Front Page

के एम मुंशी जिन्होंने भारतीय संस्कृति, स्वतंत्रता संग्राम और संविधान निर्माण में योगदान दिया

Kanhaiyalal Maneklal Munshi (KM Munshi) was a distinguished Indian freedom fighter, writer, and educator, known for his significant contributions to Indian politics, literature, and culture. Born on December 30, 1887, in Gujarat, he was an ardent follower of Mahatma Gandhi and actively participated in the Indian freedom struggle, including movements like the Non-Cooperation Movement and the Civil Disobedience Movement. Munshi played a crucial role in the drafting of the Indian Constitution as a member of the Constituent Assembly. He was a founder of the Bharatiya Vidya Bhavan in 1938, a cultural and educational institution that continues to promote Indian arts, literature, and values. As a prolific writer, he penned numerous books in Gujarati, Hindi, and English, covering topics like Indian history, culture, and spirituality. Some of his notable works include “Gujarat and Its Literature”, “The History of Indian Art”, and “Bhagavad Gita and Spiritual Life”.

 

 

-उषा रावत –

कन्हैयालाल मुँशी का जीवन अनेक दृष्टियों से प्रेरणादायक था। वे एक ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने भारतीय संस्कृति, स्वतंत्रता संग्राम और संविधान निर्माण में अपने योगदान से एक नई दिशा दी। उनका साहित्य, उनके विचार और उनकी शिक्षाएँ आज भी भारतीय समाज को प्रेरित करती हैं। उनकी प्रमुख विशेषता यह थी कि उन्होंने भारतीय परंपराओं और आधुनिक विचारों के बीच संतुलन बनाए रखा, और इस संतुलन के माध्यम से भारत को एक मजबूत, आत्मनिर्भर और एकजुट राष्ट्र बनाने का सपना देखा।

कन्हैयालाल मानेकलाल मुँशी का जन्म 30 दिसम्बर 1887 को हुआ था, जिन्हें ‘घनश्याम व्यास’ के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने 1938 में एक शैक्षिक ट्रस्ट ‘भारतीय विद्या भवन’ की स्थापना की। श्री अरविंदो के प्रभाव में उनका झुकाव गांधीवादी कार्यों की ओर हो गया। लेकिन मुंबई में बसने के बाद, वे ‘भारतीय होम रूल आंदोलन’ में सक्रिय हो गए और 1915 में इसके स्थायी सदस्य बन गए। 1927 में, उन्होंने बॉम्बे विधान सभा के लिए चुनाव लड़ा, लेकिन ‘बारडोली सत्याग्रह’ के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया।

उन्होंने 1930 और 1932 के ‘सविनय अवज्ञा आंदोलन’ में भी भाग लिया। 1932 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्होंने 10 साल जेल में बिताए। 1937 में बॉम्बे प्रेसीडेंसी विधानसभा में चुनाव लड़ा और गृह मंत्री के रूप में कार्य किया। इस दौरान उन्होंने बॉम्बे में सांप्रदायिक दंगों को समाप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ‘व्यक्तिगत सत्याग्रह’ में भाग लेने के बाद, 1940 में उन्हें फिर से गिरफ्तार किया गया।

8 फरवरी 1971 को उनका निधन हो गया।

निष्कर्ष और साहित्य में योगदान

कन्हैयालाल मुँशी ने ग़ज़ारी भाषा में 50 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया। अंग्रेजी में भी उन्होंने कई लेखन कार्य किए। कन्हैयालाल मुँशी को साहित्य में भी विशेष पहचान प्राप्त थी। उन्होंने गुजराती, हिंदी और अंग्रेजी में लेखन किया। उनकी कृतियाँ भारतीय संस्कृति, इतिहास और दर्शन पर आधारित थीं। उनकी प्रमुख किताबों में गुजरात और उसका साहित्य”, भारतीय मूर्तिकला की गाथा”, भगवद गीता और आध्यात्मिक जीवन”, हैदराबाद के संस्मरण”, और कृषि विस्तार” शामिल हैं। मुँशी की लेखनी ने भारतीय समाज की जड़ों और संस्कृति को जीवित रखा। वे भारतीय धर्म, इतिहास, और संस्कृति के गहरे अध्येता थे, और उन्होंने इसे अपनी रचनाओं में सहज और प्रभावी रूप से प्रस्तुत किया।

 

संविधान सभा में उनके योगदान

संविधान सभा में दिए गए भाषणों में कन्हैयालाल मुँशी ने संविधान की भूमिका पर महत्वपूर्ण विचार व्यक्त किए। उन्होंने 15 अगस्त तक भारत को स्वतंत्र और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। कन्हैयालाल मुँशी का योगदान भारतीय संविधान के निर्माण में भी महत्वपूर्ण था। वे भारतीय संविधान सभा के सदस्य रहे और उन्होंने संविधान के मसौदे पर कई महत्वपूर्ण विचार रखे। मुँशी का मानना था कि भारतीय संविधान न केवल भारत की विविधता को सम्मान देगा, बल्कि यह देश के लोगों को एकजुट करने में भी सक्षम होगा। उन्होंने यह भी कहा था कि संविधान के माध्यम से हमें एक ऐसा राष्ट्र बनाना होगा जो समाजवाद, धर्मनिरपेक्षता और न्याय की नींव पर आधारित हो।

न्याय और संप्रभुता पर उनके विचार

कन्हैयालाल मुँशी ने न्याय और संप्रभुता के विषय पर भी अपने विचार व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि “धोखाधड़ी” पूरी दुनिया में और न्यायशास्त्र की हर प्रणाली में मौजूद है। उनका मानना था कि सरकारों को भारत के लोगों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कार्य करना चाहिए।

भारत की एकता और शक्ति

भारत की एकता पर उनके विचार बहुत स्पष्ट थे। उन्होंने कहा, “अब हमारे पास एक ऐसा भारत है जो पाकिस्तान के गठन से कहीं अधिक विशाल, एकीकृत और सामंजस्यपूर्ण है। यह हमें एक मजबूत और संगठित राष्ट्र बनाने का अवसर प्रदान करता है।”

वैश्विक चुनौतियों पर उनकी दृष्टि

कन्हैयालाल मुँशी का दृष्टिकोण हमेशा वैश्विक था। उन्होंने भारत को एक मजबूत और आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाने की आवश्यकता पर जोर दिया। उनका मानना था कि भारत को अपनी परंपराओं से जुड़ते हुए आधुनिकता की ओर भी बढ़ना चाहिए। उन्होंने कहा था कि “समय की आवश्यकता के अनुसार हमें अपनी नीतियों को बदलने की जरूरत है, लेकिन हमें अपनी सांस्कृतिक धरोहर से भी समझौता नहीं करना चाहिए।”

निधन और विरासत

कन्हैयालाल मुँशी का निधन 8 फरवरी 1971 को हुआ, लेकिन उनका योगदान आज भी जीवित है। उनकी विचारधारा, उनके योगदान, और उनके द्वारा स्थापित ‘भारतीय विद्या भवन’ जैसे संस्थान आज भी भारतीय समाज और संस्कृति को सशक्त बना रहे हैं। मुँशी का जीवन एक प्रेरणा है, जो हमें अपने कर्तव्यों, संस्कृति, और राष्ट्र के प्रति समर्पण का महत्व सिखाता है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!