आपदा/दुर्घटनाब्लॉग

अगर बड़ा भूचाल आया तो मसूरी -नैनीताल को सर्वाधिक खतरा

–जयसिंह  रावत

आये दिन आने वाले भूकम्प के झटकों के कारण उत्तराखण्ड सहित हिमालयी राज्यों में लोगों के मन में भूकम्प का खौफ घर कर ही रहा था कि तुर्की-सीरिया में भूकम्प के विनाशकरी झटकों ने और अधिक डरा दिया। क्योंकि विशेषज्ञों के अनुसार हिमालयी क्षेत्र भूकम्पों की दृष्टि से बहुत संवेदनशील है और यहां कभी भी बड़े झटके आने की संभावना बनी रहती है।इसी आशंका के चलते उत्तराखण्ड केआपदा न्यूनीकरणएवं प्रबंधन विभाग ने राज्य के कुछ क्षेत्रों की संवेदनशीलता के साथ ही उसकी संघातकता का अध्ययन कराया जिमें पहाड़ों कीरानी मसूरी और नैनीताल की स्थिति काफी चिन्ताजनक पायी गयी है।

राज्य आपदा प्रबन्धन केन्द्र के भूवैज्ञानिकों के अनुसार हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा से लेकर बिहार तक कहीं भी बड़े और विनाशकारी भूचाल की सम्भावनाओं से इन्कार नहीं किया जा सकता है।इसलिये मसूरी, नैनीताल और बागेश्वर नगरों की भूकम्प घातकता का आंकलन पूरा करने के बाद अब विभाग 7 अन्य नगरों का सर्वेक्षण कर रहा है,जिसमें उत्तराखण्ड की राजधानी देहरादून भी शामिल है। इसके अलावा आइ.आइ.टी.रुड़की द्वारा अल्मोड़ा में सम्भावित विनाश का आंकलन किया गया है।

राज्य आपदा प्रबन्धन केन्द्र के डा0 पियूष रौतेला के अनुसार जिन शहरों में भवनों का सर्वे किया जा रहा है उनमें देहरादून महानगर के अलावा चमोली, पिथौरागढ़,पौड़ी, जोशीमठ, श्रीनगर और रुद्रप्रयाग शामिल हैं। देहरादून में लगभग 14 हजार मकानों का सर्वेक्षण कर डाटा तैयार कर लिया गया है, मगर अब भी लगभग 1 लाख मकानों की भूकम्प के आगे टिक सकने की क्षमता का आंकलन होना है। देहरादून में सबसे घनी आबादी वाले खुड़बुड़ा और चक्खूवाला का डाटा बेस तैयार हो चुका है।

वैज्ञानिकों के अनुसार अब तक के सर्वेक्षण मसूरी और नैनताल की स्थिति काफी चिन्ताजनक पाई गयी है, क्योंकि ये दोनों शहर अंग्रेजों द्वारा बसाये गये हैं और वहां के ज्यादातर मकान उसी जमाने के हैं जो कि काफी जर्जर हो चुके हैं। उन्होंने बताया कि इन दोनों विश्व विख्यात पर्यटन नगरों के स्कूल और अस्पताल ज्यादा खस्ता हाल में हैं और अगर दुर्भाग्य से रिक्टर पैमाने पर 8 परिमाण तक का भी कोई भूचाल आया तो स्थिति बहुत ही गम्भीर हो सकती है।

डा0 पियूष रौतेला और उनके सहयोगी गिरीश चन्द्र जोशी तथा भूपेन्द्र भैंसोड़ा द्वारा किये गये एक अध्ययन में कहा गया है कि अगर मसूरी में या उसके आस पास कोई बड़ा भूकम्प आता है तो वहां कम से कम 18 प्रतिशत पुराने जीर्णसीर्ण भवन जमींदोज हो सकते हैं जिससे लगभग 369 लोग मारे जा सकते हैं और 238 करोड़ से अधिक की सम्पत्तियां क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। नैनीताल के 13 आवासीय वार्डों के 3110 भवनों पर किये गये ताजा सर्वेक्षण के अनुसार वहां बड़े भूकम्प की स्थिति में 396 भवन अति जोखिम वाली श्रेणी 5 और 4 में पाये गये हैं। इनमें से 92 प्रतिशत भवन 1950 से पहले के बने हुये हैं। अगर ये भवन ढह गये तो तो सरोवर नगरी मलवे में बदल जायेगी।

डा0 रौतेला के अनुसार सन् 1905 में कांगड़ा और 1934 में बिहार नेपाल सीमा पर 8 परिमाण का भूचाल आया था। उसके बाद इस इलाके में इतने अधिक शक्तिशाली या विनाशकारी भूचाल नहीं आये। इसलिये भूगर्व में संकलित उर्जा तब से लेकर बाहर नहीं निकल पायी। यह उर्जा कांगड़ा और बिहार के बीच कहीं भी और कभी भी भयंकर भूकम्प के रूप में निकल सकती है। 1992 में उत्तरकाशी और 1999 में चमोली के भूकम्प भी रिक्टर पैमाने पर साढ़े 6 अंक तक ही मापे गये थे।

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