आजादी का 76 वर्ष और संगठित छात्र आन्दोलन का 87 वां वर्ष

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-अनन्त आकाश –

अगस्त माह हमारे देश की मुक्ति संग्राम की दृष्टि से मील का पत्थर साबित हुआ है ,इस माह  में 12 तारीख 1936 को संगठित छात्र आन्दोलन अखिल भारतीय ‌सम्मेलन लखनऊ में हुआ । जिसमें सभी प्रकार के विचारों से प्रभावित छात्रों ने हिस्सा लिया किन्तु इसका रूझान रहा वामपंथी। इस सम्मेलन में‌ पण्डित जवाहर लाल नेहरू ,मौहम्मद जीना तथा मीनू मिसानी जैसे महत्वपूर्ण लोगों ने वकायदा हिस्सेदारी की जहाँ नेहरु व जीना समान विचार के थे ,आगे चलकर जीना‌ का मक़सद बदला ,वहीं सम्मेलन में मौजूद मीसानी प्रतिक्रियावादी था । गांधीजी के आह्वान ‌पर 9 अगस्त 1942 अंग्रेजों भारत छोडो़‌ आन्दोलन‌ ने अंग्रेजों की चुलें हिलाकर रखी दी ,फासीवादी हिटलर की द्वितीय ‌विश्वयुध्द में बुरी तरह शिकस्त ने शक्तियों का‌ सन्तुलन‌ समाजवादी खेमे हो गया जिस कारण अंग्रेजी उपनिवेशवादी पकड़ कमजोर हुई । परिणाम यह हुआ कि  उन्हें भारत सहित‌ विश्व में अपने उपनिवेशों से समझौता कर आजाद करना पड़ा । ‌15 अगस्त 1947 को हमारा देश को 200 बर्ष की गुलामी से मुक्ति मिली.

भारत में अंग्रेजी हुकूमत लगभग 200 साल तक रही । 23 जून 1757 पलासी युद्ध में जीत हासिल  करने के बाद अंग्रेजों ने  फूट  डालो और राज करो नीति के तहत सारा  ही भारत गुलाम बना डाला। कुछ हिस्से पर सीधे राज किया और कुछ हिस्से पर राजा-महाराजा, नवाब और निजामों के मार्फ़त राज किया। सन 1857 कि गदर के बाद  ब्रिटिश  सम्राट ने भारत की  सत्ता स्वयं अपने हाथ में ले ली थी और देसी राज्यों का हरण करने के बजाय उनकी सर्वभौम सत्ता (पैरामोंटसी)  अपने मे निहित कर ली थी। इस तरह रियासतों में अंग्रेजों के मातहतों का ही शासन था।

आजादी के आन्दोलन में अंग्रेजों से लाभ ले रहे तथाकथित राष्ट्रवादी वास्तव में अंग्रेजी हुकूमत के लिए ही काम कर रहे थे तथा आन्दोलन को तरह – तरह से क्षति पहुंचा रहे थे तथा सरकार के लिए मुखबिरी तथा झूठी गवाही दे रहे थे ।दूसरी तरफ पेशावर, लाहौर, कलकत्ता, मुम्बई सहित देश के अनेक हिस्सों में अंग्रेजों के खिलाफ अनेक विचारों के आन्दोकारियों द्वारा जन संघर्ष चलाये जा रहे थे ।इसके साथ ही सुधारवादियों द्वारा देशभर में अनेक सामाजिक सुधार के लिऐ आन्दोलन चलाये जा रहे थे ।

निशंदेह आजादी के आंदोलन में समाज के अन्य वर्गों के साथ ही छात्रों का भी अति महत्वपूर्ण भूमिका थी। 12 अगस्त 1936 को देश के प्रगतिशील तथा अन्य विचारों के छात्रों द्वारा लखनऊ में एक अखिल भारतीय छात्र सम्मेलन का आयोजन किया जिसका उद्घाटन जवाहरलाल नेहरु तथा अध्यक्षता मौहम्मद जीना ने की । यहाँ से संगठित छात्र आन्दोलन के रुप में आल इण्डिया स्टूडेंट्स फैडरेशन (एआईएसएफ) की स्थापना हुई । जिसका मुख्य उद्देश्य आजादी के आन्दोलन में छात्रों की भूमिका सुनिश्चित करना था । हालांकि यह प्रयास सन् 1920-022 के दौर से शुरू हो चुके था किन्तु डेढ़ दशक बाद फलिभूत  हो पाया ।
गांधीजी के बार – बार आन्दोलनों के वापस लेने के बाद छात्र समुदाय उहापोह की स्थिति में था तथा भारत की आजादी का लक्ष्य क्या हो ? ऐ सवाल उसके सामने थे । छात्र आन्दोलन पर गांधी जी के प्रभाव के साथ – साथ अनेक विचारधाराओं का प्रभाव स्पष्ट था । छात्र आन्दोलन का हिरावल हिस्सा सोवियत क्रान्ति तथा देश  क्रान्तिकारियों के प्रगतिशील हिस्से को अपना आदर्श मानता था ।इस आदर्श के केन्द्र में वह कम्युनिस्टों के विचारों से प्रभावित था ।एआईएसएफ के अन्तर्गत अनेक विचारधाराऐं  कार्य कर रहे थी ।

आजादी का हमारा लक्ष्य क्या हो ? ऐ सभी सवाल मुंह बाहे खड़े थे! छात्र आन्दोलन का सर्वाधिक प्रगतिशील हिस्सा समाजवाद को अपना लक्ष्य मानता था तथा दूसरों का लक्ष्य फौरी था । दूसरी साम्प्रदायिक तथा ‌विभाजनकारी ताकतों द्वारा अंग्रेजी हुकूमत के लिए षढ़यन्त्र जारी थे । इस बीच 1940 में छात्र आन्दोलन में मुस्लिम छात्र फैडरेशन के रूप में विभाजन हुआ । जिसका नेतृत्व मौहम्मद जिन्ना ने किया । द्वितीय विश्व युद्ध जारी था । फासीवाद के खिलाफ सोवियत संघ के नेतृत्व में मित्र राष्ट्र लड़ रहे थे जिसका‌ नेतृत्व स्टालिन‌ कर रहे थे ।प्रगतिशील आन्दोलन ने फासीवाद के खिलाफ अपना रूख स्पष्ट किया । क्योंकि इस युद्ध से दुनिया का भबिष्य तय होना था । अन्ततः सोवियत खेमे की जीत के साथ ही हिटलर की हार सुनिश्चित होने के साथ ही, इग्लैंड की विश्व स्तर पर स्थिति कमजोर हो गई ।समाजवादी खेमा ताकत के रूप में उभरा ।अब इग्लैण्ड की सत्ता समझ गयी कि ज्यादा दिन उपनिवेशवादी व्यवस्था सम्भव नहीं है ,इसलिए उन्होंने हिन्दुस्तान के नवोदित पूंजीवादी,सामन्तवादी गठबंधन से समझौता कर सत्ता के हस्तांतरण की प्रक्रिया की शुरुआत की ।

इस समझौते में दोनों पक्षों ने  कम्युनिस्ट एवं अन्य महत्वपूर्ण हिस्से को बाहर रखा जबकि भारी दमन के बावजूद कम्युनिस्टों की शक्ति में भारी इजाफा मजदूर ,किसान ,छात्र ,युवा आन्दोलनों का जोर के साथ ही अनेक बन्दरगाहों पर नौ सैनिकों का विद्रोह हुआ।  इस विद्रोह में आई एन ए सैनिकों की भूमिका उल्लेखनीय है जो कि कहीं न कहीं कम्युनिस्टों से प्रेणा ले रहा था । किन्तु अंग्रेज घोर हिन्दू मुस्लिम साम्प्रदायिक तत्वों की मन की करके चले गये तथा उन्होंने हिन्दू मुस्लिम के आधार पर देश का विभाजन कर दिया। जिसका उपयोग कट्टरपंथियों द्वारा साम्प्रदायिक जहर फैलाने के लिए किया गया । न चाहते हुऐ भी 1947में देश बंट गया। साम्प्रदायिक एवं असामाजिक तत्वों ने इस अवसर का लाभ आपसी मारकाट, लूटपाट तथा वैमनस्यता के लिए किया । यहाँ तक कि कट्टरपंथी दामोदर सावरकर के कट्टरपंथी शिष्य नाथुराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मार कर हत्या कर दी। अंग्रेजों ने बांटो और राज करो की जो नीति अपनाई थी वही नीति आज भी चल रही है।

देश में नेहरू के नेतृत्व में समाजवाद का नारा देकर मिश्रित पूंजीवादी व्यवस्था अपनायी गई किन्तु संगठित छात्र आन्दोलन के सवाल जस के तस रहे ।1950आते आते छात्र आन्दोलन में एक और विभाजन एन एस यू आई के रूप में हुआ । क्योंकि सत्ता पक्ष कांग्रेस अपनी सत्ता को मजबूत करने के लिए अपने सांगठनिक आधार को मजबूत बनाने में जुट चुकी थी ।अब एआईएसएफ की हालात कमजोर होने के कारण उसके नेतृत्वकारी साथियों ने नेहरू माडल अपनाना स्वीकार किया । किन्तु इसी संगठन के अन्तर्गत कुछ इससे सहमत नही थे अतः वे अपने उद्देश्यों को लेकर निरन्तरता के साथ कार्य कर रहे थे 1960आते आते एक बार भी साम्प्रदायिक आधार पर छात्र आन्दोलन का विभाजन हुआ और एबीवीपी अस्तित्व में आयी जिसने हिन्दुत्व के नारे के इर्दगिर्द छात्रों को संगठित करना शुरु किया ।इसके बाद एक के बाद एक विभाजन का दौर की शुरुआत हुई । एआईएसएफ नेतृत्व से अलग विचार रखने वाले विभिन्न राज्यों में अलग अलग छात्र फैडरेशन बने । जो 1970 में त्रिवेंद्रम में इकठ्ठे हुऐ तथा स्टूडैण्ट्स फैडरेशन आफ इण्डिया (SFI)की स्थापना हुई । संगठन ने अपना लक्ष्य शिक्षा की बेहतरी तथा समाजवाद रखा ।

त्रिवेंद्रम सम्मेलन में साम्प्रदायिक सदभाव, आपसी भाईचारे के संकल्प के साथ यह तय किया गया कि  निशुल्क एवं सार्वभौमिक व वैज्ञानिक शिक्षा ,रोजगार के संघर्ष के साथ ही संगठन का अन्तिम लक्ष्य होगा । वास्तविक समाजवाद के उद्देश्यों की प्राप्ति । प्इन लक्ष्यों को लेकर संगठन की शुरुआत हुई । संगठन व्यापक हितों को देखते हुऐ समान विचार के संगठनों के साथ मिलकर अखिल भारतीय आन्दोलन की शुरूआत की । कुछ मायने में अनेक उपलब्धियां हासिल हुई तथा संगठन ने छात्रों से जुडे़ मुद्दों को बड़े ही सिद्दत एवं ईमानदारी के साथ उठाकर देश सबसे छात्र संगठनों में अपना स्थान बनाया ।

आपातकाल का विरोध करते हुऐ कांग्रेस की सरकार ने अनेक साथियों को गिरफ्तार किया । इस दौर में संगठन ने जनतंत्र की रक्षा के लिए देशव्यापी अभियान चलाया । सन् 1977में जनतंत्र की बहाली के बाद जनतांत्रिक सरकार के सामने छात्रों की मांगों को रखा । 15 सितम्बर 1981को दिल्ली के वोट क्लब संसद के सामने ऐतिहासिक संसद मार्च कर छात्र युवाओं वोट क्लब पर विशाल सभा का आयोजन कर सबको शिक्षा ,सबको काम का नारा बुलन्द कर देश के छात्रयुवा आन्दोलन को दिशा देने का कार्य किया ।
बर्ष 90 से हमारे देश के सत्ताधारी वर्ग ने नव उदारवादी नीतियों को लागू कर हमारे देश के पूंजीवादी विकास के मापदंडों को ही बदल डाला । आज काग्रेंस ,भाजपा सहित तमाम छोटी बडी़ पूंजीवादी पार्टियों ने नव उदारवादी नीतियों को आत्मसात कर दिया है । जिसका कि एस एफ आई ने जोरदार विरोध किया तथा संयुक्त वाम एवं प्रगतिशील छात्र आन्दोलन को विकसित किया ।

इस प्रकार प्रगतिशील वाम छात्र आन्दोलन द्वारा निरन्तरता से नव उदारवादी नीतियों के परिणामस्वरूप आऐ साम्राज्यवादपरस्त तथा साम्प्रदायिक नीतियों का जोरदार विरोध कर अपनी राजनैतिक एवं सामाजिक प्रतिबध्दता को प्रर्दशित किया है । इन छात्र संगठनों द्वारा जनता के विभिन्न जनमुद्दों तथा मजदूरों, किसानों के साथ एकजुटता उनके समाज के प्रति दायित्व को ही दर्शाता है । आज तेजी से निजीकरण और हिन्दुत्ववादी ताकतों के उभार के परिणामस्वरूप समान विकास, धर्मनिरपेक्ष ,जनतांत्रिक ताकतों के सामने गम्भीर चुनौती खडी़ कर दी है ।

बर्ष 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने से स्थितियों में भारी परिवर्तन आया है । अब सत्ता ऐसी पार्टी चला रही है जिसकी हिन्दुत्ववादी विचारधारा आर एस एस द्वारा नियन्त्रित है ,जिसके धर्मनिरपेक्षता ,जनतंत्र तथा मेहनतकश वर्ग के लिये सत्यनाशी नतीजे सामने आ रहे हैं । जिसका असर सीधेतौर पर शिक्षा जगत में भी देखने को मिल रहा ।पहले से चले आ रहे उच्च शिक्षा केन्द्रों एवं शिक्षा क्षेत्र में मिल रही थोड़ी बहुत सुविधाओं को आम छात्रों से छिने का कार्य किया जा रहा है । यही नहीं लम्बे संघर्ष एवं कुर्बानी के कारण मिली शिक्षा के वैज्ञानिक एवं धर्मनिरपेक्ष तथा जनतांत्रिक स्वरूप को बदलकर शिक्षा साम्प्रदायिकरण करना इस सरकार की प्राथमिकता है।प्रगतिशील इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेशकर इसे छद्म हिन्दुत्व की ओर मोड़ा जा रहा है ।आजादी के आन्दोलन में संघ परिवार द्वारा की गई देश के साथ गद्दारी को छिपाने के लिए आजादी के नेताओं का उपयोग अपनी विभाजनकारी नीतियों को आगे बढा़ने का कुत्सित प्रयास जारी है । आज देश में एक ऐसी विचारधारा के लोग सत्तासीन हैं ,जिनका आजादी के आन्दोलन से कोई लेना देना नहीं रहा । इसीलिए वे निरन्तर जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता, साम्राराज्यवादी विरोधी परम्परा तथा संविधान एवं न्याय व्यवस्था पर एक के बाद एक हमला करने में लगे हुये हैं तथा कारपोरेट तथा गोदी मीडिया उनके साथ है । हमारी साझी शहादत, साझी बिरासत की परम्परा सुरक्षित नहीं है ।आज सरकार ने नई शिक्षा नीति को लागूकर शिक्षा को कारपोरेट एवं विदेशी हाथों में सौंपने का कार्य कर आजादी के बाद बड़े संघर्षों के बाद शिक्षा क्षेत्र में मिली उपलब्धियों को छीनने का कार्य किया है ।नई शिक्षा नीति देर सवेर गरीब एवं मध्यम वर्ग को मिल रही सस्ती शिक्षा को छीनने का कार्य ही करेगी। जिसकी शुरुआत देश के कई विश्वविद्यालयों एवं शैक्षणिक संस्थानों में भारी फीस बढो़तरी के साथ शुरू हो चुकी है ।इसलिए संगठित छात्र आन्दोलन पर नई शिक्षा नीति के खिलाफ व्यापक आन्दोलन विकसित किये जाने जिम्मेदारी है।

(अनन्त आकाश 1991- 097 तक एस एफ आई उत्तर प्रदेश कै अध्यक्ष रहे। लेख में व्यक्त विचार निजी हैँ। लेखक के विचारों से एडमिन/ संपादक का सहमत होना जरूरी नहीं।)

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