मेेघालय स्थापना दिवस पर विशेष: जहां स्त्रियों का राज चलता है

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Women have a dominant role in the matrilineal society of Meghalaya. The youngest daughter of the family, the Ka Khadduh, inherits all ancestral property. After marriage, husbands live in the mother-in-law’s home. The mother’s surname is taken by the children.-JSR  author

-जयसिंह रावत

मेघालय भारत के उत्तर पूर्व में एक राज्य है। मेघालय का क्षेत्रफल लगभग 22,429वर्ग किलोमीटर है। यहाँ की जनसंख्या 29,64,007 है। इसके उत्तर में असम, जो ब्रह्मपुत्र नदी से विभाजित होता है, और दक्षिण में बांग्लादेश है। इस प्रदेश की राजधानी शिलांग है। मेघालय पहले असम राज्य का हिस्सा था जिसे 21 जनवरी 1972 को विभाजित कर नया प्रान्त बनाया गया।


मातृ सत्तात्मक समाज

शिलांग के अधिकांश लोग खासी नामक जनजाति के हैं। इस जनजाति के ज्यादातर लोग ईसाई धर्म को मानने वाले हैं मगर उन्होंने अपनी प्राचीन संस्कृति को त्यागा नहीं है। गारो, खासी और जयंतिया राज्य की तीन पहाड़ियां है और इन पर रहने वाले आदिवासी और जातीय समूहों को इन्हीं तीन नामों से जाना जाता है। हालांकि, इनमें गारो जनजाति का संबन्ध बोड़ो जातियों से माना जाता है। इनका वर्चस्व पश्चिमी मेघालय में अधिक है और ऐसा माना जाता है कि तिब्बत से आकर ये यहां बसे। इनका प्रमुख उत्सव बंडल है, जो फसलों की कटाई के दौरान मनाया जाता है। इस जाति की विशेषता यह है कि इसमें महिलाओं की प्रमुखता होती है और समाज के सभी बड़े फैसले महिलाएं ही लेती हैं। यह जनजाति मातृ सत्तात्मक है। खासी जनजाति हिंद-चीन मूल के हैं। इनका समाज भी मातृ सत्तात्मक है। इन दोनों जनजातियों की ही तरह जयंतिया जनजाति भी मातृसत्तात्मक है। खासी जनजाति के बारे में दिलचस्प बात यह है कि इस जनजाति में महिला को घर का मुखिया माना जाता है। जबकि भारत के अधिकांश परिवारों में पुरुष को प्रमुख माना जाता है। इस जनजाति में परिवार की सबसे बड़ी लड़की को जमीन जायदाद की मालकिन बनाया जाता है। यहां मां का उपनाम ही बच्चे अपने नाम के आगे लगाते हैं।

खासी जाति में स्त्रीराज

मेघालय के गंवई इलाके में महिलाओं को सबसे ज्यादा इज्जत की नजर से देखा जाता है। करीब 10 लाख लोगों का वंश महिलाओं के आधार पर चलता है। खासी जाति की परंपरा के मुताबिक परिवार की सबसे छोटी बेटी सभी संपत्ति की वारिस बनती है, पुरुषों को शादी के बाद अपनी पत्नियों के घरों में जाना पड़ता है और बच्चों को उनकी माताओं का उपनाम दिया जाता है। अगर किसी परिवार में कोई बेटी नहीं है, तो उसे एक बच्ची को गोद लेना पड़ता है, ताकि वह वारिस बन सके। इसके अलावा खासी जाती की महिलाओं को इस बात का अधिकार है कि वे समुदाय से बाहर शादी कर सकती हैं। सबसे छोटी बेटी को संपत्ति का वारिस बनाने के पीछे तर्क यह यह है कि मां बाप को लगता है कि वह मरते दम तक उनकी देख भाल कर सकती है। उन्हें लगता है कि वे अपनी बेटी पर आश्रित रह सकते हैं।

पारियात सिंगखोंग रिम्पाई थिम्माई संगठन के कार्यकर्ता इसे बदलना चाहते हैं। खासी जाति की परंपरा को बदलने के लिये पारियात संस्था का गठन 1990 में हुआ। इससे पहले पुरुषों ने इस समाज में अपने अधिकारों के लिए 1960 के आस पास आन्दोलन शुरू किया लेकिन उसी वक्त खासी जाति की महिलाओं ने एक विशाल सशस्त्र प्रदर्शन किया, जिसके बाद पुरुषों का विरोध ठंडा पड़ गया।

मेघालय की गारो जनजाति में एक ऐसी परंपरा है जिसके तहत सास और दामाद की शादी हो सकती है। इसके बाद सास और दामाद का रिश्ता खत्म होकर पति-पत्नी का रिश्ता बन जाता है। गारो जनजाति का एक नियम है कि शादी के बाद छोटी बेटी का पति घर जमाई बन कर ससुराल में रहने आ जाता है। इसके बाद इसे नोकरोम कहा जाने लगता है। नोकरोम को सास के मायके में पति के प्रतिनिधि के रूप में मान्यता मिलती है। अगर किसी कारण से ससुर की मृत्यु हो जाती है तो सास की शादी नोकरोम से कर दी जाती है। इस शादी के बाद बेटी और सास दोनों का पति बनकर नोकरोम को दोनों की जिम्मेदारी उठानी पड़ती है। गारो जनजाति में यह परंपरा सदियों से चली आ रही है। समाज में इसे पूरी तरह मान्यता प्राप्त है। हालांकि नए जमाने के युवा इसे कम ही अपना रहे हैं फिर भी अभी यह अस्तित्व में है।

( जयसिंह रावत  की पुस्तक हिमालयी राज्य संदर्भ कोष से लिया गया अंश – प्रकाशक विन्सर पब्लिशिंग)

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