मलबे के ढेरों में बदल गयी बदरीनाथ पुरी: पारितंत्र के संवेदनशीलता की घोर उपेक्षा : पढ़िए पूरी रिपोर्ट , देखिये वीडियो !
-जयसिंह रावत/प्रकाश कपरूवाण-
हिमालयी धाम बदरीनाथ को काशी विश्वनाथ की तरह सजाने की सनक ने करोड़ों सनातन धर्मावलम्बियों की आस्था के केन्द्र बदरीधाम को मलबे के ढेरों में बदल दिया है। भारी मशीनों से अलकनन्दा तट समेत जहां तहां खुदायी के कारण इस उच्च हिमालयी क्षेत्र का पारितंत्र प्रभावित हो रहा है। सन् 1974 की विशेष कमेटी की रिपोर्ट की अनदेखी कर किये जा रहे बेतहासा निर्माण कायों और खुदायी के कारण कारण भगवान बदरीनाथ के अभिषेक के लिये पानी देने वाला क्रूम धारा बंद हो गया है। बदरीनाथ पुरी के निचले हिस्से में भूधंसाव प्रकट होने के साथ ही कुछ स्थानों पर दरारें देखी जा सकती हैं। विशेषज्ञ आशंकित हैं कि अगर भूवैज्ञानिकों की देखरेख में बदरीनाथ के मास्टर प्लान का निर्माण कार्य नहीं कराया गया और धाम के मौलिक स्वरूप से इसी तरह छेड़छाड़ जारी रही तो भविष्य में केदारनाथ की जैसी आपदा की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता। बदरीनाथ पुरी के निचले हिस्से में भूधंसाव प्रकट होने के साथ ही कुछ स्थानों पर दरारें देखी जा सकती हैं।
बदरीनाथ में चल रहा जेसीबी का राज
बैंकुंठ धाम के नाम से भी पुकारे जाने वाले बदरीनाथ धाम की यात्रा इन दिनों चरम पर पहुंच रही है। जून के महीने में तो सारा ही देश इस हिमालयी तीर्थ की ओर उमड़ पड़ता है। लेकिन आत्मिक शांति देने वाली बदरीनाथ पुरी में इन दिनों चारों ओर मलबे के ढेरों में बदली हुयी है। दानदाताओं द्वारा यात्रियों के आश्रय के लिये बनायी गयी धर्मशालाओं की जगह विशाल मलबे के ढेर नजर आ रहे हैं। मास्टर प्लान के नाम पर पंडे पुरोहितों, दुकानदारों तथा हक हकूकधारी समाज की सैकडो वर्ष पुरानी बसागत को नये निर्माण के लिये एक झटके में ध्वस्त कर दिया गया है। रिवर फ्रंट डेवेलपमेंट के नाम पर बदरीनाथ मंदिर के चरणों से गुजर रही अलकनन्दा के तट को भारी मशीनों से खोदा जा रहा है। तीर्थयात्री भी किसी तरह दर्शन कर वहॉ से लौटने का आतुर दिख रहे हैं। यही नहीं बदरीनाथ मंदिर के लिए स्थानीय ग्रामीणों द्वारा भी सैकडांे नाली भूमि दान दी गई थी, जिस पर प्रशासन बिना मंदिर समिति को विश्वास में लिए कहीं दुकानंे निर्मित करवा रहा है तो कहीं बाकायदा भूमि पूजन कर आवास बनवा रहा है। हाइकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता तथा पूर्व राज्य सूचना आयुक्त राजेन्द्र कोटियाल इस कार्यवाही के खिलाफ राज्य मानवाधिकार आयोग से शिकायत की जिस पर आयोग ने संबंधित प्राधिकारियों को नोटिस जारी कर दिये हैं।
क्रूम और प्रह्लाद धाराएं हुयीं गायब
बेतहासा और अवैज्ञानिक निर्माण के दुष्परिणाम का पहला संकेत क्रूम और प्रह्लाद जलधाराओं के बंद होने से सामने आने लगा है। जहां पर ये धारे थे वहां मलबे के बड़े ढेर नजर आ रहे हैं। ये दोनों ही जल श्रोत पौराणिक महत्व के थे। क्रूम धारा के जल से भगवान बदरीनाथ का अभिषेक होता है। विशेषज्ञों के अनुसार मंदिर और बदरीनाथ पुरी के नीचे बहने वाली अलकनन्दा के तट पर जेसीबी मशीनों से की जा रही खुदाई के कारण ये जलधाराएं बन्द हुयी हैं और अगर आगे भी इसी तरह काम होता रहा तो बदरीनाथ के गर्म पानी के तप्तकुण्ड भी एक दिन सूख जायेंगे। जल श्रोतों के नीचे खुदाई करने से अक्सर वे अपना भूमिगत मार्ग बदल देती है। अगर वहां शेषनेत्र झील के आसपास भी इसी तरह भारी मशीनों से खुदाई की गयी तो इस झील का सूखना भी अवश्यंभावी है। यही नहीं रिवर फ्रंट डेवेलपमेंट के नाम पर अलकनन्दा तट पर बड़े पैमाने पर हो रही खुदाई से बदरीनाथ पुरी का समूचा भूमिगत जलतंत्र अस्तव्यस्त होने की आशंका जताई जा रही है। अगर ये प्राकृतिक गर्म पानी के श्रोत भटक गये तो मंदिर में दर्शन से पहले तीर्थयात्रियों के लिये स्नान की समस्या खड़ी हो जायेगी।
बदरी धाम में कहीं दरारें तो कहीं धंसाव
भारी मशीनों से खुदाई का असर बदरीनाथ पुरी में भूधंसाव के रूप में दिखाई देने लगा है। बाजार के निचले हिस्से में भूधंसाव साफ नजर आ रह है। कुछ भवनों की बुनियाद खोद डालने से उनके गिरने का खतरा उत्पन्न हो गया है। भूधंसाव के कारण पण्डे पुजारियों की कालोनी, पंचभैया मोहल्ला को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। बाजार गली में दरारें बढ़ गयी हैं। प्रशासन ने दरार वाले स्थान के दोनों ओर यात्रियों की सुरक्षा के लिये दीवार खड़ी कर दी हैं। रास्ता बंद होने से यात्रियों का आनाजाना अब कुबेर गली से किया जा रहा है। बाजार में बिहारीलाल शाह और सरदार जी की दुकान के नाम से पुकारे जाने वाले स्थल तक लगभग 50 मीटर लम्बी दरार प्रकट होने से लोगों को बदरीनाथ का जोशीमठ जैसा हस्र होने का अंदेशा सता रहा है। लेकिन भूविज्ञानियों का कहना है कि बदरीनाथ एक समतल स्थल होने के कारण वहां जोशीमठ जैसी नौबत नहीं आयेगी। लेकिन प्रख्यात पर्यावरणविद चण्डी प्रसाद भट्टका कहना है कि बदरीनाथ पुरी को सजाने संवारने का स्वागत है मगर बदरीनाथ के मौलिक स्वरूप से छेड़छाड़ से बचा जाना चाहिये इस अति संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र के पारितंत्र का विशेष ध्यान रखा जाना चाहिये।
अलकनन्दा में डाल रहे मलजल संयंत्र की गंदगी
बदरीनाथ मास्टर प्लान के नाम पर इस पौराणिक स्थल की मौलिकता से छेड़छाड़ तो हो ही रही थी लेकिन निर्माण कंपनी बदरीनाथ के सीवरेज ट्रीटमेंट प्लाण्ट के मलमूत्र भरे टैंक को अलकनन्दा में खाली कर गंगा की पवित्रता को भी दूषित कर रही है। एक तरफ सरकार गंगा की पवित्रता और निर्मलता के लिये नमामि गंगे प्रोजेक्ट पर खरबों रुपये खर्च कर रही है और दूसरी तरफ गंगा के उद्गम पर ही उसे मैला कर सरकार के इरादे पर पानी फेरा जा रहा है। मलजल शोधन संयंत्र से अलकनन्दा में प्रवाहित हो रही गंदगी का वीडिओ वायरल होने पर करोड़ों सनातन धर्मावलम्बियों की भावनाएं भी आहत हो रही है।
मौलिक स्वरूप से छेड़छाड़ को विशेषज्ञ कमेटी ने किया था मना
इससे पहले 1974 में भी बसंत कुमार बिड़ला की पुत्री के नाम पर बने बिड़ला ग्रुप के जयश्री ट्रस्ट ने भी बदरीनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कर उसे नया स्वरूप देने का प्रयास किया था। उस समय सीमेंट कंकरीट का प्लेटफार्म बनने के बाद 22 फुट ऊंची दीवार भी बन गयी थी और आगरा से मंदिर के लिये लाल बालू के पत्थर भी पहुंच गये थे। लेकिन चिपको नेता चण्डी प्रसाद भट्ट एवं गौरा देवी तथा ब्लाक प्रमुख गोविन्द सिंह रावत आदि के नेतृत्व में चले स्थानीय लोगों के आन्दोलन के कारण उत्तर प्रदेश की तत्कालीन हेमवती नन्दन बहुगुणा सरकार ने निर्माण कार्य रुकवा दिया था। इस सम्बन्ध में 13 जुलाइ 1974 को उत्तर प्रदेश विधानसभा में मुख्यमंत्री बहुगुणा ने अपने वरिष्ठ सहयोगी एवं वित्तमंत्री नारायण दत्त तिवारी की अध्यक्षता में हाइपावर कमेटी की घोषणा की थी। इस कमेटी में भूगर्व विभाग के विशेषज्ञों के साथ ही भारतीय पुरातत्व विभाग के तत्कालीन महानिदेशक एम.एन. देशपांडे भी सदस्य थे। कमेटी की सिफारिश पर सरकार ने निर्माण कार्य पर पूर्णतः रोक लगवा दी थी। तिवारी कमेटी ने बदरीनाथ धाम की भूगर्वीय और भूभौतिकीय एवं जलवायु संबंधी तमाम परिस्थितियों का अध्ययन कर बदरीनाथ में अनावश्यक निर्माण से परहेज करने की सिफारिश की थी। लेकिन बदरीनाथ के इतिहास भूगोल से अनविज्ञ उत्तराखण्ड की मौजूदा सरकार ने मास्टर प्लान बनाने में इस सरकारी विशेषज्ञ कमेटी की सिफारिशों की तक अनदेखी कर दी। जिसका नतीजा सामने आने लगा है।