व्यंग्य *कभी मैं भी टमाटर खाता था….|*

(टमाटर आजकल कुछ ज्यादा ही भाव खा रहा है। वैसे हर वर्ष बारिश में टमाटर का।मिजाज बिगड़ता रहा है, लेकिन इस बार कुछ ज्यादा मचल उठा। वैसे प्रशासन के स्तर पर कुछ सख्ती बरती गई तो लाल हुआ टमाटर थोड़ा रंग बदल कर नरम तो हुआ लेकिन अभी भी बाकी सब्जियों का मुंह चिढ़ा रहा है। इसी पर केंद्रित यह व्यंग्य पढ़िए। – संपादक)
– संतोषकुमार तिवारी, नैनीताल
आजकल मैं बड़े कसमकश में हूँ कि टमाटर के बढ़े दाम का जिम्मा किसके सिर मढूँ?किस जगह धरना दूँ या कौन सी रोड ब्लाक करूँ|अभी तक महँगाई के खिलाफ हो हल्ला के मामले में गली-मोहल्ले में, टॉप टेन मे मेरा नाम था|इंद्रदेव ने आजकल और घर से निकलना भारू कर रखा है,वहीं विरोधाभाष तो देखिये ,सब्जियों में दाम में आग लगी है| नौ रात्रि में फलों के दाम में इजाफा समझ में आता है|आपको जानकारी के लिए बता दूँ कि मेरी मातारानी में बड़ी आस्था है, मगर फलाहार के चक्कर में महीने का बजट कई बार गड़बड़ा चुका है| मैं बात श्री मान टमाटर की कर रहा था| टमाटर का रेट सुनकर पहली दफा मेरा वीपी डाउन हो गया| बिना सलाद के खाना न खाने वालों को आजकल ये ज्ञान देते सुन रहा हूँ कि टमाटर खाने से पथरी की बीमारी तय है| टमाटर के फल या सब्जी होने के बहस से दूर मैं तो इतनी जानकारी दे रहा हूँ कि इस मुए टमाटर ने पति पत्नी के मधुर सम्बन्ध में दरार डाल दिया है| पड़ोसी शर्मा जी एक पाँव टमाटर लेकर पूरी कॉलोनी में सीना चौड़ा करके ऐसे घूम रहे जैसे लाटरी लग गयी हो| उन्हें देखकर कलह मची है कि एक तुम हो, टमाटर नहीं ला रहे हो| गृहणियाँ बिना टमाटर के फ्रिज को फूटी आँख नहीं देखना चाहतीं|
सब वक्त की बात है कभी किसान साथियों ने टमाटर पर ट्रैक्टर चढ़ाकर विरोध किया था,और एक आज का दिन देखो|इसी को कहते हैं भगवान सबकी सुनता है| आज टमाटर की बारी है|दूसरी तरफ बेचारे आम के बुरे दिन आ गये|दशहरी आम सौ में चार किलो बिक रहा| मैं तो मैंगो शेक कभी नहीं पीता था, परंतु आजकल सुबह-शाम ले रहा|आपका पता नहीं|
दूसरी ओर, सास की विश्वासपात्र बहुएं खुश हैं कि सासु मां रोज आधा किलो टमाटर देते हुए ‘संभालकर खर्च करियो बहू’ की मधुर ध्वनि सुन गदगद हैं|
एक सब्जी दुकानदार को तो टमाटर की सुरक्षा चाक चौबंद रखने के लिए किराये पर बाउंसर तक खड़ा करना पड़ा| खैर, मेरे पास आज टमाटर छोड़कर भगवान का दिया सब कुछ है| ‘संतोष’से बड़ी कोई चीज नही भाई -बहनों!