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लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी एवं साहित्यकार दीवान सिंह बजेली को संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार मिलने पर उत्तराखंडवासियों में हर्ष की लहर

देहरादून 09 अप्रैल  (उहि) । प्रख्यात लोक गायक एवं कवि नरेंद्र सिंह नेगी एवं साहित्यकार दीवान सिंह बजेली को संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार मिलने पर उत्तराखंड और उत्तराखंड से बाहर देश विदेश में उत्तराखंडवासियों में हर्ष की लहर फ़ैल गयी है । मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने लोक गायक नरेन्द्र सिंह नेगी तथा अभिनय कला के क्षेत्र में योगदान के लिये दीवान सिंह बजेली को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठित संगीत नाट्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किये जाने पर बधाई  देते हुए कहा कि पारम्परिक लोक गीत के क्षेत्र में नरेन्द्र सिंह नेगी तथा अदाकारी के क्षेत्र में दीवान सिंह बजेली को दिया गया सम्मान प्रदेश का भी सम्मान है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इससे राष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश के लोक गीत संगीत एवं अभिनय कला को भी पहचान मिली है। नरेन्द्र सिंह नेगी पौड़ी गढ़वाल तथा दीवान सिंह बजेली सोमेश्वर अल्मोड़ा के मूल निवासी है।

नरेंद्र सिंह नेगी  का जन्म उत्तराखंड में स्तिथ पौड़ी जिले के पौड़ी गांव में 12 अगस्त 1949 को हुआ था। उनके पिता  आर्मी में नायब सूबेदार थे और माता एक गृहिणी थी। नरेंद्र सिंह नेगी  का विवाह उषा नेगी  के संग हुआ। उनकी दो संताने हैं एक पुत्र कविलास नेगी व एक पुत्री रितु नेगी। अपनी पढ़ाई पूर्ण करने के पश्च्यात नेगी ने सूचना विभाग में लिपिक से कैरियर की शुरुवात की और जिला सुचना अधिकारी के तौर पर सेवानिवृत हुए । परन्तु अपनी संगीत की ललक को उन्होंने यहाँ भी कायम रखा, फलस्वरूप सरकारी नौकरी के साथ साथ उन्होंने आकाशवाणी लखनऊ के प्रादेशिक केंद्र से गढ़वाली गाने भी गए ।

नरेंद्र सिंह नेगी  ने 1000 से अधिक गीत गाए हैं। उन्होंने अपना पहला गीत पहाड़ो की महिलाओं के कष्टों से भरे जीवन पर आधारित गाया। इस गीत को लोगो ने बहुत पसन्द किया सब को लगा जैसे कि यह गीत उन्ही के लिए गाया गया होगा, इस गीत के बोल “सैरा बसग्याल बोण मा, रुड़ी कुटण मा, ह्युंद पिसी बितैना, म्यारा सदनी इनी दिन रैना ” (अर्थात बरसात जंगलो में, गर्मियां कूटने में, सर्दियाँ पीसने में बितायी, मेरे हमेशा ऐसे ही दिन रहे ) लोगो के जीवन को छु गए थे। इस गीत की सक्सेस के बाद उन्होंने उत्तराखंड के गायन की हर एक शैली जैसे कि जागर, मांगल, बसंती झुमेला, औज्यो की वार्ता, चौंफला, थड्या आदि में भी गाया हैं। उन्होंने अपने गीतों से हर विष्य को छूने की कोशिश की हैं जैसे कि जन सन्देश, सुख दुःख, प्यार प्रेम, देवी देवताओं के भजन, गाथाएँ, बच्चो के लिए लोरियाँ आदि।

अल्मोड़ा जिले के सोमेश्वर तहसील के कलेत गांव में जन्मे दीवान सिंह बजेली का लेखन में 30 वर्षों का अनुभव है। वर्तमान में वह अपने परिवार के साथ दिल्ली में रह रहे हैं। थियेटर और फिल्म से जुड़े विषयों पर उनकी कलम हमेशा सामाजिक जागरूकता और नागरिकों को सामर्थ्यवान बनाने में अपना योगदान देते रहे थियेटर और सिनेमा जगत में भी उनकी क्षमता को हर स्तर पर सराहना मिली है। लेखक बजेली साहित्य कला परिषद दिल्ली के द्वारा गठित कई समितियों से भी जुडे़ हैं। इसके अलावा मोहन उप्रेती द्वारा स्थापित पर्वतीय कला केंद्र के अध्यक्ष पद पर भी सेवाएं दे रहे हैं। देश के प्रमुख समाचार पत्रों टाइम्स ऑफ इंडिया, हिंदुस्तान टाइम्स, इकोनॉमिक टाइम्स, फाइनेंशियल एक्सप्रेस और स्टेट्समैन आदि में उनके क्रिटिक्स प्रकाशित होते रहे हैं। स्थानीय स्तर पर कुमाऊं लोक कथाओं और कहानियों को दुनिया भर में पहचान दिलाने में भी योगदान दिया है।

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