हिमालय पर नजर आ रहा है जलवायु परिवर्तन का असर
-जयसिंह रावत-
जलवायु परिवर्तन का असर हिमालय पर साफ नजर आने लगा है। हालांकि दिसम्बर का दूसरा सप्ताह शुरू होते ही मध्य हिमालय के विख्यात ओम पर्वत, बदरीनाथ और केदारनाथ समेत ऊंचाई वाली हिमालयी पहाड़ियों पर पहला हिमपात तो हो गया, लेकिन ऊंची पहाड़ियों पर बर्फ की ये चादर लम्बे समय तक टिके रहने के आसार कम ही नजर आ रहे हैं। क्योंकि निरंतर बर्फबारी से ही बर्फ की चादर ग्रीष्म के आगमन तक टिकी रह पाती है और मौसम विभाग मध्य और पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र में सामान्य से कम वर्षा का पूर्वानुमान जारी कर चुका है। प्रकृति का नियम है कि वर्षा कम होगी तो हिमपात भी बहुत कम होगा। जिसका व्यापक असर हिमालय से जुड़े पांच देशों पर पड़ेगा, क्योंकि हिमालय ऐशिया का जलस्तंभ होने के साथ ही इस महाद्वीप का मौसम नियंत्रक भी है। हिमालय पर बर्फबारी गंगा के मौदान की आर्थिकी से प्रत्यक्ष और पारोक्ष, दोनों तरह से जुड़ी हुयी है।
दिसम्बर में सामान्य से कम वर्षा का पूर्वानुमान
भारतीय मौसम विभाग द्वारा जारी ताजा पूर्वानुमान के अनुसार दिसंबर 2024 में उत्तर और उत्तर-पश्चिम भारत के अधिकांश हिस्सों, साथ ही पूर्वी भारत और पूर्वोत्तर भारत के कुछ हिस्सों में सामान्य से कम वर्षा हो सकती है। वहीं दक्षिण भारत के प्रायद्वीपीय क्षेत्रों में सामान्य से अधिक 121 प्रतिशत तक वर्षा होने की संभावना जताई गयी है। पूर्वानुमान के अनुसार दक्षिणी प्रशांत महासागर में तटस्थ एल-नीनो स्थितियां देखी जा रही हैं, जबकि ला नीना की स्थितियां अधिक विकसित होने की संभावना है। जिनसे भारतीय जलवायु पर असर पड़ सकता
बर्फबारी पर कम वर्षा का पड़ेगा सीधा असर
कम वर्षा का हिमालय क्षेत्र में बर्फबारी पर सीधा प्रभाव पड़ता है, क्योंकि बर्फबारी वर्षा के ही रूप में होती है। लेकिन यह तापमान और ऊंचाई पर निर्भर करती है। कम वर्षा से हिमालय की ऊँची चोटियाँ और घाटियाँ बर्फ की बजाय हल्की बारिश या शुष्क मौसम का सामना कर सकती हैं। विशेषज्ञों की माने तो हिमालय में कम वर्षा और कम बर्फबारी के कारण मुख्य रूप से वैश्विक जलवायु परिवर्तन, एल-नीनो प्रभाव, वायुमंडलीय दबाव में बदलाव, और मानवीय गतिविधियाँ हैं। वायुमंडलीय दबाव के पैटर्न में बदलाव के कारण उत्तर-पश्चिमी हवाएँ हिमालय के ऊपरी हिस्सों तक नहीं पहुँच पातीं, जिससे वर्षा और बर्फबारी में कमी हो सकती है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान में वृद्धि हो ही रही है, जिससे बर्फबारी की प्रक्रिया प्रभावित होती है। गर्मी बढ़ने से बर्फ की जगह बारिश अधिक होने लगती है, और बर्फबारी में कमी आती है। जंगलों की कटाई और भूमि उपयोग में बदलाव से पर्यावरणीय असंतुलन होता है, जो स्थानीय जलवायु को प्रभावित करता है और बर्फबारी और वर्षा की प्रक्रिया को कम कर सकता है। इसके अलावा पृथ्वी के जलवायु चक्र में प्राकृतिक रूप से बदलाव आते रहते हैं, जैसे ‘‘इंटर-मॉनसून’’ और ‘‘मॉनसून ब्रेक्स’’, जो हिमालय क्षेत्र में कम वर्षा और बर्फबारी का कारण बन सकते हैं।
ऐशिया के जलस्तंभ हिमालय पर पड़ेगा प्रभाव
हिमालय एशिया का जलस्तंभ और मौसम नियंत्रक होने के नाते इस क्षेत्र में बर्फबारी की कमी न केवल स्थानीय पर्यावरण और जलवायु को प्रभावित करती है बल्कि इसका दूरगामी प्रभाव भी पूरे देश और समाज पर पड़ता है। इसके दुष्परिणाम विभिन्न क्षेत्रों में व्यापक होते हैं। हिमालय की बर्फबारी भारतीय नदियों और जलाशयों के लिए एक प्रमुख जलस्रोत का काम करती है। कम बर्फबारी का मतलब है बर्फ का पिघलना जिसका सीधा असर नदियों के जलस्तर पर पड़ता है। इससे जलसंकट पैदा हो सकता है, जो कृषि, पेयजल और उद्योगों पर असर डालता है। गंगा, यमुना, सतलुज, सिन्धु और ब्रह्मपुत्र जैसी ग्लेशियर आधारित नदियाँ भारतीय उपमहाद्वीप के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये नदियाँ न केवल जल आपूर्ति का एक मुख्य स्रोत हैं, बल्कि इनका कृषि, उद्योग, बिजली उत्पादन और पीने के पानी के लिए भी बड़ा महत्व है। इन नदियों पर बड़ी-बड़ी जलविद्युत परियाजनाएं चल रही हें और कई अन्य निर्माणाधीन हैं। इन परियोजनाओं को पूरी क्षमता से चलाने और अधिक से अधिक बिजली उत्पादन के लिये नदियों में भरपूर पानी की आवश्यकता होती है।
ग्लेशियरों और वर्षा पैटर्न पर असर
बर्फबारी में कमी से ग्लेशियरों का पिघलने की प्रक्रिया तेज हो सकती है। इसके परिणामस्वरूप, हिमालय क्षेत्र में जल स्तर में वृद्धि हो सकती है, जो बाद में बर्फीले तूफान, बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाओं का कारण बन सकता है। कम बर्फबारी के कारण तापमान में वृद्धि हो सकती है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र असंतुलित हो जाता है। यह वनस्पतियों और जीवों की आवासीय स्थितियों को प्रभावित करता है, जिससे जैव विविधता में कमी आ सकती है। बर्फबारी का एक प्राकृतिक कार्य सूरज की किरणों को परावर्तित करना (अल्बेडो प्रभाव) है। जब बर्फ कम होती है, तो अधिक गर्मी अवशोषित होती है, जिससे वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है। इससे मौसम में असंतुलन हो सकता है और अधिक गर्मी, सूखा और तीव्र वर्षा जैसी घटनाएँ बढ़ सकती हैं। हिमालय पर कम बर्फबारी के कारण, भारतीय मानसून और वर्षा पैटर्न भी प्रभावित हो सकते हैं। गर्मी के बढ़ने से मानसून की दिशा और पैटर्न में बदलाव आ सकता है, जिससे असामान्य वर्षा और सूखा जैसी स्थितियाँ बन सकती हैं।
आर्थिक गति विधियों पर भी पड़ेगा असर
हिमालय में बर्फबारी कम होने से पानी की आपूर्ति में कमी हो सकती है, जो रबी और खरीफ फसलों के लिए नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। किसानों को सिंचाई के लिए अतिरिक्त जलस्रोतों की आवश्यकता होगी, जिससे लागत बढ़ सकती है और कृषि उत्पादन में कमी हो सकती है। हिमालय क्षेत्र में स्कीइंग, ट्रैकिंग और अन्य बर्फ आधारित पर्यटन गतिविधियाँ बहुत प्रसिद्ध हैं। बर्फबारी में कमी से इन गतिविधियों का आकर्षण कम हो सकता है, जिससे पर्यटन उद्योग पर बुरा असर पड़ सकता है। यह स्थानीय रोजगार और आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है। इस स्थिति में हिमालयी क्षेत्र के वायुदाब और वायुगतिकी में बदलाव आ सकता है। यह वायु प्रदूषण के स्तर को बढ़ा सकता है, जिससे श्वसन संबंधित बीमारियाँ और स्वास्थ्य समस्याएँ बढ़ सकती हैं, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहाँ वायु प्रदूषण पहले से उच्च स्तर पर होता है। हिमालय पर कम बर्फबारी से गर्मी की लहरें और अधिक प्रकोपित हो सकती हैं। अत्यधिक गर्मी से हीट स्ट्रोक, निर्जलीकरण, और अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ हो सकती हैं। ऐसी स्थिति में सरकारों और जन सामान्य को किसी भी स्थिति से निपटने के लिये पहले ही तैयार रहने की जरूरत है।
(नोट : लेखक वरिष्ठ पत्रकार कई पुस्तकों के लेखक तथा संपादक हैं और उत्तराखंड हिमालय पोर्टल के संपादक मंडल के अवैतनिक/मानद सदस्य — एडमिन/ मुख्य संपादक)