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भारतीय इतिहास को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जलवायु परिवर्तन ने

 

Climate-driven vegetation changes played a crucial role in shaping human history in the Indian subcontinent over the last 2000 years, shows a new study which traced vegetation patterns in the Ganga plain from palaeoclimate records with the help of pollen and multiproxy studies. The research underscores the importance of understanding historical climate patterns to better predict future impacts. Using pollen (which survives in soil and sediments as a microfossil) from sediment core extracted from Sarsapukhra Lake, in Varanasi district, Uttar Pradesh, and other multiproxy analysis, complemented by the Earth System Paleoclimate Simulation (ESPS) model, the researchers reconstructed the historical Indian Summer Monsoon (ISM) patterns for the past 2000 years, correlating climate changes with significant events in Indian history. They found that alternating warm and cold episodes (Roman Warm Period, Dark Ages Cold Period, Medieval Warm Period, and Little Ice Age) significantly impacted vegetation patterns, forcing human migrations and potentially contributing to the rise and fall of prominent Indian dynasties such as the Guptas, Gurjar Pratiharas, and Cholas. The study was published in the journal Catena.

 

चित्र: (a-f), (g-k): भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून क्षेत्र के मानचित्रण और मॉडलिंग तथा पिछले दो सहस्राब्दियों में प्राचीन प्रमुख राजवंशों पर उनके प्रभाव को दर्शाने वाला आरेख. Top cover photo caption : अध्ययन स्थल को दर्शाता गंगा मैदान का डिजिटल उन्नयन मॉडल (डीईएम)

 

-By- Usha Rawat

पिछले 2000 वर्षों में भारतीय उपमहाद्वीप में मानव इतिहास को आकार देने में जलवायु-संचालित कृषि परिवर्तनों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।  यह हाल के अध्ययन से पता चलता है, जिसमें पराग और मल्टीप्रॉक्सी अध्ययनों की मदद से पैलियोक्लाइमेट रिकॉर्ड से गंगा तट पर वनस्पति पैटर्न का पता लगाया गया है। यह शोध भविष्य के प्रभावों की बेहतर भविष्यवाणी करने के लिए जलवायु पैटर्न को समझने के महत्व को रेखांकित करता है।

मध्य गंगा मैदान (सीजीपी) में पिछलें होलोसीन (लगभग 2,500 वर्ष) के लिए पैलियोक्लाइमेट रिकॉर्ड की अत्यधिक कमी है, जो इस क्षेत्र में पिछले जलवायु पैटर्न को समझने में एक महत्वपूर्ण शोध अंतराल को उजागर करता है।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के एक स्वायत्त संस्थान बीएसआईपी के वैज्ञानिकों ने ऐतिहासिक जलवायु गतिशीलता को बेहतर ढंग से समझने के लिए विशेष रूप से भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (आईएसएम) के संबंध मेंपैलियोक्लाइमैटिक तरीकों की खोज की।

उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले में सरसापुखरा झील से निकाले गए तलछट कोर से पराग (जो मिट्टी और तलछट में माइक्रोफॉसिल के रूप में जीवित रहता है) और अन्य मल्टीप्रॉक्सी विश्लेषण का उपयोग करते हुए, जिसे अर्थ सिस्टम पेलियोक्लाइमेट सिमुलेशन (ईएसपीएस) मॉडल द्वारा पूरक किया गया है, शोधकर्ताओं ने पिछले 2000 वर्षों के ऐतिहासिक भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून (आईएसएम) पैटर्न का पुनर्निर्माण किया, जिसमें भारतीय इतिहास में महत्वपूर्ण घटनाओं के साथ जलवायु परिवर्तनों को सहसंबंधित किया गया।

उन्होंने पाया कि बारी-बारी से गर्म और ठंडे एपिसोड (रोमन वार्म पीरियड, डार्क एज कोल्ड पीरियड, मीडियवल वार्म पीरियड और लिटिल आइस एज) ने वनस्पति पैटर्न को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया। इससे मानव पलायन को मजबूर हुआ और संभावित रूप से गुप्त, गुर्जर प्रतिहार और चोल जैसे प्रमुख भारतीय राजवंशों के उत्थान और पतन में योगदान दिया। यह अध्ययन कैटेना पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।

यह बदलती जलवायु के लिए अधिक उपयुक्त फसलों की पहचान करके,  उत्पादकता बनाए रखने और सकल घरेलू उत्पाद की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए कृषि प्रथाओं को अनुकूल बनाया जा सकता है। यह दृष्टिकोण कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों को कम करने में मदद कर सकता है, जिससे भविष्य में खाद्य सुरक्षा और आर्थिक मजबूती सुनिश्चित हो सकेगा।

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