मिट्टी ढोते- ढोते मटमैली हो गयी पिंडर, जलीय जीवों के अस्तित्व को गंभीर संकट
–रिपोर्ट -हरेंद्र बिष्ट-
थराली, 14 नवंबर। सात माह बाद भी पिंडर नदी का पानी गदला बहने के चलते इस नदी के जलीय जीव जंतुओं का अस्तित्व समाप्त होने का खतरा बढ़ता जा रहा हैं।अभी भी इस नदी में बह रहे गदल पानी को देख कर इसके जल्द साफ होने की दूर तक आसार नही दिख रहे हैं।
दरअसल इस वर्ष बारिश जल्दी शुरू होने के चलते अप्रैल दूसरे पखवाड़े से पिंडर नदी का पानी मटमैली बहने लगा था।बाद में बरसात शुरू होने के चलते पूरी बरसात राज्य की अन्य नदियों की तरह ही पिंडर भी गदली बहती रही, किंतु सितंबर के अंतिम पखवाड़े बाद बरसात समाप्त होते ही जहां राज्य की अन्य नदियां धीरे-धीरे साफ हो कर नीला रंग ले कर बह रही हैं वही पिंडर पूरे सात माह बाद भी गदली ही बह रही हैं। बताया जा रहा हैं कि पिंडर नदी अपने उद्गम स्थल पिंडारी ग्लेशियर से गदल नही बह रही है।
उद्गम स्थल से बागेश्वर जिले के कुंवारी गांव तक प्रदेश भर की अन्य नदियों की तरह ही नीला रंग लिए बह रही हैं। किंतु कुंवारी पिछले 6-7 वर्षों से गांव के नीचे लगातार हो रहे भारी भूस्खलन का मलुवा, पानी बह कर पिंडर नदी में जा रहा हैं वही से पिंडर नदी गदली हो कर आगे को बह रहा हैं। पिंडर अपने गदले पानी से कर्णप्रयाग से आगे अलकनंदा एवं देवप्रयाग से आगे भागीरथी और आगे गंगा नदी के रंग को भी प्रभावित किए हुए हैं।
जिस तरह से आजकल भी पिंडर का पानी काफी अधिक मटमैला हो कर बह रही हैं, उसे देखकर लगता नही है कि आने वाले कई हफ्तों तक पिंडर साफ होकर बहेगी। महिनों से पानी गदला बहने के कारण जलीय जीव जंतुओं के साथ ही आम लोगों एवं इस नदी के आसपास विचरण करने वाले जंगली जानवरों पर भी पड़ने लगा हैं।शीत ऋतु शुरू होने के चलते जल स्रोत सुखने लगें हैं और इस नदी से लिफ्ट के जरिए गांव में जाने वाला पानी भी गदला पहुंच रहा है। जबकि जंगली जानवरों के साथ ही पालतू पशुओं को भी मजबूरन गदला पानी पीने पर मजबूर होना पड़ रहा है।
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लंबे समय तक नदी का पानी गंदा बहने का सीधा प्रभाव जलीय जीवों पर पड़ता हैं। इससे पानी में आक्सीजन की कमी हो जाती हैं। जिससे इसका सबसे अधिक प्रभाव मछलियों पर पड़ रहा हैं। क्यूं कि मछलियां गल्फोड़ो से सांस लेती हैं और लंबे समय तक उनके गल्फोड़ो में गंदा पानी जाने के कारण उनके ग्रोथ, प्रजनन क्षमता,आहार की खोज पर पड़ता है। जोकि पिंडर की मछलियों पर पड़ रहा है। पिंडर नदी ट्राउट मछलियों के लिए जाना जाता हैं। जोकि एक मांसाहारी मछली हैं जबकि इस नदी में मेगा कार्क,रोहु जैसी प्रजाति की मछलियां भी पाई जाती हैं। जोकि शाकाहारी मछलियां हैं। ऐसे में मांसाहारी ट्राउट मछली मेगा कार्क एवं रोहु को आसानी के साथ अपना शिकार बना लेगी। इसके अलावा प्रजनन के तहत नदियों के किनारे मछलियों के द्वारा छोड़े गए अंडों की गंदे पानी के कारण मछलियां उनकी सुरक्षा नही कर पाएंगे एवं पिंडर में मछलियों की कमी हो जाएगी। पिंडर के मछुआरों के अनुसार पिछले कुछ सालों से मछलियों की संख्या में काफी अधिक कमी आई है। जिससे साफ हो जाता है कि पिंडर में पानी का लंबे समय तक गदले रहने का सीधा प्रभाव मछलियों पर पड़ रहा हैं। यह बात नदी के पारिस्थितिकी संतुलन के लिए ठीक नही है। सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए ताकि पिंडर नदी का पारिस्थितिकीय संतुलन बना रह सके।
पद्मश्री कल्याण सिंह रावत
” मैती” मैती आंदोलन के
जनक एवं पर्यावरणविद् ।