राष्ट्र को धर्म नहीं रष्ट्रभक्ति एकजुट रखती है : 1971 के युद्ध की मिसाल
–जयसिंह रावत
विश्व के इतिहास में 16 दिसम्बर का दिन अमिट हो गया। उसी दिन विश्व के राजनीतिक मानचित्र पर एक नया राष्ट्र उभरा और उसी दिन भारत की सेना के समक्ष पाकिस्तान के 93 हजार से अधिक सैनिकों ने अपने सेना प्रमुख जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाजी के साथ आत्म समर्पण कर युद्धों के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ दिया। विश्व के इतिहास और राजनीतिक भूगोल को बदलने वाले महानायक इंदिरा गांधी, मानेक शॉ और जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा आदि भले ही आज सशरीर मौजूद नहीं हैं मगर जब भी नया राष्ट्र बांग्लादेश अपना स्थापना दिवस मनायेगा और भारतवासी अपने गौरवमय इतिहास में झांकेंगे तो तब ये महानायक जरूर याद आयेंगे। यही नहीं पाकिस्तान जब भी भारत के खिलाफ सैन्य दुस्साहस करेगा तब-तब उसे 1971 की शर्मनाक हार जरूर याद आयेगी। सन् 1971 की जीत ने अंग्रेजों द्वारा धर्म के आधार पर 1905 में किये गये बंगाल विभाजन और दुबारा इसी आधार पर भारत के विभाजन की सोच को गलत साबित कर दिया।
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद सबसे बड़ा सैन्य समर्पण
विजय दिवस न केवल भारत की पाकिस्तान पर 1971 में शानदार जीत की याद दिलाता है बल्कि यह बांग्लादेश के जन्म की कहानी भी कहता है। तेरह दिनों तक चले इस युद्ध में भारतीय सेना के बहादुरी और शौर्य के सामने पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए। 16 दिसंबर 1971 को शाम 4.35 बजे पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल ए.के.नियाजी ने 93 हजार सैनिकों के साथ भारतीय सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा के सामने दस्तावेज पर हस्ताक्षर किए। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद का ये सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण था। इसके साथ ही दुनिया के मानचित्र पर एक नए देश बांग्लादेश का उदय हुआ। 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में भारत की विजय और बांग्लादेश के निर्माण ने पूरी दुनिया में जहां भारत का सम्मान बढ़ाया वहीं भारत ने दिखा दिया कि मानवता की रक्षा और अपनी सुरक्षा के लिए वह पूरी तरह से सक्षम और समर्थ है।
धर्म के नाम पर 1905 में हुआ था बंगाल विभाजन
पाकिस्तान का जन्म धर्म के आधार पर हुआ था लेकिन धर्म पाकिस्तान को लंबे अरसे तक एकजुट नहीं रख सका। तब मौजूदा पाकिस्तान पश्चिमी पाकिस्तान था और आज का बांग्लादेश पूर्वी पाकिस्तान के नाम से जाना जाता था। आजादी के कुछ साल बाद ही पंजाबी प्रभुत्व और पश्चिमी पाकिस्तान के दबदबे के खिलाफ पूर्वी हिस्से में असंतोष पनपने लगा। 1971 में बांग्लादेश का जन्म दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक घटनाओं में से एक थी। भारतीय सैनिकों ने जिस साहस से सिर्फ तेरह दिन पाकिस्तान को घुटने टेकने को मजबूर कर दिया, उसके साथ ही दुनिया का नक्शा बदल गया और दुनिया के नक्श पर बांग्लादेश नया देश बन गया। दरअसल आज का बांग्लादेश और 1971 से पहले का पूर्वी पाकिस्तान वही पूर्वी बंगाल था जिसे अंग्रेजों ने धर्म के आधार पर 1905 में विभाजित किया था।
धर्म एक फिर भी बंगालियों से भेदभाव
पाकिस्तान के जन्म के साथ से ही पश्चिमी पाकिस्तान की ओर से पूर्वी पाकिस्तान यानी बांग्लादेश के साथ भेदभाव शुरू हो गया। 1948 में उर्दू को पाकिस्तान की राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया गया. बांग्लाभाषी लोगों में इसे लेकर गुस्सा भड़क उठा। ढाका में छात्रों के एक बड़े समूह ने बांग्ला को बराबरी का दर्जा दिये जाने की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया। पुलिस ने निहत्थे छात्रों पर गोलियां चलाईं। कई निहत्थे लोग इस गोलीबारी में मारे गए। इसके बाद बांग्ला आंदोलन हिंसक हो गया। इस आंदोलन ने भाषाई पहचान को लेकर अलग देश की मांग के बीज बो दिए। इस आंदोलन ने बंगाली राष्ट्रीय अस्मिता को जन्म दिया और फिर शुरू हुई अलग राष्ट्र बनाने की मांग।
धर्म से संस्कृति को नही दबा सका पाकिस्तान
बांग्लादेश की आजादी को लेकर संघर्ष के बीज तो 1952 में ही पड़ गए गए थे, जब पाकिस्तानी हुकूमत ने उर्दू को पूरे देश की आधिकारिक भाषा बनाने की घोषणा की थी। बांग्ला संस्कृति व भाषा की अलग पहचान समेटे पूर्वी पाकिस्तान के लिए तब हुकूमत का वह फैसला अस्मिता का सवाल बन गया। जिसकी परिणिति एक अलग व स्वतंत्र देश के रूप में सामने आई। शेख मुजीबुर रहमान पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्ता के लिए शुरू से संघर्ष कर रहे थे। उन्होंने इसके लिए छह सूत्री कार्यक्रम की घोषणा की थी। इन सब बातों से वह पाकिस्तानी शासन की आंख की किरकिरी बन चुके थे। साथ ही कुछ अन्य बंगाली नेता भी पाकिस्तान के निशाने पर था। उनके दमन के लिए और बगावत की आवाज को हमेशा से दबाने के मकसद से शेख मुजीबुर रहमान और अन्य बंगाली नेताओं पर अलगाववादी आंदोलन के लिए मुकदमा चलाया गया। लेकिन पाकिस्तान की यह चाल खुद उस पर भारी पड़ गई। मुजीबुर रहमान इससे पूर्वी पाकिस्तान के लोगों की नजर में हीरो बन गए। इससे पाकिस्तान बैकफुट पर आ गया और मुजीबुर रहमान के खिलाफ षडयंत्र के केस को वापस ले लिया।
बहुमत के बावजूद मुजीब को पाक जनरलों ने सरकार बनाने नहीं दिया
बांग्लादेश के अस्तित्व के लिए पाकिस्तान में 1970 का चुनाव काफी अहम साबित हुआ। इस चुनाव में मुजीबुर रहमान की पार्टी अवामी लीग ने जबर्दस्त जीत हासिल की। पूर्वी पाकिस्तान की 169 से 167 सीट मुजीब की पार्टी को मिली। इस तरह 313 सीटों वाली पाकिस्तानी संसद में मुजीब के पास सरकार बनाने के लिए जबर्दस्त बहुमत था। लेकिन पाकिस्तान को नियंत्रित कर रहे पश्चिमी पाकिस्तान के नेताओं और सैन्य लीडरों को यह मंजूर नही था कि पूर्वी पाकिस्तानी या बंगाली पाकिस्तान पर शासन करें। मुजीब के साथ इस धोखे से पूर्वी पाकिस्तान में बगावत की आग स्वाभाविक थी। पूर्वी बंगाल लोग सड़कों पर उतरकर आंदोलन करने लगे। लेकिन पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान ने पूर्वी पाकिस्तान में सेना का सहारा लेकर दमन शुरू कर दिया।
अपने ही मजहब की सेना ने किये अमानवीय अत्याचार
पाकिस्तान के चुनावों में धोखा खाने के बाद पूर्वी पाकिस्तान में आजादी का आंदोलन दिन ब दिन तेज होता जा रहा था। पाकिस्तान की सेना ने आंदोलन को दबाने के लिए अत्याचार का सहारा लिया। मार्च 1971 में पाकिस्तानी सेना ने क्रूरतापूर्वक अभियान शुरू किया। पूर्वी बंगाल में बड़े पैमाने पर अत्याचार किए गए। हत्या और बलात्कार की पराकाष्टा हो गई। मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया। गिरफ्तारी और टॉर्चर से बचने के लिए बड़ी संख्या में अवामी लीग के सदस्य भागकर भारत आ गए। शुरू में पाकिस्तानी सेना की चार इन्फैंट्री ब्रिगेड अभियान में शामिल थी लेकिन बाद में उसकी संख्या बढ़ती चली गई। भारत में शरणार्थी संकट बढ़ने लगा। एक साल से भी कम समय के अंदर बांग्लादेश से करीब 1 करोड़ शरणार्थियों ने भागकर भारत के पश्चिम बंगाल में शरण ली। इससे भारत पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने का दबाव बढ़ गया।
भारत की मुक्ति संग्राम में निर्णायक भूमिका
बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम को 30 जनवरी 1971 के एयर इंडिया के ष्ष्गंगाष्ष्नाम के विमान के अपहरण और फिर कश्मीरी अलगाव वादियों द्वारा गंगा को जला देने की घटना से भी जोड़ा जाता है। माना जाता रहा है कि विमान अपहरण की इस घटना ने इंदिरागांधी को झकझोर दिया था। उसके बाद भारतीय आकाश से पाकिस्तानी विमानों के उड़ने पर भारत ने रोक लगा दी थी जिससे पाकिस्तानी सेना का मूवमेंट काफी प्रभावित हुआ। माना जाता है कि मार्च 1971 के अंत में भारत सरकार ने मुक्तिवाहिनी की मदद करने का फैसला लिया। मुक्तिवाहिनी दरअसल पाकिस्तान से बांग्लादेश को आजाद कराने वाली पूर्वी पाकिस्तान की सेना थी। मुक्तिवाहिनी में पूर्वी पाकिस्तान के सैनिक और हजारों नागरिक शामिल थे। 31 मार्चए 1971 को इंदिरा गांधी ने भारतीय सांसद में भाषण देते हुए पूर्वी बंगाल के लोगों की मदद की बात कही थी। 29 जुलाईए 1971 को भारतीय सांसद में सार्वजनिक रूप से पूर्वी बंगाल के लड़कों की मदद करने की घोषणा की गई। भारतीय सेना ने अपनी तरफ से तैयारी शुरू कर दी। इस तैयारी में मुक्तिवाहिनी के लड़ाकों को प्रशिक्षण देना भी शामिल था। मुक्ति वाहिनी में भारत के पैरामिलिट्री के सैनिक भी सादी वर्दी में शामिल हुये।
3 दिसम्बर को किया था भारत पर हमला
जब पूर्वी पाकिस्तान संकट विस्फोटक स्थिति तक पहुंच गया तो पश्चिमी पाकिस्तान में बड़े.बड़े मार्च हुए और भारत के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की मांग की गई। दूसरी तरफ भारतीय सैनिक पूर्वी पाकिस्तान की सीमा पर चौकसी बरते हुए थे। 23 नवंबर, 1971 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति याह्य खान ने पाकिस्तानियों से युद्ध के लिए तैयार रहने को कहा। 3 दिसंबर, 1971 को पाकिस्तान की वायु सेना ने भारत पर हमला कर दिया। भारत के अमृतसर और आगरा समेत कई शहरों को निशाना बनाया। इसके साथ ही 1971 के भारत.पाक युद्ध की शुरुआत हो गई। 16 दिसंबरए 1971 को पाकिस्तान की सेना के आत्मसमर्पण और बांग्लादेश के जन्म के साथ युद्ध का समापन हुआ।