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“पलायन” नहीं रोजगार की तलाश कहिये !

–गोविन्द प्रसाद बहुगुणा
पलायन का आदान- प्रदान इस तरह शुरु हुआ कि पहले लोगों की शरणस्थली पहाड़ होती थी  लेकिन अब पहाड़ों के लोग ही विभिन्न देश -विदेशों में रोजगार के खातिर शरण ले रहे हैं । एक उनियाल बन्धु पढ़ाई और रोजगार के खातिर अमेरिका गये तो वहां के  ओनिअल बन गए । अमेरिका में  उस समय एक प्रसिद्ध हास्य अभिनेता तथा टीवी / सिनेमा  कलाकार  –  Ed O’Neill (Edward Leonard)  हुए जिनकी प्रसिद्धी की धूम मची हुई थी ,  तो उसी तर्ज पर उनके मित्रों ने भी “उनियाल जी” को भी *ओनिअल*  पुकारना शुरू कर दिया ।  हिंदुस्तान वापस आये तो यहां भी ओनिअल बने रहे , इसी तरह बहुगुणा लोग भी  बंगाल के गौड़ ब्राह्मण /बंद्योपाध्याय थे,  जो गढ़वाल में आकर  बुघाणी में बस गये थे -इस तथ्य  का उल्लेख प्रतिष्ठित बहुभाषाविद् राहुल सांकृत्यायन जी ने भी  अपनी पुस्तक में किया है  ।
अंग्रेजी  फौज में एक भगोड़ा अफसर Frederick Wilson गढ़वाल के हरसिल में आकर छिप गया था , उसने हरसिल में सेब के उद्यान लगाए और गंगोतरी के निकटवर्ती गाँव मुखबा की  एक  सुंदरी कन्या से विवाह कर लिया था..उसी ने गढ़वाल में सबसे पहले जंगलों की वन सम्पदा का  दोहन  शुरू किया, देवदार और चीड़ के वृक्षों को कटवाकर, उनकी चिरान करवाकर उनके स्लिपर्स   नदियों की धारा में बहा ले जाकर  मैदानी क्षेत्रों में व्यापारिक उद्देश्य के लिए पहुंचाना शुरू  किया । इस व्यापार में उसने टिहरी के राजा को भी  साझीदार बना दिया था जिसने पहले अंग्रेजों की डर  से विल्सन को अपने राज्य में शरण देने से मना कर दिया था ..विल्सन ने इस क्षेत्र में Water navigation को ट्रांसपोर्ट का साधन बनाया।
    इसी प्रकार किसी समय वर्तमान रुद्रप्रयाग जिले के तल्ला नागपुर बमोली गांव के  एक बद्रीदत्त बमोला जी  जहाज में कुली बनकर फिजी द्वीप चले गए थे , उनको लोग   बद्री महाराज  के नाम से आज भी याद करते हैं। उनके बच्चे ऑस्ट्रेलिया  में पढ़े और एक बेटा  उनका बाद में फिजी के गवर्नर बने …दिलचस्प कहानी है इस पलायन की l
अब और आगे सुनिए उत्तरकाशी जनपद के भटवाड़ी टकनौर  में जब मैं प्राइमरी में पढता था,  तो वहां मेरा एक दोस्त बना था मेरा बंशीलाल I  उनकी एक दूकान थी भटवाड़ी में ,उसका परिवार  भारत पाकिस्तान विभाजन के समय रावलपिंडी  या शायद  लाहौर से जान बचाकर भागे  और उत्तरकाशी के इस सुदूर  कस्बे में एक झोपड़ी बनाकर रहने लगे I  शुरू में वे गुड़- चना बेचते थे, धीरे -धीरे उनकी परचून और कपड़े की दूकान बन गई…बंशीलाल अब नहीं रहे , काफी साल हुए दिवंगत हुए हो गए थे  । लेकिन मेरी  घनिष्ट दोस्ती के कारण उसके पिता सुन्दरदास जी और चाचा ठाकुरदास जी  ,बड़े भाई बालमुकुन्द जी भी मुझसे बड़ा स्नेह रखते थे । मेरे पिता जी उस समय भटवाड़ी में वनविभाग के  रेंज कार्यालय में क्लर्क नियुक्त थे , तो शाम को वे उनकी दुकान में बैठने जाते थे , हेल -मेल बढ़ता गया तो कभी हमको भोजन पर भी बुलाने लगे।  मैंने पहली बार तंदूरी रोटी का स्वाद उन्हीं के घर पर चखा था । वंशीलाल  ने ही  पहली बार मुझे अरेबियन नाइट्स  की “अलीबाबा और चालीस चोर की कहानी” सुनाई थी और लिखकर दी बहुत गजब लिखता था बंशीलाल , उसको मैने पहली दफा फाउन्टेन पेन से लिखते देखा था जिसको वह अपने पैजामें के अन्दर छिपाकर रखता था क्योंकि टीचर मारते थे जो पेन से लिखते देखा तो   ….
इसी तरह जिम कार्बेट भी ब्रिटिश मूल के अंग्रेज थे जिनका जन्म नैनीताल में हुआ था, उनके पिता और वह स्वयं भी  किसी समय फौज और रेलवे में नौकरी करते थे , वह प्रसिद्ध लेखक और  शिकारी थे । वन्य जीवन से उनका गहरा लगाव था . .उनकी किताब The Man Eating Leopard of Rudraprayag ,Jungle Lore तथा My India (उनकी आत्मकथात्मक पुस्तक )साहित्य की अमर कृतियों में गिनी जाती है जिन्हें मैंने आज तक अपने पास संभालकर रखा है ।….
 साधु संतों में भी ऐसे  अनेक लोग रहे हैं जिन्होंने गढवाल हिमालय को अपनी तपस्थली बनाया था उनमें स्वामी तपोवन जी और शिवानंद जी(Divine Life Society वाले) का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है । स्वामी तपोवन जी पर्वतारोही लेखक और कवि थे , वे आदिशंकराचार्य जी की जन्म स्थली केरल प्रांत के निवासी थे और यात्री के तौर पर गंगोत्री,यमुनोत्री और बद्रीनाथ आये थे ,फिर यहीं बस गये ।  उत्तरकाशी और गंगोत्री में उन्होंने अपना ठिकाना बनाया हुआ था , बचपन में एक बार मुझे भी पिता जी के साथ उनके दर्शन का सौभाग्य  प्राप्त हुआ था  । तपोवन जी की लिखी पुस्तकें बद्रीश स्तुति (Hymn to Badrinath), “ईश्वर दर्शन” , और “हिमालय दर्शन-Wanderings in the Himalayas ” नामक पुस्तकें अत्यंत रोचक हैं । तपोवन जी ने एवरेस्ट चोटी का नाम गौरी शंकर शिखर रखा था -…

( यह रोचक और ज्ञानवर्धक वृतांत आदरणीय गोविन्द प्रसाद बहुगुणा जी के फेसबुक वाल से सादर-साभार लिया गया है )

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