गौचर मेले की चौथी सांस्कृतिक संध्या पर पम्मी नवल और सारस्वत पंडित ने खूब शमा बांधा

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गौचर से दिग्पाल गुसाईं
प्रदेश स्तरीय गौचर औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक मेले की चौथी सांस्कृतिक संध्या पर पम्मी नवल व सारस्वत पंडित के फ़ुर्र घिंदुड़ी आजा पदानो का छाजा,घूगती का घोल बल घूगती का घोल गानों ने शमा बांधा।


14 नवंबर से आयोजित सात दिवसीय गौचर औद्योगिक विकास एवं सांस्कृतिक मेले की चौथी सांस्कृतिक संध्या पम्मी नवल व सारस्वत पंडित के नाम रही। सांस्कृतिक संध्या की शुरुआत पम्मी नवल ने अपने कार्यक्रमों की शुरुआत पांडव नृत्य की शानदार प्रस्तुति से की। इसके पश्चात राकेश पंवार ने घूगती का घोल बल घूगती का घोल गाना गाया तो दर्शक झूम उठे।

पम्मी नवल के कैन लगाई बाडुली गाने ने भी खूब तालियां बटोरी, राकेश पंवार के दिल तोड़ी गैगी,मुख मोड़ी गैगी गाने को भी दर्शकों ने पसंद किया गया। पम्मी नवल ने अपने कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति जागर के साथ की। उनकी ऐड़ी आछरी नृत्य ने भी खूब तालियां बटोरी। इसके पश्चात सारस्वत पंडित ने मंच संभाला तो दर्शकों ने तालियों से उनकी हौसला अफजाई की। उन्होंने अपने कार्यक्रम की शुरुआत भगवती तू दैणी ह्वै जई वंदना से की। इसके बाद उन्होंने सैनिकों के जीवन पर आधारित गाना बौडर की ड्यूटी मिन छः महीना मां औण, लग जा गले फिर ए हंसी रात हो नहो, नेपाली गाना गाना कांची रे कांची, ले भूजी जाला चूड़ा जौनसारी गाने पर दर्शक खूब थिरके। कैल बाजी मुरली पर आधारित नृत्य भी खूब पसंद किया गया।

इसके पश्चात उन्होंने एक तरह से विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके पहाड़ी संस्कृति पर आधारित गाना फुर्र घिंदुड़ी आजा पदानो छाजा गाने से लोगों को अतीत के बारे में सोचने पर मजबूर किया। उनकी इस प्रस्तुति ने शमा बांधा। पम्मी नवल व सारस्वत पंडित के अच्छे अभिनय पर मेला प्रशासन की ओर से मुख्य चिकित्साधिकारी डा राजीव शर्मा उनकी पत्नी डा ऊमा शर्मा व तहसीलदार सुरेंद्र सिंह देव ने प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया।

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