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जल्द चमोली में भी लहलहायेगी जैविक गन्ने की खेती और घरों में पहुंचेगी खेतों की मिठास

महिपाल गुसाईं
गोपेश्वर, 15 नवंबर । कल्पना कीजिए, कल उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में वहां के उत्पादित गन्ने से बने गुड़ का स्वाद आपको मिल जाए, या फिर जगह जगह पर जैविक गन्ने का ताजा रस बदरीनाथ, केदारनाथ, पिथौरागढ़ या फिर पौड़ी में पीने को मिले तो शायद अचरज होगा। चौंकिए नहीं, यह सपना नहीं हकीकत है और पिथौरागढ़ जिले में इसकी शुरुआत हो चुकी है और सब कुछ ठीक रहा तो जल्द ही चमोली, रुद्रप्रयाग तथा पौड़ी जिले के घाटी क्षेत्रों में गन्ने की खेती हो सकती है। वह भी खालिस जैविक। यानी अब यह महज सपना नहीं रहेगा और न ही यह कोई पंचवर्षीय योजना है, बल्कि सिर्फ साल दो साल के भीतर यह परिकल्पना साकार होने वाली है।
  गन्ना बीज को गत वर्ष किया गया था पिथौरागढ़ रवाना
अभी तक उत्तराखंड में गन्ने की व्यावसायिक खेती देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर और नैनीताल जिलों में होती है लेकिन ज्यादातर लोगों को नहीं पता कि पहाड़ों में भी गन्ना होता है। अगर सब कुछ ठीक रहा तो बहुत जल्दी आप चमोली, पौड़ी और रुद्रप्रयाग जिलों के घाटी क्षेत्रों में गन्ने की लहलहाती खेती देख सकते हैं। यही नहीं, ताजा गन्ने का रस आपको जगह जगह पीने को मिले और गुड़ का स्थानीय स्तर पर भी कारोबार होता दिखे। यह परिकल्पना है गन्ना आयुक्त हंसादत्त पांडेय की।
गुड़ की भेली पिथौरागढ़ के किसानों द्वारा
श्री पांडेय दो साल पहले जब चमोली के सीडीओ थे तो उन्होंने यहां बद्री गाय संवर्द्धन तथा मत्स्य पालन आदि क्षेत्रों में कई अभिनव प्रयास किए थे, जिनका लाभ आज चमोली जिले को मिल रहा है। वे गन्ना आयुक्त बने तो वहां भी उन्हें कुछ नया करने की सूझी तो अब पहाड़ पर गन्ना उगाने की ठान ली है।
दरअसल पिथौरागढ़ जिले में काफी पहले से गन्ने का उत्पादन होता आ रहा है लेकिन यह इतना नहीं होता कि व्यावसायिक उत्पादन का दर्जा पा सके। यह बात श्री पांडेय के संज्ञान में आई तो उन्होंने इस दिशा में प्रयास तेज किए। पहले उन्होंने शोध करवाया, कुछ प्रगतिशील किसानों की सुनी। कुछ उत्साही किसानों का साथ मिला तो आज फलक भी बड़ा हो गया। इस समय पिथौरागढ़ में 293 किसान आजादी के अमृत महोत्सव में इस अभिनव पहल से जुड़ गए हैं और उन्हें 95 क्विंटल से अधिक गन्ना बीज उपलब्ध कराया जा चुका है। अगले साल यह रकबा और बढ़ेगा तथा पर्वतीय क्षेत्र में गन्ना उत्पादन के मामले में पिथौरागढ़ अग्रदूत बन सकता है।
गन्ना आयुक्त हंसा दत्त पाण्डेय ने अपनी परिकल्पना को विस्तार देने के लिए इस मुहिम से चमोली, पौड़ी तथा रुद्रप्रयाग जिलों को जोड़ने की कोशिश शुरू कर दी है। उन्होंने इन तीनों जिलों के जिलाधिकारियों को पत्र लिख कर कहा है कि आमतौर पर 28 से 32 डिग्री तापमान वाले घाटी क्षेत्रों में जैविक गन्ने की खेती आसानी से की जा सकती है। किसानों की आमदनी में इजाफा और कारोबार में वृद्धि की यह संकल्पना बहुत जल्द हम और आप धरती पर साकार होते हुए देख पाएंगे।
गन्ने का बीज मंगाने के लिए कृषि विभाग के माध्यम से प्रस्ताव आमंत्रित किए गए हैं। इस तरह घाटी क्षेत्रों में अप्रैल – मई माह में गन्ने की बुआई हो सकती है और उसके बाद साल भर के दौरान पहाड़ में भी ताजा गुड़ बनते देखना सुखद आश्चर्य होगा। साथ ही पहाड़ पर  मशीन से गन्ने का रस निकलते देखना भी सपना नहीं रह जाएगा। पौड़ी में नयार घाटी, अलकनंदा घाटी, रुद्रप्रयाग में मंदाकिनी घाटी, चमोली में गौचर से थराली और कर्णप्रयाग से पीपलकोटी तक के तमाम घाटी इलाकों में जैविक गन्ने की खेती हो सकती है। इसका ताना बाना बुन लिया गया है। गन्ना विभाग किसानों को बीज ही नहीं, तकनीकी सहायता भी देगा और मार्गदर्शन भी। बाकी काम कृषि विज्ञान केंद्र और कृषि विभाग कर देगा। वैसे भी चमोली के किसानों की विशेषता यह है कि नवाचार के मामले में वे सदैव अग्रणी रहते आए हैं, गौचर मेले में इसका प्रमाण देखा जा सकता है।
इस तरह कृषि क्रांति की यह नई इबारत होगी। जरूरत इस बात की है कि किसानों का भरोसा जगाने के लिए योजना को बीमा सुविधा से जोड़ दिया जाए ताकि किसानों को जोखिम न उठाना पड़े, तो हंसा दत्त पाण्डेय जी की परिकल्पना को साकार होने में देर नहीं लगेगी। वैसे भी कोई नया काम करने में जोखिम की संभावना तो रहती ही है, किंतु चमोली के किसानों ने जिस तरह से बद्री गाय पालन के मामले में नई इबारत लिखी है, गन्ना उत्पादन में भी कुछ नया देखने को मिल सकता है।

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