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हिमालय पर पर फटते हुये बादल, खतरनाक संकेत

 

 A view of the Western Himalayas from the window of an airplane flying from Shrinagar to Delhi.  January 2022.                      Photo by Jay Singh Rawat

जयसिंह रावत

हिमालय जो ऐशिया के मौसम चक्र का नियंत्रक, ऐशिया का जलस्तम्भ, तत्नों की खान और मानव समूहों का आश्रयदाता हुआ करता था वह न केवल मानव समूहों के लिये असुरक्षित हो गया बल्कि उसका अपना ही मौसम चक्र गड़बड़ा गया है। इसी साल 8 जुलाइ को बादल बादल फटने के बाद आयी त्वरित बाढ़ ने कम से कम 41 अमरनाथ यात्रियों की जानें ले लीं। अमरनाथ यात्रा के सदमें को लोग भूल भी नहीं पाये थे कि 20 अगस्त को हिमाचल के मंडी जिले में बादल फटने के कारण हुयी त्रासदी में कम से कम 21 लोग मारे गये। उत्तराखण्ड में इन पंक्तियों के लिखे जाने तक मानसूनी आपदा के कारण 44 लोग मारे जा चुके हैं और 8 अन्य लापता हैं। पूर्वी हिमालय की स्थिति भी कमोवेश अच्छी नहीं कही जा सकती है।

Six Army columns were activated on short notice in cloud burst hit areas Bastari Urma, Singhali and amp; Patharkot of Pithoragarh district of Uttarakhand. Photo collection- Jay Singh Rawat

हिमालय पर बादल फटने की घटनाएं बढ़ गयीं

हिमालय पर बादल फटना, हिमखण्ड स्खलन या एवलांच गिरना, भूस्खलन और त्वरित बाढ़ जैसी घटनाएं नयी नहीं हैं। लेकिन आपदाओं के शिकार हिमालयवासियों के साथ ही विशेषज्ञ भी मानने लगे हैं कि इन घटनाओं की फ्रीक्वंसी काफी बढ़ गयी है। पिछले साल के एक अनुमान के अनुसार पूरे हिमालय क्षेत्र में जनवरी से जुलाइ तक बादल फटने की 29 घटनाएं हुयीं थीं। वर्ष 2021 मंे ही 7 फरबरी को गढ़वाल हिमालय की धौली और ऋषिगंगा में आई बाढ़ के कारण लगभग 205 लोगों के मारे जाने का अनुमान है। हैरानी की बात यह कि बाढ़ शीत ऋतु में नहीं बल्कि बरसात में आती है और वह भी हिमालय पर उस समय बाढ़ आ गयी जबकि ठण्ड से उच्च हिमालय की नदियां ही जमने लगती हैं। केदारनाथ ही 2013 की अकल्पनीय बाढ़ में तो 5 हजार से कहीं अधिक तीर्थ यात्रियों के मारे जाने का अनुमान था। उस समय भी केदारनाथ से कहीं ऊपर बादल फट गया था।

हिमालय पर यह विप्लव मानवीय कारणों से

इन अप्रत्याशित हिमालयी घटनाओं से भले ही मौसम विज्ञानी और आपदा प्रबंधक हैरान-परेशान हों, मगर पर्यावरण विशेषज्ञ परेशान तो हैं मगर हैरान नहीं हैं।  उनका मानना है कि हिमालय पर यह विप्लव प्राकृतिक से अधिक मानवीय कारणों से हो रहा है। पहले भी हिमालय पर त्वरित बाढ़, हिमखण्ड स्खलन, बिजली गिरने, भूस्खलन और बिजली गिरने जैसे घटनाएं होती ही रहती थीं, मगर अब इनकी फ्रीक्वंेसी बढ़ गयी है जिसका प्रमुख कारण ग्लोबल वार्मिंग तो है ही लेकिन इनके लिये स्थानीय कारण या लोकल वार्मिंग भी कम जिम्मेदार नहीं हैं।

The Army columns deployed in the rescue operation in Bastari village of Pithoragarh are searching the survivor under the debris on second consecutive day . Photo collection Jay Singh Rawat

कोसी की बाढ़ से लेकर केदारनाथ की आपदा तक विप्लव ही विप्लव

जलवायु परिवर्तन के कारण हिमालय का पारितंत्र असंतुलित होने के साथ ही हिमालयवासियों का जीवन भी असुरचित होता जा रहा है।उत्तराखण्ड में सामान्यतः मानसून का प्रवेश 20 जून के बाद होता था और वर्ष 2013 में 16 जून को ही मानसून गोली की तरह अप्रत्याशित रूप से सीधे केदारनाथ से कहीं ऊपर चढ़ कर फट गया। चूंकि जून में मानसून के आने से पहले हिमालय पर हिमरेखा काफी नीचे तक रहती है, जो कि सूरज के गरमाने के साथ धीरे-धीरे पिघल कर पीछे खिकती जाती है। उस बार मानसून ने हिमरेखा को पीछे खिसकने का मौका ही नहीं दिया। जिसका अंजाम केदारघाटी ही नहीं बल्कि समूचे गढ़वाल हिमालय में काली से लेकर टौंस तक भयंकर बाढ़ के रूप में सामने आया। ऋतुचक्र गड़बड़ाने से समय से पहले मानसून आना और क्रायोस्फीयर में वर्षा होना भविष्य के लिये भी खतरे की घण्टी है। इस खतरे की जद में हिमालय ही नहीं बल्कि समूचा गंगा का मैदान है। 18 अगस्त 2008 की कोशी की बाढ़ को हम भूले नहीं हैं। उस बाढ़ में लगभग 30 लाख लोग भारत में और 50 हजार दक्षिण नेपाल में प्रभावित हुये थे।

                                                   Kedarnath devastated on 16 and 17 June 2013. Photo collection- Jay singh Rawat

फटने वाले बादल बचने का मौका भी नहीं देते

हिमालय पर बादल फटने की घटनाएं सबसे बड़ा चिन्ता का विषय बनी हुयी हैं। बादल फटने से न केवल त्वरित बाढ़ बल्कि भूस्खलन के मामले भी बढ़ गये हैं। उत्तराखण्ड के आपदा प्रबंधन एवं न्यूनीकरण केन्द्र के निदेशक डा. पियूष रौतेला के अनुसार इस साल राज्य में मानसूनी आपदा में कुल 44 लोग मरे, 8 लापता और 40 घायल हो चुके हैं। इनमें 18 मृतक और 8 लापता केवल बादल फटने और त्वरित बाढ़ की आपदाओं के हैं। राज्य में 568 मकान भी आपदा की चपेट में आये जिनमें से 38 पूरी तरह जमींदोज हुये है। पशु और खेती की हानि अलग है। केदारनाथ आपदा में तो हजारों लोग मरे थे जिनमें से लगभग 5 हजार की ही पुष्टि हो पायी।

एक साथ पानी उंडेलता है आसमान

भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) के अनुसार, जब किसी विशेष क्षेत्र में वर्षा की मात्रा 100 मिलीमीटर प्रति घंटे से अधिक हो जाती है, तो यह बादल फटने की स्थिति होती है। आईएमडी के अनुसार, न्यूनतम सीमा काफी अधिक है, यही वजह है कि 1970 और 2016 के बीच केवल 30 ऐसी घटनाएं दर्ज की गई हैं। कुछ वैज्ञानिक दो घंटे के भीतर 50 से 100 मिमी बारिश को ‘‘मिनी क्लाउडबर्स्ट’’ कहते हैं। भारतीय उष्णदेशीय मौसम विज्ञान  संस्थान पुणे (आइआइटीएम) की श्रीमती (डा0) एन. आर. देशपाण्डे के अनुसार दो घंटे के भीतर 50 मिमी या उससे अधिक की बारिश को मिनी क्लाउडबर्स्ट कहा जा सकता है।

हिमालय पर महासागरों के गरमाने का असर

श्रीमती (डा0) एन. आर. देशपाण्डे के शोध के अनुसार, जून 2021 में पश्चिमी तट पर और जुलाई और अगस्त 2021 में मध्य भारत और हिमालय की घाटियों में बादल फटने की कई घटनायें घटीं। उनके शोध में यह भी दावा किया गया है कि 1926-2015 के बीच मानसून सीजन में, मिनी बादल फटने की घटनाओं में वृद्धि हुई है। श्रीमती देशपाण्डे ने भागीरथी और धौलीगंगा बेसिन के मौसम पर अध्ययन के साथ ही हिमालय की अतिवृष्टि पर उनके शोधपत्र ( मानसून एक्स्ट्रा ट्रॉपिकल सर्कुलेशन इन्टेरैक्शन इन हिमालयन एक्सट्रीम रेनफॉल, क्लाइमेट डाइनामिक्स) में भी हिमालय पर बादल फटने की घटनाओं में वृद्धि के कारण गिनाये गये हैं।

भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान श्रीनगर के डा0 मुनीर अहमद के अनुसार महासागर तेजी से गर्म हो रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप नमी युक्त हवा हिमालय क्षेत्र में पहुंचती है। इससे बादल फटने लगते हैं। हिंद महासागर से नमी में वृद्धि के साथ इसके और अधिक होने की संभावना है। मुनीर का मानना है कि हिंद महासागर का बढ़ता तापमान हालांकि जलवायु परिवर्तन का स्पष्ट संकेत है।

लोकल वार्मिंग का हिमालय पर असर

चिपको आन्दोलन के प्रणेता पद्मभूषण चण्डी प्रसाद भट्ट का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग की बात तो सभी करते हैं लेकिन लोकल वार्मिंग की चर्चा नहीं होती। श्री भट्ट हिमालयी ग्लेशियरों के अध्ययन हेतु भारत सरकार द्वारा गठित पटवर्धन कमेटी के सदस्य भी थे। उनका कहना है कि ग्लेशियरों के सिकुड़ने के लिये अगर केवल ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार होती तो सारे के सारे ग्लेशियर पीछे खिसकते। जबकि कुछ ग्लेशियर आगे भी बढ़ रहे हैं। बढ़ते मानव दबाव के कारण हिमालय पर लोकल वार्मिंग का असर ज्यादा है। बात भी सही है इस साल अब तक के यात्रा सीजन में बदरीनाथ समेत उत्तराखण्ड के चारों हिमालयी धामों में मई से लेकर अगस्त तक के 3 महीनों में ही 33.44 लाख यात्री पहुंच गये। यही नहीं इन यात्रियों के 3,53,766 वाहन सीधे गंगोत्री और सतोपन्थ जैसे ग्लेशियरों के निकट पहुंच गये। जब रेल कर्णप्रयाग तक पहुंचेगी तो फिर असीमित और अनियंत्रित मानव समूहों की कल्पना की जा सकती है।

वनों का विनाश भी हिमालय के संकट का कारण

ग्लोबल फॉरेस्ट वॉच की रिपोर्ट के अनुसार भारत ने सन् 2002 से लेकर 2021 तक कुल भारत का 19 प्रतिशत वृक्षआरण घटा। रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2010 में भारत का वृक्षावरण 31.3 मिलियन है0 था जो कि कुल भौगारेलिक क्षेत्र का 11 प्रतिशत था। सन् 2021 में  हमने 127 हजार है0 प्राकृतिक वन खो दिये जोकि 54.6 मी0 टन कार्बन स्टॉक की क्षति के बाराबर है। पूर्वी हिमालय जैव विविधता की दृष्टि से विश्व के सम्पन्नतम् हॉट स्पॉट्स में शामिल है, वहां हर साल वनावरण घट रहा है।

 

 

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