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वेश बदलकर ठगने की टेक्नोलॉजी

– गोविंद प्रसाद बहुगुणा

इसका मतलब है कि दूसरे की खाल ओढ़ कर ठगने की कला रामायण काल से बखूबी चली आ रही है, जो अब अधिक Sophisticated form में पेशेवर रुप में अपनाई जा रही है, इसमें साइबर टेक्नोलॉजी भी प्रयोग की जा रही है और मीडिया के लोग भी इस पेशे में hire किये जाते हैं । फर्जी पुलिस आफिसर और आईएस बनकर लोगों को ठगने के कई किस्से हमने पढे हैं।

*भगवान* राम की समझ में यह क्यों नहीं आया होगा कि राक्षसों की एक प्रजाति वेश बदलकर ठगने में माहिर हैं जबकि उनके करतबों से वह भली भांति परिचित थे, जब वे विश्वामित्र के आश्रम में प्रशिक्षण हासिल कर रहे थे और वनवास अवधि में भी रावण की बहिन शूर्पणखा से भी उनका सामना हो चुका था । पर जैसा कहते हैं कि लालच बुरी बला है , उसी ने पति पत्नि दोनों की बुद्धि पलट दी। –जब भगवान भी ठगे जा सकते हैं तो भाई हम तो साधारण मनुष्य ठहरे-

हाईस्कूल की संस्कृत की किताब में पढ़ा हुआ यह श्लोक शायद मेरे समकालीन मित्रों को भी अच्छी तरह याद होगा-

असम्भवं हेममृगस्य जन्म
तथापि रामो लुलुभे मृगाय।
प्रायः समापन्नविपत्तिकाले
धियोऽपि पुंसां मलिना भवन्ति॥ -हितोपदेश

(Although Golden deer in living form was an absolute impossibility to take birth even then prince Ram ran after it to hunt it down with a sheer greed to have its golden skin on the persuation of his wife . This happening suggests that even the wise men lose their sense of discretion in the face of adversity. -!Translated by GPB for his grandchildren)

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