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कुँआ और खाईं …..!

Author image Milind Khandekar

एक तरफ़ कुँआ है और एक तरफ़ खाईं . पिछले हफ़्ते हिसाब किताब के वीडियो को मैंने रिज़र्व बैंक की इस दुविधा के साथ ख़त्म किया था. महंगाई को क़ाबू करने के लिए रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में कटौती नहीं कर पा रहा है और ग्रोथ को बढ़ाने के लिए ब्याज दरों में कटौती ज़रूरी हो चली है. इस पर डोनाल्ड ट्रंप की जीत ने मुश्किल और बढ़ा दी है.

रिज़र्व बैंक के गवर्नर शक्ति कांत दास ने कहा कि अक्टूबर में महंगाई की दर सितंबर से ज़्यादा होने की आशंका है. सितंबर में दर 5.49% थी जबकि रिज़र्व बैंक को इसे 4% के आसपास रखने का लक्ष्य दिया गया है. Crisis की रिपोर्ट भी कहती है कि घर पर वेज थाली 20% महँगी हुई है. प्याज़ और टमाटर की क़ीमत इस महंगाई का कारण है . हालाँकि माना जाता है कि खाने पीने की चीजों की महंगाई सप्लाई की कमी के कारण होती है और रिज़र्व बैंक की नीति इसमें ज़्यादा कुछ नहीं कर सकती है. पिछले महीने रिज़र्व बैंक ने ब्याज दरों को लेकर अपना स्टैंड न्यूट्रल कर दिया है यानी कटौती हो सकती है. अगले महीने रिज़र्व बैंक की बैठक है, अब गवर्नर के बयान से साफ़ है कि दिसंबर में कटौती की संभावना बहुत कम है.

रिज़र्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि इकनॉमी ठीक ठीक कर रही है लेकिन स्टेट बैंक की रिपोर्ट कुछ और ही कह रही है. इस रिपोर्ट के मुताबिक़ सितंबर की तिमाही में जीडीपी ग्रोथ 6.5% रहने की संभावना है. जिन पैरामीटर को रिपोर्ट में देखा गया है उनमें से ज़्यादातर निगेटिव है जैसे गाड़ियों की बिक्री, डीज़ल की खपत में कमी . ग्रोथ कम होने का असर दिखने लगा है. कंपनियों के प्रोफ़िट में कमी में भी कमी आ रही है. फिर भी रिज़र्व बैंक ब्याज दरों में कटौती के लिए तैयार नहीं है. जितनी देर होगी उतनी ही मुश्किल बढ़ेगी लोगों की ज़िंदगी में.

इस कुँए और खाई के बीच डोनाल्ड ट्रंप जीत कर आ गए है. उनकी जीत से अमेरिका में महंगाई बढ़ने की आशंका है. ऐसी स्थिति में वहाँ ब्याज दरों में कटौती रुक सकती है. वो चाहते हैं कि अमेरिका में बाहरी देशों से आने वाले सामान पर नया टैक्स लगाया जाएँ. इससे अमेरिका में चीजें महँगी होगी. वो टैक्स कटौती की बात कर रहे हैं जिससे सरकार का घाटा बढ़ेगा और लोगों के हाथ में ज़्यादा पैसा आने से महंगाई बढ़ सकती है. फ़ेड रिज़र्व ने अभी तो ब्याज दरों में कटौती कर दी है. आगे जारी रहेगा या नहीं यह कहना मुश्किल है. वहाँ कटौती की रफ़्तार धीमी हुई तो भारत में भी ब्याज दरों में कटौती मुश्किल होगी . कहानी वही है एक तरफ़ कुँआ है और एक तरफ़ खाई

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