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कास्तकारों के नाक में दम कर दिया उत्पाती बंदरों और लंगूरों ने ; लोग गांव छोड़ कर पलायन को मज़बूर

 

 

– गौचर से दिग्पाल गुसाईं की रिपोर्ट –

सीमान्त जिला चमोली के गौचर समेत  कई क्षेत्रों में इन दिनों बंदरों लंगूरों ने कास्तकारों के नाक में दम कर रखा है। कास्तकारों को अपनी फसल बचाने के लिए जान की परवाह किए बगैर इन खूंखार बंदरों का सामना करना पड़ रहा है । इस जिले में लोगों के पलायन का एक प्रमुख कारण बंदरों  का उत्पात भी है।

इन दिनों ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ठंड बढ़ने से बंदरों ने घटियों वाले क्षेत्रों का रुख कर कास्तकारों की फसलों को भारी नुक्सान पहुंचा दिया है। पहाड़ों ज्यादातर अच्छी खेती घाटियों में ही  होती है।

हालांकि गौचर क्षेत्र में बंदरों व लंगूरों ने स्थाई आशियाना बना दिया है। लेकिन इन दिनों एकाएक बंदरों की संख्या में वृद्धि होने से कास्तकार खासे परेशान हो गए हैं। ताजुब तो इस बात का है कि अलग राज्य बनने से ही पहाड़ का कास्तकार बंदरों, जंगली जानवरों व लंगूरों से निजात दिलाने की मांग करता आ रहा है। लेकिन  सब कुछ जानते हुए भी शासन प्रशासन कास्तकारों की इस समस्या का समाधान नहीं निकाल पा रहा है।

इस समस्या से निजात दिलाने के लिए कभी बंदर बाड़े तो कभी वधियाकरण की बात की जाती रही है। लेकिन सरकार की इन योजनाओं के धरातल पर नजर न आने से पहाड़ का कास्तकार अपने को ठगा सा महसूस कर रहा।

पिछले कई सालों से 2022 तक कास्तकारों की आमदनी दोगुनी करने की बात को बड़े जोर-शोर से प्रचारित किया जाता रहा है। लेकिन जमीनी हकीकत पर नजर डाली जाए तो चौंकाने वाले तथ्य सामने आएंगे। जंगली जानवर, बंदर व लंगूर कास्तकारों की फसलों को फल मिलने से पहले ही तहस नहस कर दे रहे हैं।

इससे कई लोगों ने कास्तकारी से दूरी बना ली है। गौचर मेले में 19 नवंबर को आयोजित प्रेस वार्ता में पत्रकारों ने जंगली जानवरों, बंदरों व लंगूरों का मामला उठाया था तब तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी ललित नारायण मिश्र ने वन, उद्यान व कृषि विभाग को संयुक्त अभियान चलाकर बंदरों से निजात दिलाने को कहा था। लेकिन बड़े अफ़सोस की बात है जिस प्रकार से इन दिनों बंदरों ने कास्तकारों की नाक में दम कर रखा है इससे प्रतीत होता है कि पत्रकारों की इस बात को आई गई बना दिया गया है।

प्रगतिशील कास्तकार विजया गुसाईं, किसमती गुसाईं, मनोरमा गुसाईं, बीना चौहान, भागीरथी कनवासी, कंचन कनवासी,जशमती कनवासी, पूनम कनवासी, प्रभा कनवासी, आदि का कहना कि कास्तकार अपनी फसल बचाने के अपनी जान की परवाह किए बिना गन खूंखार बंदरों से संघर्ष करने को मजबूर हैं।

सरकार किसी की भी हो अगर बंदरों, लंगूरों व जंगली जानवरों से निजात दिला देती है तो पहाड़ का कास्तकार कास्तकारी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकता है। इन लोगों का कहना है कि आगामी लोकसभा चुनाव में कास्तकारों की इस जटिल समस्या को मुद्दा बनाया जाएगा। उन्होंने सभी कास्तकारों को इस मुद्दे पर एकजूट होने की भी अपील की है।

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