केदारनाथ के नाम से ही उत्पन्न हुवा केदारखण्ड और फिर बना उत्तराखण्ड
–प्रो. दिनेश प्रसाद सकलानी
जिस प्रकार नदियों में गंगा, पर्वतों में कैलाश, योगियों में याज्ञवल्क्य, भक्तों में नारद, शिला में शालिग्राम, अरण्यों में बद्रिकावन धेनुओं में कामधेनु, मुनियों में सुखदेव, सर्वज्ञों में व्यास और देशों में भारत सर्वश्रेष्ठ है उसी प्रकार तीर्थों में भृगुतुगं पर्वत पर भृगुशिला और वहां स्थित केदार तीर्थ सर्वश्रेष्ठ हैं। इसी भृगु तुंग पर्वत की भृगुशिला पर तप करने से गो हत्या, ब्रह्म हत्या, कुल हत्या के पाप से भी मुक्ति मिल जाती है। केदारखंड में भक्तों को यह भी सावधान किया जाता है कि केदार तीर्थ के दर्शनों के बगैर बद्रीनाथ चले जाने से यात्रा निष्फल हो जाती है । फलत: वामावर्त यात्रा विधान चलता है अर्थात बायें से यात्रा करते हुए यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ होकर तब बद्रीनाथ की यात्रा पर जाया जाता है।
जैसे हिमालय को प्रकृति का सर्वोच्च महामंदिर माना जाता है उसी प्रकार केदार तीर्थ और मंदिर को उत्तराखंड के विराट और भव्यतम तीर्थ की संज्ञा प्रदान की जाती है। ज्ञातव्य है कि हिमालय के पांच प्रमुख खंडों की गणना करते हुए पुराणों में स्थित पांच प्रधान तीर्थों की अवधारणा है – नेपाल में पशुपतिनाथ, कूर्मांचल में जागेश्वर, केदारखंड में केदारनाथ, हिमाचल में बैजनाथ और कश्मीर में अमरनाथ। केदार तीर्थ की महत्वपूर्ण अवस्थिति के कारण ही गढ़वाल का प्राचीन नाम केदारखंड पड़ा, और जब इस भूमि के तीर्थों की महत्ता का प्रतिपादन एक पुराण में हुआ तो उसका नाम केदारखंड पुराण ही रखा गया। अतः श्रीकेदारनाथ धाम की महत्ता के कारण ही स्कंद पुराण में यह क्षेत्र केदारखंड के नाम से उल्लिखित है।
वर्तमान उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में अवस्थित श्री केदारनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मंदिर समुद्र तल से 11753 फुट (3583 मीटर )की ऊंचाई पर महापंथ शिखर के नीचे एक हिमानी उत्तल पर मंदाकिनी उद्गम के समीप उसके वाम तल पर स्थित है। यह मंदिर खर्चा खंड और भरतखंड शिखरों के पास केदार शिखर पर स्थित है जिसके वाम भाग में पुरंदर पर्वत है। श्रीकेदारनाथ धाम का मंदिर कत्यूरी शैली में निर्मित है। मंदिर की रचना लगभग 6 फुट ऊंचे पाद वेणिबंध पर है। चबूतरे के बाहर चारों ओर बड़ा खुला अहाता है। इसके निर्माण में भूरे रंग के विशाल पत्थरों का प्रयोग किया गया है। यह मंदिर छत्र प्रसाद युक्त है। इसके गर्भगृह में त्रिकोण आकृति की एक बहुत बड़ी ग्रेनाइट की शीला है। ग्रेनाइट शीला का पूरा भाग पर्याप्त ऊंचाई तक उभरा है जिसका यात्रीगण उदक कुंड से ताम्रकलश में जल भरकर अभिषेक करते हैं, और अंकमाल पर मस्तक छुवाते हैं। लिंग में घृत मर्दन करने, श्रावण के महीने में ब्रह्म कमल पुष्प चढ़ाने, तथा रुद्री पाठ और उपमन्यु कृत महेश स्तुति करने का यहां बड़ा महात्म्य माना जाता है। ग्रेनाइट के इस लिंग के चारों ओर अर्घा है जो अति विशाल है और एक ही पत्थर का बना है। इसी स्वयंभू केदारलिंग की उपासना पांडवों ने की थी, ऐसी मान्यता है। सभा मंडप में चार विशाल पाषाण स्तंभ हैं तथा दीवारों के गौरवों में नवनाथों की मूर्तियां हैं। दीवारों पर सुंदर चित्रकारी भी की गई है। मंडप के मध्य में पीतल के नंदी हैं परंतु इससे बड़ी आकृति का सुंदर सुडौल पाषाण का नंदी बाहर विराजमान है। मुख्य द्वार के दोनों ओर दो द्वारपाल हैं जिन्हें श्रृंगी और बृंगी गण कहा जाता है, सबसे ऊपर भैरव मूर्ति है तथा द्वार के बाएं ओर 80 सेंटीमीटर की गणेश मूर्ति है। केदारनाथ की श्रृंगार मूर्ति पंचमुखी है। मंदिर के बाहर रक्षक देवता भैरव नाथ का मंदिर है।
समग्र पौराणिक कथाओं एवं उद्धरणों का यहां पर उल्लेख करना तो संभव नहीं है, परंतु इन सब का यह सार निकलता है कि शिव का मूल निवास कैलाश शिखर है जो परेणहिमवंत (हिमालय के पार) है। पर्वतराज हिमालय की पुत्री से विवाह के बाद वे हिमालय के रम्यस्थानों में निर्व्दंद विचरण करने लगे। नेपाल में बागमती तट से लेकर बद्रिका वन में विष्णुपदी तक और मंदाकिनी स्रोत प्रदेश में भृगुतुंग से लेकर नाग प्रदेश जागनाथ (मानसखण्ड) तक वे विभिन्न रूपों में विचरण करते हुए मिलते थे, कहीं मृग, कहीं वृषभ, कहीं महिष तथा कहीं लिंग रूप में। केदारनाथ में महिष का पृष्ठ भाग है शेष अंग 4 अन्य चार केदार में प्रकट हुए, और इस प्रकार उत्तराखण्ड में पंच केदार तीर्थों की स्थापना हुई।
पुराणिक कथनों को हम पुरा कथन मात्र कहकर नहीं टाल सकते। केदार तीर्थ की प्राचीनता के बारे में अधिकांश विद्वान मानते हैं कि महाभारत के समय से ही यह तीर्थ विद्यमान था और उस समय इसे भृगु तीर्थ कहा जाता था। तत्पश्चात निरंतर इस तीर्थ की मान्यता रही है और ऐतिहासिक रूप से हम इस तीर्थ को महाभारत काल के समय का मान सकते हैं। यद्यपि जहां तक मंदिर निर्माण का प्रश्न है केदारनाथ के वर्तमान मंदिर से पहले पृष्ठ भाग में प्राचीन मंदिर था। राहुल सांकृत्यायन ने भी इस बात को माना है। 11 वीं शताब्दी तक उत्तर भारत के शैवाचार्य ही पुजारी होते थे। केदारनाथ मंदिर के पीछे तथा नव दुर्गा की मढी में कत्यूरी काल 800 से 11 ई. के मध्य की कई मूर्तियां थीं।
जहां तक मंदिर के निर्माण का सवाल है वर्तमान समय के इस मंदिर को राहुल सांकृत्यायन दसवीं से बारहवीं शताब्दी में निर्मित बताते हैं। ऐतिहासिक दृष्टि से अगर हम मंदिर की विवेचना करते हैं तो प्रथम मंदिर का समय आठवीं – नौवीं शती ई. के आसपास ठहरता है। यशोवर्मा ने केदारनाथ की यात्रा की और बाद में भोजराज द्वारा केदारनाथ मंदिर का नवनिर्माण किया गया। चालुक्य राजा कुमार पाल ने केदारनाथ की यात्रा की और मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया क्योंकि भोजराज द्वारा निर्मित मंदिर में दरारें आ चुकी थीं। कुमारपाल द्वारा संभवतः 1170 ई. के मध्य इस मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया। इसी समय नालापाटन, चोवटा, पातों तथा त्रियुगीनारायण में दान सदावर्त की व्यवस्था की परंपरा कायम हुई थी और केदारनाथ जाने के अनेकानेक संक्षिप्त मार्गों का परिष्कार हुआ था। 1841 ई. तक रावलों द्वारा इन मार्गों की व्यवस्था करते रहने के उल्लेख मिलते हैं। केदारनाथ मंदिर से संबंधित ताम्रपत्र ऊखीमठ में हैं। उनमें सबसे प्राचीन 1755 ई. का फतेपति शाह का है । 1762 ई. के जयकृत शाह, 1773 ई. के प्रदीप शाह तथा 1797 ई. के नेपाल की रानी कांतिमती का ताम्रपत्र गूंठ भूमि दान से संबंधित है। 1811 ई. का गोरखा ताम्रपत्र भी भूमिदान से ही संबंधित है।
केदारनाथ मंदिर का समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा है। केदारनाथ मंदिर की बहियों में हमें 1842, 1850, 1891 के समय में की गई कभी-सीढ़ियों की मरम्मत, कभी छतरी की, तो कभी धर्मशाला आदि की मरम्मत के विवरण मिलते हैं। 1803 के भूकंप में भी आंशिक क्षति हुई थी जिसकी मरम्मत गंगोत्री के समान ही अमर सिंह थापा गोरखा गवर्नर ने कराई थी।
16 जून सन 2013 को शाम 8:00 बजे यहां पर चोराबारी झील टूटने के कारण बहुत ज्यादा पानी व मलवा बहने से शंकराचार्य की समाधि सहित छोटे-छोटे मंदिर और 8 कुंड, सभी दुकानें और गढ़वाल मंडल विकास निगम का गेस्ट हाउस सहित पानी में समा गए। रामबाड़ा (केदारनाथ के पैदल रास्ते में पड़ने वाला पौराणिक कथाओं में वर्णित एक कस्बा) भी पूरी तरह तबाह हो गया था।
इस जल प्रलय में चमत्कारिक ढंग से श्री केदारनाथ मंदिर को एक बड़े भीमकाय पत्थर ने सुरक्षित कर लिया जिसे बाद में भीमशिला के नाम से जाना जाता है, और पूजा अर्चना की जाती है। किंतु मन्दिर के उत्तर और पूर्व क्षेत्र में लक्ष्मी नारायण मंदिर सहित समस्त निर्माण पूर्ण रूप से ध्वस्त हो गया। 2013 में क्षतिग्रस्त केदारनाथ धाम के पुनर्निर्माण का शिलान्यास माननीय प्रधानमंत्री मोदी ने अप्रैल 2017 में किया था। उसके बाद अनवरत रूप से कार्य चल रहा है। इसका प्रथम चरण पूर्ण हो चुका है और व्दित्तीय चरण का कार्य भी लगभग समाप्ति पर है। ₹ 120 करोड़ की राशि इस कार्य के लिए स्वीकृत की गई है जिसमें नियंत्रण कक्ष का र्निर्माण, श्रद्धालुओं के लिए प्रतीक्षा- पंक्तियों का निर्माण और प्रतीक्षालय, चिकित्सालय, ध्यान गुफाएं, संगम घाट व पुल निर्माण, भैरव गुफा सहित, शंकराचार्य समाधि का पुनर्निर्माण सभी कार्य प्रगति पर हैं। प्रधानमंत्री मोदी जी अनवरत रूप से कार्य की प्रगति की समीक्षा कर रहे हैं और अनेक बार श्री केदारनाथ जी की यात्रा कर चुके हैं। भव्य एंव दिव्य केदारधाम का पुनर्निर्माण माननीय प्रधानमंत्री जी के मार्गदर्शन में प्रगति एवम पूर्णता की ओर है।