भविष्य में उत्तराखण्ड का सारा पानी और बिजली परियोजनाएं भी छिन जायेंगी
- नेताओं के लिये कुर्सी पहले चरने के लिये उत्तराखण्ड बाद में
- प्रदेश की जनता को सच्चाई क्यों नहीं बताते?
-जयसिंह रावत
उत्तर प्रदेश से उत्तराखण्ड को अलग हुये 21 साल गुजर गये, मगर नये राज्य को अपने हक की पूरी परिसम्पत्तियां पैतृक राज्य उत्तर प्रदेश से नहीं मिल पायी। इन सम्पत्तियों के लिये दोनों राज्यों के अधिकारियों के बीच खानापूरी के लिये मीटिंग दर मीटिंगें चलती रहती हैं, मगर नतीजा ढाक के तीन पात ही निकलना होता है। जब तक उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम में धारा 79, 80, 81 एवं 82 रहेंगी तब तक परिसम्पत्तियों का निपटारा नहीं होगा। उत्तरांचल राज्य के गठन के लिये बाजपेयी सरकार द्वारा बनाये गये पुनर्गठन अधिनियम-2000 के चलते उत्तराखण्ड का अपने जल संसाधन पर मालिकाना हक नहीं है इसीलिये उत्तर प्रदेश उसे नहरें और जलाशय नहीं दे रहा है। मसलन रामगंगा जलविद्युत परियोजना में पावर हाउस उत्तराखण्ड का और उसे चलाने वाला पानी (बांध) उत्तर प्रदेश का है। यह पावर हाउस तभी चलता है जब उत्तर प्रदेश को सिंचाई के लिये पानी की जरूरत होती है। संयुक्त मोर्चा सरकार के गृहमंत्री इन्द्रजीत गुप्त ने राज्य गठन के लिये जो एक्ट बनाया था उसमें ऐसे उत्तराखण्ड विरोधी प्रावधान नहीं थे।

राज्य गठन के एक्ट में ही उत्तराखण्ड विरोधी प्रावधान हैं
उत्तराखण्ड को उसकी जायज परिसम्पत्तिया न मिलने का मुख्य कारण उत्तर प्रदेश पुनर्गठन एक्ट की उत्तराखण्ड विरोधी धारा संख्या 79 एवं 80 भी हैं, जिन्हें तत्कालीन केन्द्रीय गृहमंत्री ने अपनी उत्तर प्रदेश की डबल इंजन की सरकार के दबाव में रखी थीं। चूंकि उत्तराखण्ड का राजनीतिक नेतृत्व शुरू से ही अवसरवादी और पदलोलुप रहा है इसलिये उन धाराओं का तब विरोध नहीं हुआ। इस अधिनियम की उक्त धाराओं के अनुसार अगर कल गंगा जल प्रबंधन बोर्ड बन गया तो उत्तराखण्ड से उसकी नदियां भी छिन जायेंगी और नदियों पर चल रही जलविद्युत परियोजनाओं समेत समस्त गतिविधियां उस बोर्ड के हाथों में चली जायेंगी जिसका कि उत्तराखण्ड अपने पैतृक राज्य के साथ बराबर का एक सदस्य होगा। उत्तराखण्ड के साथ इतने बड़े धोखे को राज्य के पद लोलुप नेता होशियारी से छिपा लेते हैं और सत्ता को लुत्फ उठाते रहते हैं। वे राज्य गठन का श्रेय लेने के लिये मुंह फाड़-फाड़ कर बखान तो करते हैं मगर राज्य के साथ हुये अन्याय को भी न्याय की तरह प्रचारित करते हैं।

नहरें और बांध नहीं मिलेंगे उत्तराखण्ड को
सचिव पुनर्गठन डॉ. रणजीत सिन्हा के अनुसार सिंचाई विभाग उत्तराखण्ड को जनपद उधमसिंह नगर हरिद्वार एवं चम्पावत में कुल 379.385 हेक्टेयर भूमि के हस्तांतरण, जनपद हरिद्वार में आवासीय/अनावासीय भवनों का हस्तांतरण गंग नहर से 665 क्यूसेक जल उपलब्ध कराने, जनपद उधमसिंह नगर तथा हरिद्वार की नहरों को राज्य को दिये जाने, नानक सागर, धौरा तथा बेंगुल जलाशय को पर्यटन एवं जल क्रीड़ा हेतु उपलब्ध कराये जाने के साथ टीएचडीसी में उत्तर प्रदेश की अंश पूंजी उत्तराखण्ड को हस्तांतरित करने, मनेरी भाली जल विद्युत परियोजना हेतु लिये गये ऋण के समाधान के साथ परिवहन, वित्त, आवास, खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति वन कृषि से सम्बन्धित कतिपय विषयों पर निर्णय लिया जाना अपेक्षित है।
उत्तर प्रदेश राज्य पुनर्गठन एक्ट में ही उत्तराखण्ड विरोधी प्रावधान
- गंगा प्रबन्ध बोर्ड का गठन और उसके कृत्य (1) केन्द्रीय सरकार निम्न निलिखत प्रयोजन में से किसी एक या उनके समुच्चय के लिए धारा 79 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट परियोजनाओं के प्रशासन, सन्निमार्ण, अनुरक्षण और परिचालन के लिए नदी बोर्ड का गठन करेगी जिसका नाम गंगा प्रबन्ध बोर्ड होगा (जिसे इसमें इसके पश्चात् बोर्ड कहा गया है), अथार्त्:-
(1) सिंचाई
(2) ग्रामीण और शहरी जल प्रदाय
(3) जल विद्युत उत्पादन
(4) नौचालन
(5) उद्योग ; और
(6) कोई अन्य प्रयोजन, जो केन्द्रीय सरकार, राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे।
(2) बोर्ड निम्न लिखित से मिलकर बनेगा:-
(क) एक पूर्णकालिक अध्यक्ष, जो केन्द्रीय सरकार उत्तरवर्ती राज्यों के परामर्श से नियुक्त किया जायेगा ;
(ख) दो पूर्णकालिक सदस्य, जिनमें से एक-एक प्रत्येक उत्तरवर्ती राज्य में से, संबंिधत राज्य राज्य सरकारों द्वारा नाम निर्दिष्ट किये जायेंगे ;
(ग) चार अंशकालिक सदस्य, जिनमें से दो-दो प्रत्येक उत्तरवर्ती राज्यों में से, संबंिधत राज्य सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किये जायेंगे
(घ) केन्द्रीय सरकार के दो प्रतिनिध, जो उस सरकार द्वारा नामनिर्दिष्ट किये जाएंगे ।
(3) बोर्ड के कृत्यों के अन्तर्गत निम्नलिखित होंगे-
(क) उत्तरवर्ती राज्यों को निम्नलिखित को ध्यान में रखते हुये धारा 79 की उपधारा (1) के खंड (1) निर्दिष्ट परियोजनाओं से जल प्रदाय का विनियमन-
(1)विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य और किसी अन्य राज्य की सरकार या संघ राज्य क्षेत्र के बीच किया गया कोई करार या ठहराव ; और
(ii) धारा 79 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट करार या आदेश ;
(ख) धारा 79 की उपधारा (1) के खंड (प) में निर्दिष्ट परियोजनाओं में उत्पादित विद्युत के किसी विद्युत बोर्ड या विद्युत के वितरण के भारसाधक अन्य प्राधिकारी को निम्नलिखत को ध्यान में रखते हुए प्रदाय का विनियमन-
(i)विद्यमान उत्तर प्रदेश राज्य और किसी अन्य राज्य की सरकार या संघ राज्य द्वोत्र के बीच किया गया कोई करार या ठहराव; और
(ii) धारा 79 की उपधारा (2) में निर्दिष्ट करार या आदेश ;
(ग) नदियों और उनकी सहायक नदियों से संबंिधत जल श्रोतों की परियोजनाओं के विकास से संबंिधत ऐसे शेष चालू या नए संकर्मों का निमार्ण जो केन्द्रीय सरकार राजपत्र में अधिसूचना द्वारा विनिर्दिष्ट करे ;
(घ) ऐसे अन्य कृत्य, जिन्हें केन्द्रीय सरकार उत्तरवर्ती राज्यों से परामर्श के पश्चात् उसे सौंप दे।
- प्रबंधन बोर्ड के कर्मचारीवृन्द (1) बोर्ड ऐसे कर्मचारीवृन्द नियुक्त कर सकेगा जो वह इस अधिनयम के अधीन उनके कृत्यों के दक्षतापूर्ण निवर्हन के लिए आवश्यक समझे। ऐसे कर्मचारीवृन्द पहली बार उत्तरवर्ती राज्य से राज्य से प्रतिनियुक्ति पर नियुक्त किये जाएंगे, जिसके न होने पर किसी अन्य रीति से नियुक्त किए जाएंगे ;
परन्तु प्रत्येक व्यक्ति जो उक्त बोर्ड के गठन के ठीक पहले धारा 79 की उपधारा (1) के खंड (i) में निर्दिष्ट परियोजनाओं के संबंध में संकर्म के सन्निर्माण, अनुरक्षण, या प्रचालन में लगा हुआ था, बोर्ड के अधीन उक्त संकर्म के संबंध में सेवा के उन्हीं निबंधनों और शर्तों पर जो उसे ऐसे गठन से पहले लागू थी, तब तक इस प्रकार नियोजित बना रहेगा जब तक केन्द्रीय सरकार आदेश द्वारा अन्यथा निदेश न दे ;
परन्तु यह और भी कि उक्त बोर्ड उत्तरवर्ती राज्य राज्य की सरकार या सम्बद्ध विद्युत बोर्ड से परामर्श करके और केन्द्रीय सरकार के पूवार्नुमोदन से ऐसे किसी व्यक्ति को उस राज्य सरकार या बोर्ड के अधीन सेवा के लिये प्रतिधारित कर सके।