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सुप्रसिध्द मार्क्सवादी विचारक सुनीत चोपड़ा अब नहीं रहे

अनन्त आकाश ,सचिव सीपीएम देहरादून

सुप्रसिध्द मार्क्सवादी नेता सुनीत चोपड़ा अब हमारे  बीच नहीं रहे,उनका हृदयाघात से निधन कल 4 अप्रैल को  दिल्ली में उस समय हुआ जब वह दिल्ली मैट्रो से रैली में शामिल होने वाले साथियों को मिलने रामलीला मैदान  जा रहे थे । उनकी अन्तेष्टि पार्टी सम्मान के साथ आज  5 अप्रैल को  दिल्ली में 4:30 बजे होगी। वह  मार्क्सवादी पार्टी  (सीपीएम) केन्द्रीय कमेटी सदस्य तथा खेतिहर मजदूर यूनियन के अखिल भारतीय संयुक्त सचिव जैसे महत्वपूर्ण पदों पर रहकर मेहनतकश वर्ग के लिए आजीवन समर्पित रहे ।
 सुनीत चोपड़ा , प्रमुख समाजसेवी आर्य समाजी स्वामी अग्निवेश भट्टा मजदूरों की दयनीय हालात को मद्देनजर उनके अधिकारों के लिये इन्हें संगठित करने के लिए देहरादून एवं आसपास के जिलों में  दिन रात एक किये हुऐ थे ।भट्टा उधोग जो कि पूर्णतः हाथ का काम था ।इस कार्य में मजदूरों का परिवार पीढी़ दर पीढ़ी भट्टों में ही खफ जाया करता था , यानि जो एक बार भट्टे के काम मेंं आया वह बन्धुवा बनकर रह गया । उन दिनों बिचोलियों इन मजदूरों के घरवालों को कुछ पैसा एडवांस दे देता था । उसके पश्चात इनका बन्धुवा जीवन शुरू हो जाता था जो पीढियों तक चलता रहता था ।  सुनीत चोपड़ा जो सामाजिक रूप से कुलीन परिवार से आते थे,  हाईली क्वालिफाई थे । वे सतर के दशक मे  मेजर जयपाल के सम्पर्क में तथा मार्क्सवादी विचारधारा से जुड़े  उनके साथ उस जमाने में प्रकाश करात एवं  सीताराम येचुरी जुड़े जिन्होंने आजीवन  अपने को मेहनतकश अवाम के लिए स्वयं को समर्पित किया ।
 सुनीत चोपड़ा  भट्टा मजदूरों के मध्य  कार्य करते हुऐ उनका सामाजिक रूप से अध्ययन भी कर रहे थे ,भट्टों में जो मजदूर काम किया करते थे उनमें से अधिकांश मजदूर पश्चिम उत्तर प्रदेश के हुआ करते थे , जो वहाँ भी सामाजिक तथा आर्थिक रूप से कमजोर व उपेक्षित थे। देहरादून जो उस जमाने में भी चकाचौंध का शहर था ,किन्तु उसके आसपास  उतना ही अन्धकार तथा अभाव व शोषण का राज था ।जिन ईटों से बडे़ बड़े आलीशान भवन खडे़ थे उसके पीछे कई जिन्दगियां अपना सर्वस्व न्यौच्छावर कर रही थी ,वे भूखे ,प्यासे 18-18घण्टे काम कर रहे थे ।
दशकों से भट्टों में बन्धुवा बने हुऐ थे ।कामरेड चोपड़ा ने कामरेड सलाऊद्दीन जो कि किसी जमाने में भट्टा मजदूर ही थे, वह  अच्छी तरह से उनके कष्टों को जानते थे उन्होने भट्टा मजदूरों को संगठित करने की जिम्मेदारी सौंपी , हांलाकि सलाउद्दीन  पर कई बार जानलेवा हमले हो चुके थे ।इस दौरान छोटे बडे़ आन्दोलन हुऐ , भट्टा मालिकों ने पुलिस व गुण्डों के साथ मिलकर कई -कई बार हम लोगों पर हमले व झूठे मुकदमे बनाये किन्तु परिवर्तन का नियम है , उसे जब बदलना है तब कोई भी ताकत रोक नहीं पाती । हांलाकि उसे सही दिशा देने वाली ताकतें होनी चाहिए !कामरेड चौपड़ा के सततं प्रयासों के बाद भट्ठों बन्धुआ प्रथा का अन्त हुआ ।
सुनीत चोपड़ा के प्रयासों के परिणामस्वरूप  1982-83 में भट्टा मजदूर संगठित होना शुरु हुआ तथा भट्टा मजदूरों के आन्दोलन ने जोर पकड़ा तथा कचहरी देहरादून जहाँ आज उत्तराखण्ड शहीद आन्दोलनकारियों का स्मारक है ,इसी जगह सैकड़ों की संख्या में मजदूर धरने पर बैठे । जिसकी अगवाई सीटू के नेता दिवगंत कामरेड पूरनचंद ,कामरेड बीरेन्द्र भण्डारी आदि कर रहे थे ।सर्दियों का मौसम था सुबह-सुबह हम लोग पैदल बल्लीवाला चौक से होते हुऐ मेहूवाला बत्ता ईट भट्टे पर पहुंचे जहाँ पहले ही पुलिस तैनात थी किन्तु काफी जद्दोजहद तथा पुलिस से संघर्ष के बाद हम मजदूरों को वहाँ से लाऐ इस दौरान पुलिस ने मेरे सीने पर राइफल भी तानी तथा गोली मारने की धमकी दी, निडरता से सामना किया तब मेरी उम्र रही होगी  लगभग 19 साल । फिर अगले दिन सुबह -सुबह हम लोग रायपुर के  दिवगंत कामरेड राजेन्द्र थापा की गाड़ी को लेकर बंशीवाला भट्टा मजदूरों को लेने पहुंचे ही थे कि बंशीवाला में ही भट्टा मालिकों के गुण्डों ने पुलिस की मौजूदगी में पथराव शुरू कर दिया ।
मौके पर भट्टा मालिकों के पक्ष में सहसपुर पुलिस खड़ी थी पूर्वनियोजित योजना के अनुरूप वे हम सबको लेकर सहसपुर थाने पहुंचे जहाँ उन्होंने वीरेन्द्र भण्डारी पर हाथ छोड़ा जिसकी एवज में मैंनें सहसपुर थाने इन्चार्ज पर जबाबी कार्यवाही की । थोड़ी देर बाद ही दिवगंत कामरेड राज शर्मा सहित अनेक साथी थाने पहुंचे तथा  थाने का घेराव व चक्का जाम हुआ उसी दिन पर्वतीय विकास मन्त्री चन्द्र मोहन सिंह नेगी देहरादून शरदोत्सव के उद्घाटन हेतु सहारनपुर विकासनगर रोड़ से होते हुऐ आना था । किन्तु चक्का जाम के कारण पुलिस व प्रशासन के हाथ पांव फूल गये नजाकत को समझते हुऐ पुलिस सर्किल अधिकारी यू एन सिंह ने माफी मागीं दोषियों के खिलाफ कार्यवाही का आश्वासन दिया तब जाकर चक्का जाम खुला । उसी दिन  सांय हजारों की संख्या में लाल झण्डे के साथ मेहनतकश जनता तथा छात्र युवाओं ने शरदोत्सव का घेराव किया तथा मन्त्री जी के माफी मांगने के बाद घेराव समाप्त हुआ जो प्रशासन अब तक भट्टा मालिकों के साथ मिला हुआ था इस  आड़ में मोटी रकम ऐंठ रहा था वह घुटने टेकने के लिये मजबूर हुआ । वार्ता के बाद भट्टा मजदूरों को राहत मिली तथा काफी संख्या में बन्धुवा मजदूर मुक्त हुऐ ।इस प्रकार उनके कष्टों का थोड़ा ही सही किन्तु निवारण हुआ । इस आन्दोलन ने उनके कष्टों तथा हालात को उजागर किया आज भी भट्टा मजदूर सरकारी नीतियों के कारण कष्टकारी जीवन जीने के लिये वाध्य हैं ।
     कामरेड चोपड़ा आजीववन वैश्विक  तथा समाज में साम्प्रदायिकपरस्त तथा कोरपोरेटपरस्त नीतियों के खिलाफ आमजन को संगठित करते रहे ।  भले ही आज सुनीत चोपड़ा हमारे बीच नहीं उनके महत्वपूर्ण योगदान को सदैब किया जाऐगा

1972 ,में वे जवाहर विश्वविद्यालय से जुड़े तथा एस एफ आई केन्द्रीय कमेटी सदस्य बने तथा बाद क़ो भारत की जनवादी नौजवान सभा (डीवाईएफआई)केन्द्रीय कमेटी कोषाध्यक्ष तथा संस्थापक सदस्यों में से एक थे ।उन्होंने देहरादून सहित पर्वतीय जिलों में छात्र आन्दोलन एस एफ आई के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ,वे भारत कोरियन कल्चर के अध्यक्ष थे तथा कला -साहित्यिक  क्षेत्र के स्तम्भ थे ।

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