनुसार प्रदेश अध्यक्ष ने आपदा से ग्रस्त लोगों के इस क्षण को भी राजनीति के अवसर लाभ उठाने का मौका बना लिया यह घोर आपत्तिजनक है यह असंवेदनशीलता की पराकाष्ठा है ।

 

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