“सेवकु सो जो करै सेवकाई”
–गोविंद प्रसाद बहुगुणा–
लोकसेवा से बड़ा चुनौतीपूर्ण काम कोई नहीं होता लेकिन इससे बड़ा सम्मान भी कोई दूसरा नहीं हो सकता यदि आपको जीवन में लोकसेवा करने का अवसर प्राप्त होता है I शीर्ष पद पर विराजमान व्यक्ति को अपना ताज संभाले रखना भी बड़ा असहज काम होता है जैसे महाकवि शेक्सपियर ने भी कहा है कि-“Uneasy lies the head that wears a crown.” लेकिन आगे यह भी कहते हैं कि राजा भी हमारे जैसा आदमी ही होता है ,उसको भी फूलों में वैसे ही सुगंध महसूस होती है,जैसे मुझे होती है, चीजे भी वैसे ही दिखाई देती हैं जैसे मुझे दिखाई देती हैं l मनुष्य की चेतना में मानवीय परिस्थितियां एक समान होती हैं l बिना कपड़ों के वह भी मनुष्य की तरह नंगा दिखाई देता होगा जैसे मैं खुद को देखता हूं l shakespeare ने यह भी कहा कि कानून लोगों को डराने के लिए नहीं बनाया जाना चाहिए जैसे लोग अपने खेतों में चिड़ियों को भगाने के लिए बिजूका खडे कर देते हैं l दरअसल कानून एक व्यवस्था का नाम है जो सबके लिए होता है l इस बात को गीता ने सही ढंग से समझाया है कि कर्म को समझना बड़ा जटिल काम है , क्या करणीय है और क्या अकरनीय , यह बडे- बड़े ऋषि महर्षियों की समझ में भी नही आया- गहना कर्मणो गति: l जिसने कर्तव्य को समझ लिया वही आदर्श लोकसेवक होता है l
तुलसीदास जी ने तो यहां तक कह दिया कि सेवक का काम सिर्फ सेवा करना है, लेकिन यदि वह सेवक शत्रु की तरह बर्ताव करे तो उससे तो लड़ना ही ठीक है l
“सेवकु सो जो करै सेवकाईl
अरि करनी करि करिअ लराई ll’ इसी बिंदु पर
किसी भले आदमी ने ठीक ही कहा कि यदि आपने लोकसेवा का मार्ग चुना है तो जनता की सेवा करिए खुद की सेवा नहीं । लेकिन व्यवहार में यह देखा गया है कि जनता की सेवा करने के बजाय जनता द्वारा अपनी सेवा करवाने का एक पेशा बन गया है , और इस व्यापार को चलाए रखने के लिए संबंधित व्यक्ति हर तरह के उल्टे सीधे दाव पेंच चलाता है , यह नैतिक पतन की सीमा है।
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