-हरेंद्र बिष्ट / महिपाल गुसाईं-
स्नेह से “भगत दा ” के नाम से पुकारे जाने वाले जमीन से जुड़े उत्तराखंड के वरिष्ठतम राजनेता भगत सिंह कोश्यारी भले ही बेवाक बोलने में अक्सर चर्चा में आ जाते हैँ। लेकिन उनकी सबसे बड़ी खाशियत यह है कि वह अन्य नेताओं की तरह ‘अपने मुँह मियां मिट्ठू ‘ नहीं बना करते। अपने बारे में बखान करते हुए आपने उनको नहीं सुना होगा। जबकि उनके बारे में विख्यात है कि वह समाज, प्रदेश और देश के बारे में गंभीर चिंतन तो करते ही हैँ साथ ही आम आदमी के लिए हर वक्त समर्पित रहते हैँ। यही कारण है कि जब वह महाराष्ट्र के राज्यपाल रहे तो मुंबई के कुछ लोग व्यंग्य में वहां के राजभवन को उत्तराखंड भवन कह कर पुकारते थे। क्योंकि वहां उत्तराखंड के लोगों की भीड़ लगी रहती थी। भगत दा इतने सहज और सुलभ हैं कि उन्होंने राज्यपाल रहते हुए भी मुलाकातियों और खास कर उत्तराखंड के लोगों के साथ प्रोटोकॉल की परवाह नहीं की। अब जब कि वह किसी भी पद पर नहीं हैं, लेकिन उनसे मिलने वालों का डिफेन्स कॉलोनी स्थित उनके आवास पर ताँता लगा रहता है।
भगत दा पर हाल ही में एक पुस्तक निकली है। जिसका शीर्षक है “संसद में भगत सिंह कोश्यारी” इस पुस्तक योगेंद्र नारायण ने लिखी है । योगेंद्र नारायण उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव, राज्य सभा के महासचिव और गढ़वाल विश्वविद्यालय के कुलाधिपति रह चुके हैं। डा. अमित जैन द्वारा लिखित इस पुस्तक की प्रस्तावना में योगेंद्र नारायण ने संक्षेप में भगार डा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर जो प्रकाश डाला है वह इस प्रकार है.
“भगत दा के नाम से प्रसिद्ध श्री भगत सिंह कोश्यारी जी के जीवन और भाषणों को देखकर शेक्सपियर की एक कहावत याद आती है-‘कुछ लोग पैदा ही महानता के साथ होते हैं, कुछ लोग महानता प्राप्त करते हैं, और कुछ लोगों को महानता के साथ नवाज़ा जाता है। ‘ जब कोश्यारी जी का जन्म हुआ था, तब वे महान नहीं थे। उनका जन्म उत्तराखंड के बागेश्वर जिले में स्थित एक गाँव के साधारण से परिवार में हुआ था, लेकिन उत्तराखंड में दूर-दराज के इलाकों में रह रहे गरीब लोगों की स्थिति सुधारने के अपने प्रयासों से उन्होंने महानता हासिल की। महाराष्ट्र के राज्यपाल जैसे महान पद पर नियुक्ति के बावजूद आज भी वे जब-जब अपने गांव जाते हैं, तब-तब पैदल ही वहाँ के गाँवों का दौरा करते हैं। कोश्यारी जी के भाषण गाँव वालों के लिए आशा की किरण लेकर आते हैं, और उन्हें आश्वासन देते हैं कि उनका ख्याल रखने वाला भी कोई है।
राजनीति में उनकी शुरुआत उत्तर प्रदेश की विधान परिषद और उत्तराखंड की विधान सभा के गलियारों से हुई। उन्हें संसद के दोनों सदनों, राज्य सभा और लोक सभा में काम करने का मौका मिला, जहाँ उनके द्वारा दिए गए दिल को छू जाने वाले भाषणों ने उन्हें काफी ऊँचाइयों तक पहुँचाया। उनके भाषण उनकी सादगी तथा पूरे देश और उत्तराखंड की समस्याओं के बारे में उनकी जागरूकता को दर्शाते हैं। वे अपने भाषणों में केंद्र सरकार से पर्यावरण और वनों के संरक्षण में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की दरख्वास्त करते हैं, जिससे पर्यावरण के प्रति उनका प्रेम झलकता है। पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोग प्रकृति के कहर से समय-समय पर रूबरू होते रहते हैं, इसीलिए उन्हें यह भी लगता है कि केंद्र सरकार को पहाड़ी क्षेत्रों के विकास पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए। एक समय पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री होने के नाते, उन्हें वहाँ की वित्तीय परेशानियों/स्थिति की जानकारी भी थी। इसीलिए वे सरकार से उत्तराखंड के लिए खास वित्तीय प्रबंध के लिए लगातार अनुरोध करते रहे।
कोश्यारी जी उत्तराखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की समस्याओं से भी पूरी तरह अवगत थे। उन्होंने उस पूरे इलाके का पैदल दौरा किया और इन गाँवों में चीनियों के अतिक्रमण का मुद्दा उठाया। उन्होंने इन मुद्दों को संसद में उठाया और इन्हें केंद्र सरकार की नजरों में लेकर आए। उनकी इस वाक् कला के कारण ही उनके भाषण तत्कालीन सत्तारूढ़ दल के सदस्य भी बड़े ध्यान से सुना करते थे।
उनके सभी भाषण उनके अपने अनुभवों पर आधारित हुआ करते थे । साथ ही उनमें उनके नेक विचार और रचनात्मकता झलकती थी। वे संसद की याचिका समिति की अपनी अध्यक्षता के समय सशस्त्र बलों में कार्यरत लोगों की ‘वन रैंक, वन पेंशन’ के मुद्दे को उजागर करने वाले पहले व्यक्ति थे। उन्होंने इसकी पुरजोर वकालत की और आज इस मुद्दे को सही दिशा में जाते हुए देखकर उन्हें काफी संतुष्टि होती होगी। इसके लिए उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई थी।
उत्तराखंड में रेल व्यवस्था के विस्तार का श्रेय भी कोश्यारी जी को ही जाना चाहिए। वे उन कुछ लोगों में से हैं जिन्होंने उत्तराखंड में रेल व्यवस्था के विस्तार का मुद्दा उठाया। उनकी याचिका समिति द्वारा इसके लिए काफी जोरदार सिफारिश की गई थी। आज इस मुद्दे पर काम किया जा रहा है और इसके लिए कोश्यारी जी का धन्यवाद करना चाहिए।
इसी तरह याचिका समिति के अध्यक्ष रूप में उन्होंने पहाड़ों में जल विद्युत परियोजनाओं के लिए अनुचित मंजूरी के कारण पर्यावरण को होने
वाले नुकसानों की जांच की। उन्होंने इन सभी योजनाओं पर पुनर्विचार करने का अपना पक्ष काफी मजबूती से रखा। हम आज भी इन परियोजनाओं के कारण होने वाली जान-माल की हानि देख सकते हैं, क्योंकि यह परियोजनाएं अभी भी चल रही हैं। कोश्यारी जी की सलाह को अगर गंभीरता से लिया गया होता तो यह सब न होता।
श्री कोश्यारी जी एक साधारण व्यक्ति हैं और उनके भाषण बिना किसी विद्वेष के उनकी सादगी को दर्शाते हैं। इस तरह वे उन्हें नवाजी गई महानता के अधिकारी हैं। देश को कोश्यारी जी जैसे और राजनेताओं की आवश्यकता है। “
-डॉ. योगेन्द्र नारायण
पूर्व महासचिव, राज्यसभा