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एक था जीवंत जोशीमठ …. जहाँ आज जीवन सुरक्षित नहीं

 

-जयसिंह रावत
धार्मिक, सामरिक, पर्यटन और पर्यावरण की दृष्टि से महत्वपूर्ण भारत चीन सीमा पर बसे देश के अंतिम शहर जोशीमठ का अस्तित्व गंभीर खतरे में है। अलकनन्दा नदी की ओर खिसक रहे इस ऐतिहासिक और पौराणिक नगर की जमीन धंसने के कारण सेकड़ों मकानों पर दरारें आ गयी हैं। नगर के किरायेदार मकान छोड़ रहे हैं और मूल निवासी ढहने की कगार पर बैठे अपने जर्जर मकानों की रखवाली को मजबूर हैं। इस संकट की जद में सेना की ब्रिगेड, गढ़वाल स्काउट्स और भारत तिब्बत सीमा पुलिस की बटालियन भी है। अपनी ही इमारतों के असह्य बोझ तले दबा यह शहर अपने ही घरों से निकलने वाले पानी के दलदल में धंस रहा है। यह संकट 1970 के दशक से अनुभव किया जा रहा है मगर न तो उत्तर प्रदेश और ना ही उत्तराखण्ड की सरकारों ने इसे बचाने के लिये अब तक कोई ठोस कार्ययोजना बनाई है।

प्रधानमंत्री मोदी ने हाल ही में सीमान्त गांव माणा को देश का पहला गांव घोषित किया है। उस लिहाज से जोशीमठ देश का पहला शहर हुआ। यह कोई साधारण बसावट नहीं है। यह आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा सनातन धर्म की रक्षा के लिये देश के चार कोनों में धर्म घ्वजावाहक चार सर्वोच्च धार्मिक पीठों में से एक, ज्योतिर्पीठ है। यह उत्तराखण्ड की प्राचीन राजधानी है, जहां से कत्यूरी वंश ने शुरू में अपनी सत्ता चलाई थी। यही से सर्वोच्च तीर्थ बदरीनाथ की तीर्थ यात्रा की औपचारिकताएं पूरी होती हैं, क्योंकि शंकराचार्य की गद्दी यही बिराजमान रहती है। फूलों की घाटी और नन्दादेवी बायोस्फीयर रिजर्व का बेस भी यही नगर है। हेमकुंड यात्रा भी यहीं से नियंत्रित होती है। नीती-माणा दर्रों और बाड़ाहोती पठार पर चीनी हरकतों पर इसी नगर से नजर रखी जाती है। विदित है कि चीनी सेना बार-बार बाड़ाहोती की ओर से घुसपैठ करने का प्रयास करती रहती है। उन पर नजर रखने के लिये भारत तिब्बत पुलिस की बटालियन और उसका माउंटेंन ट्रेनिंग सेंटर यहीं है। यहीं पर गढ़वाल स्काउट्स का मुख्यालय और 9 माउंटेंन ब्रिगेड का मुख्यालय भी है। जोशीमठ के सैकड़ों घर, असपताल सेना के भवन, मंदिर, सड़कें, प्रतिदिन धंसाव की जद में हैं। यह 20 से 25 हजार की आबादी वाला नगर अनियंत्रित अदूरदर्शी विकास की भेंट चढ़ रहा है। एक तरफ तपोवन विष्णुगाड परियोजना की एनटीपीसी की सुरंग ने जमीन को भीतर से खोखला कर दिया है दूसरी तरफ बायपास सड़क जोशीमठ की जड़ पर खुदाई करके पूरे शहर को नीचे से हिला रही है ।

भूवैज्ञानिकों के अनुसार जोशीमठ शहर मुख्यतः पुराने भूस्खलन क्षेत्र के ऊपर बसा है और इस प्रकार के क्षेत्रों में जल निस्तारण की उचित व्यवस्था न होने की स्थिति में जमीन में अन्दर जाने वाले पानी के साथ मिट्टी एवं अन्य के पानी के साथ बह जाने के कारण भू-धंसाव की स्थिति उत्पन्न हो रही है। विगत फरवरी-2021 में धौलीगंगा मंे आयी बाढ़ से अलकनन्दा के तट के कटाव के उपरान्त इस समस्या ने गम्भीर स्वरूप ले लिया है।

भू-धसाव व भू-स्खलन का अध्ययन कर कारणों का पता लगाने तथा उपचार हेतु संस्तुति करने के उद्देश्य से राज्य आपदा न्यूनीकरण एवं प्रबंधन केन्द्र के निदेशक एवं भूविज्ञानी डा0 पियूष रौतेला के नेतृत्व में जुलाई, 2022 में एक विशेषज्ञ दल का गठन किया गया था। इस रौतेला कमेटी ने भी शहर की जलोत्सारण व्यवस्था सुधारने, जोशीमठ के नीचे अलकनन्दा द्वारा किये जा कटाव को रोकने तथा भारी निर्माण रोकने का सुझाव दिया था। मगर कमेटी की रिपोर्ट पर अभी बैठकों का दौर ही चल रहा है।

दरअसल 1970 की अलकनन्दा की बाढ़ के बाद उत्तर प्रदेश सरकार ने 1976 में गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर महेशचन्द्र मिश्रा की अध्यक्षता में वैज्ञानिकों की एक कमेटी का गठन कर जोशीमठ की संवेदनशीलता का अध्ययन कराया था। इस कमेटी में सिंचाई एवं लोक निर्माण विभाग के इंजिनीयर, रुड़की इंजिनीयरिंग कालेज (अब आइआइटी) तथा भूगर्व विभाग के विशेषज्ञों के साथ ही पर्यावरणविद् चण्डी प्रसाद भट्ट को शामिल किया था। ( रौतेला एवं डा0 एम.पी.एस.बिष्ट: डिसआस्टर लूम्स लार्ज ओवर जोशीमठ: करंट साइंस वाल्यूम 98) इस कमेटी ने अपनी अध्ययन रिपोर्ट में कहा था कि जोशीमठ स्वयं ही एक भूस्खलन पर बसा हुआ है और इसके आसपास किसी भी तरह का भारी निर्माण करना बेहद जोखिमपूर्ण है। कमेटी ने ओली की ढलानों पर भी छेड़छाड़ न करने का सुझाव दिया था ताकि जोशीमठ के ऊपर कोई भूस्खलन या नालों में त्वरित बाढ़ न आ सके। जोशीमठ के ऊपर औली की तरफ से 5 नाले आते हैं। ये नाले भूक्षरण और भूस्खलन से बिकराल रूप लेकर जोशीमठ के ऊपर वर्ष 2013 की केदारनाथ की जैसी आपदा ला सकते हैं।

जोशीमठ का समुचित मास्टर प्लान न होने के कारण उसकी ढलानों पर विशालकाय इमारतों का जंगल बेरोकटोक उगता जा रहा है। हजारों की संख्या में बनी इमारतों के भारी बोझ के अलावा लगभग 25 हजार शहरियों के घरों से उपयोग किया गया पानी स्वयं एक बड़े नाले के बराबर होता है जो कि जोशीमठ की जमीन के नीचे दलदल पैदा कर रहा है। उसके ऊपर सेना और आइटीबीपी की छावनियों का निस्तारित पानी भी जमीन के नीचे ही जा रहा है। निरन्तर खतरे के सायरन के बावजूद वहां आइटीबीपी ने भारी भरकम भवन बनाने के साथ ही मलजल शोधन संयंत्र नहीं लगाया। कई क्यूसेक यह अशोधित मलजल भी जोशीमठ के गर्भ में समा रहा है। यही स्थिति सेना के शिविरों की भी है। जोशीमठ के बचाव के बारे में अब सोचा जा रहा है, जबकि इस शहर का अस्तित्व ही संकट में पड़ गया।

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