धर्म/संस्कृति

बधाणगढ़ी में चैत्र नवरात्र के अंतिम दिन एक भव्य मेले का आयोजन

-रिपोर्ट हरेंद्र बिष्ट-
थराली, 16 अप्रैल। गढ़वाल एवं कुमाऊं के मध्य में स्थित गढ़वाल के 52 गढ़ियों में से सुमार एवं महत्वपूर्ण गढ़ी बधाणगढ़ी में चैत्र नवरात्र के अंतिम दिन एक भव्य मेले का आयोजन हुआ जिसमें भारी संख्या में गढ़वाल की पिंडर घाटी, कुमाऊं की कत्यूर घाटी के साथ ही अन्य क्षेत्रों के देवी भक्तों ने शिरकत करते हुए पूजा अर्चना कर मनौतियां मांगी। जिन देवी भक्तों की मनौतियां पूरी हुई उन्होंने यहां पर विशेष पूजा अर्चना की।

यूं तो पूरे साल ही बधाणगढ़ी में नंदा भक्तों का तांता लगा रहता है। परंतु शरादीय नवरात्र एवं चैत्र नवरात्र में यहां पर देवी भक्तों की संख्या में भारी संख्या में इजाफा हो जाता हैं।कर्णप्रयाग -ग्वालदम राष्ट्रीय राजमार्ग पर पर्यटन नगरी ग्वालदम से करीब 10 किमी की दूरी पर समुद्र तल से 8124 फिट की ऊंचाई पर एक चोटी पर बधाणगढ़ी स्थित है। जहां पर करीब तीन किमी की खड़ी चढ़ाई को पैदल चल कर पहुंचा जा सकता है।

खड़ी चढ़ाई को पर कर जब श्रद्धालु बधाणगढ़ी पहुंचता है तो यहां से एक ओर सामने दिखने वाले गगनचुंबी हिमपर्वत श्रंखलाओं के साथ ही गढ़वाल एवं कुमाऊं के दूर तक के दृश्यों को देख लोग मौहित हुए एवं इस स्थान की तारीफ किए बगैर नही रह पाते हैं।

कम ही स्थानों से ऐसे मनमोहक दृश्य देखने को मिलते हैं। यहां पर सबसे ऊपरी चोटी पर शिवलिंग स्थापित हैं। जबकि इसके 150 मीटर नीचे राजराजेश्वर नंदा भगवती, दक्षिण काली,काल भैरव सहित अन्य देवताओं के मंदिर स्थित है।इन मंदिरों की स्थापना कब हुई इसके कोई ठोस दस्तावेज नही है। किंतु स्कंद पुराण के केदारखंड में बौरांचल पर्वत का उल्लेख हैं, और माना जाता हैं कि जब बौद्ध धर्म का प्रचार चरम पर था तो बौद्ध अनुयायी इसी मार्ग से होकर गुजरे थे उन्होंने ही इस पर्वत का नाम बौद्धांचल रख दिया जिससे बाद में स्थानीय लोगों ने बधाण नाम दे दिया।

माना जाता है कि 8-9 वीं शताब्दी के आसपास मंदिर का निर्माण किया गया। यहां पर तब नंदा भगवती की स्वर्ण मूर्ति स्थापित थी। किंतु इस गढ़ी पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए राजाओं के बीच लगातार युद्ध होते रहे और कोई राजा देवी की स्वर्ण मूर्ति को अपने साथ ले गया। माना जाता है कि सबसे पहले गुजरात के राजा सोनपाल ने बधाणगढ़ी को अपनी राजधानी बनाई।

बाद में गढ़वाल के तोमर वंशी राजा ने सोनपाल से इस गढ़ी को जीत लिया। गढ़वाल एवं कुमाऊं की सीमा पर स्थित इस गढ़ी को 15 वीं ई में चंपावत नरेश ने गढ़वाल नरेश अजय पाल को हर कर अपना कब्जा जमा लिया। किंतु चंपावत नरेश ज्यादा समय इस गढ़ी को अपने कब्जे में नही रख पाए और गढ़ नरेश ने पुनः इस पर कब्जा जमा लिया। इस गढ़ी पर कब्जे को लेकर गढ़वाल, कुमाऊं एवं गौरखाओं के बीच कई युद्ध हुए किंतु कोई भी राजा लंबे समय तक इस गढ़ी को अपने कब्जे में नही रख पाया।

यहां पर प्रतिवर्ष एक लाख से अधिक देवी भक्त दर्शनों के लिए आते हैं। नवरात्र की श्रंखला के तहत चैत्र नवरात्र की अष्टमी को मंगलवार को एक भव्य मेले का आयोजन हुआ इस दौरान भारी संख्या में श्रद्धालुओं की मौजूदगी में नंदा भगवती, काली, भैरव सहित अन्य कई देवी देवताओं के पश्वा अवतारित हुए जिन्होंने नाचते हुए भक्तों को जौ, चावल,फल-फूल आशीर्वाद स्वरूप दिए।

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मंगलवार को सम्पन्न हुई अष्टमी मेले के दौरान व्यवस्थाओं को चाक-चौबंद बनाएं रखने के लिए बधाणगढ़ी राजराजेश्वर, दक्षिण काली मंदिर समिति के संरक्षक त्रिलोक सिंह बुटोला, अध्यक्ष देवेंद्र सिंह बुटोला, उपाध्यक्ष संजू देवी, सचिव बिजेंद्र बुटोला, राजेन्द्र सिंह, कोषाध्यक्ष खुशाल सिंह बुटोला, पुजारी कांती प्रसाद गौड़, उमेश चन्द्र गौड़,ममंद अध्यक्ष दमयंती देवी,अम्मी देवी, सदस्य दर्शन सिंह बुटोला, विनोद, संतोष, नरेंद्र सिंह, राकेश सिंह, विरेन्द्र सिंह, प्रताप सिंह, प्रकाश, सतीश सिंह आदि ने सक्रिय भूमिका निभाई।

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