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विश्व रंगमंच दिवस पर विशेष ; मनोरंजनपूर्ण अभिव्यक्ति का सबसे पुराना माध्यम है रंगमंच

        देहरादून के टाउनहॉल में मंचित एक नाटक का भावपूर्ण दृश्य

 

अनंत आकाश

हर साल पूरे विश्व में 27 मार्च को ‘विश्व रंगमंच दिवस’ (World Theatre Day) मनाया जा रहा है। रंगमंच एक ऐसा माध्यम है जहाँ से हम अपनी बात बहुत ही सरलता से आमजन तक पहुंचा सकते है। रंगमंच मनोरंजन का सबसे पुराना एवं सशक्त माध्यम है।
1961 में, इंटरनेशनल थिएटर इंस्टीट्यूट (आईटीआई) ने प्रस्ताव दिया था कि थिएटर के महत्व का जश्न मनाने के लिए हर साल एक दिन होना चाहिए। उसी प्रस्ताव पर अब हर साल इस दिन, एक प्रसिद्ध थिएटर कलाकार द्वारा एक निश्चित सन्देश दिया जाता है।

1962 में पहला संदेश जीन कोक्ट्यू द्वारा बोला गया था। लोग आम तौर पर किसी कहानी के अभिनय और वर्णन को एक नाटक मानते हैं, लेखक, निर्देशक, अभिनेता, ध्वनि निर्माता, पोशाक डिजाइनर, प्रकाश और सेट डिजाइनर, शो कॉलर और अन्य जैसे कई तत्व होते हैं जो पूरी कहानी को सफलतापूर्वक निष्पादित करने के लिए अथक प्रयास करते हैं।

विश्व रंगमंच दिवस हमारे जीवन में रंगमंच के महत्व के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए मनाया जाता है। क्योंकि रंगमंच कला की एक विधा है जिसमें लाइव कलाकार, अभिनेता, प्रॉप्स और बहुत कुछ शामिल होते हैं। लेकिन आजकल मूवी हॉल और नेटफ्लिक्स और अमेज़ॅन प्राइम जैसे प्लेटफार्मों के आगमन के साथ, रंगमंच का महत्व अब उतना नहीं रहा, जितना पहले हुआ करता था।

विश्व रंगमंच दिवस की शुरुआत एक आन्दोलन के रूप में हुई थी, लेकिन बाद में इसे जीवन को एक नई दिशा और अर्थ देने के लिए मनाया जाने लगा क्योंकि किसी व्यक्ति और समाज पर अपने स्वस्थ प्रभाव के साथ रंगमंच की जीवन में एक प्रासंगिक भूमिका होती है, क्योंकि अधिकांश विषयों का वास्तविक जीवन की घटनाओं से गहरा संबंध होता है।

सिनेमा से पहले मनोरंजन के लिए लोगों के पास थियेटर ही एकमात्र विकल्प था। आज‌ इन्टरनेट,वाईफाई ,फेसबुक ,वर्ड्सऐप, सोशल मीडिया तथा कला के क्षेत्र में टिवि, रियल्टी शो तथा कारपोरेट के प्रवेश के बावजूद भी थिएटर का महत्व कम नहीं हुआ है। बॉलीवुड में कई नामी चेहरे थिएटर की ही देन है जिनमें नसरुद्दीन शाह, दिवगन्त ओमपुरि, नाना पाटेकर , आशुतोष राणा
‘विश्व रंगमंच दिवस’ मनाने के कई महत्वपूर्ण उद्देश्य है, पूरी दुनिया के समाज और लोगों को रंगमंच की संस्कृति के विषय में बताना, रंगमंच के विचारों के महत्व को समझाना, रंगमंच संस्कृति के प्रति लोगों में दिलचस्पी पैदा करना है। इसके अलावा विश्व रंगमंच दिवस मनाने कुछ अन्य उद्देश्य है, जैसे कि दुनिया भर में रंगमंच को बढ़ावा देने, लोगों को रंगमंच की जरूरतों और महत्व से अवगत कराना, इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए करने के लिए यह दिन पूरे विश्वभर में मनाया जाता है।

भारत में रंगमंच का इतिहास बहुत प्राचीन है। भारत के महान कवि कालिदास जी ने भारत की पहली नाट्यशाला (Theatre) में ही ‘मेघदूत‘ की रचना कि थी। भारत की पहली नाट्यशाला अंबिकापुर जिले के रामगढ़ पहाड़ पर स्थित है, जिसका निर्माण कवि कालिदास जी ने ही किया था। आपको बता दें कि भारत में रंगमंच का इतिहास आज का नहीं बल्कि सहस्त्रों साल पुराना है।

रंगमंच की प्राचीनता को कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि, पुराणों में भी रंगमंच का उल्लेख रहा । यम, यामी और उर्वशी के रूप में देखने को मिलता है। इनके संवादों से ही प्रेरित होकर कलाकारों ने नाटकों की रचना शुरू की। जिसके बाद से नाट्यकला (Drama) का विकास हुआ और भारतीय नाट्यकला (Indian Drama) को शास्त्रीय रूप देने का कार्य भरतमुनि जी ने किया था।

भारत के मुक्ति संघर्ष में थियेटर के रूप में इफ्टा कि भूमिका महत्वपूर्ण है ,आजादी के बाद राष्ट्रीय नाट्य मंच, जन नाट्य मंच आदि अनेक नाट्य ग्रुपों की महत्तवपूर्ण रही है । साथी सफदर हाशमी ने रंगमंच का इस्तेमाल साम्प्रदायिक सौहार्द एवं आमजन कौ साक्षर करने के लिऐ‌ किया । यही  कारण है कि असमाजिक तत्वों ने उन पर नाटक के दौरान सरेआम हमला किया जिसमें वे शहीद हुये ।

देहरादून विभिन्न नाटक संस्थाओं का केन्द्र रहा है। यहाँ दिवगंत गुणानन्द पथिक, अशोक चक्रवर्ती दादा , दिवगंत अतीक अहमद, गजेन्द्र वर्मा आदि अनेकानेक कलाकारों ने अपना जीवन थियेटर के लिये सपर्पित किया ।

आज साम्प्रदायिक एवं जातिय विचारधारा के लोग थियेटर का उपयोग साम्प्रदायिक एवं जातीय मनमुटाव के लिये कर रहे हैं ।इसलिये थियेटर कि जिम्मेदारी और भी अधिक बढ़ जाती है ।

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