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सरकार के लिए जी का जंजाल बना जोशीमठ आपदा का मुआवजा : जनता को चिढ़ाने वाले हैं आपदा के मानक

जयसिंह रावत

आपदाग्रस्त जोशीमठ में प्रभावितों को मुआवजे का मामला उत्तराखण्ड सरकार के लिये जी का जंजाल बनता जा रहा है। अपने को अधिक संवेदनशील साबित करने के लिये राज्य सरकार अब तक का सबसे बेहतर मुआवजा पैकेज देने का वायदा तो कर रही है, लेकिन वह सबसे बेहतर पैकेज क्या होगा, यह तय करने में सरकार के पीने छूट रहे हैं। क्योंकि राज्य सरकार आर्थिक रूप से प्रभावितों को सन्तुष्ट करने की स्थिति में नहीं है और केन्द्र सरकार के नियम ऊंट के मुंह में जीरा के समान ही है। ऐसी स्थिति में आंच केन्द्र सरकार की ओर भी जा रही है। क्योंकि मुआवजा केन्द्र सरकार के राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) के नियमों के हिसाब से ही बंटना है और वे नियम घावों पर नमक छिड़़कने के जैसे ही है। यहां सवाल केवल सम्पत्ति की क्षति का नहीं बल्कि आजीविका की क्षति का भी है। सवाल लोगों के जीवन और उनके सपनों के बिखरने का भी है।

तीन विकल्प और तीनों में सरकार मानकों पर कायम

राज्य सरकार ने अब तक मुआवजे और पुनर्वास के लिये प्रभावितों 3 विकल्प प्रस्तावित किये हैं। तीनोकं विकल्पों में मानकों के अनुसार मुआवजा दिये जाने की बात कही गयी है और मानक ऊंट के मुंह में जीरा समान है। पहले विकल्प में प्रभावित भू या भवन स्वामियों को वित्तीय सहायता प्रदान करते हुये वन टाईम सेटलमेन्ट किया जायेगा। प्रभावित हुए भूमिया भवन की क्षति के मुआवजे के रूप में वन टाइम सेटलमेन्ट करते हुए भूमि या भवन का निर्धारित मानकों के अनुसार भुगतान किया जाएगा। सम्पूर्ण भुगतान करने से पूर्व संबंधित प्रभावित की भूमि या भवन की रजिस्ट्री राज्य सरकार के पक्ष में की जानी होगी।

दूसरे विकल्प के तहत प्रभावित भू-भवन स्वामियों को प्रभावित भूमि के सापेक्ष गृह निर्माण के लिए निश्चित अधिकतम क्षेत्रफल 100 वर्ग मी0 तक की भूमि प्रदान की जायेगी तथा प्रभावित भवन का मुआवजा दिया जायेगा। प्रभावित भू-भवन स्वामियों को 100 वर्ग मी0 से अधिक की भूमि होने पर शेष भूमि का मानकों के अनुसार भुगतान किया जायेगा। प्रभावित भूमि/भवन स्वामियों का संपूर्ण भुगतान करने से पूर्व व गृह निर्माण के लिये निश्चित अधिकतम क्षेत्रफल 100 वर्ग मी0 तक की भूमि आवंटित करने से पूर्व संबंधित आपदा प्रभावित की भूमि या भवन की रजिस्ट्री राज्य सरकार के पक्ष में की जानी होगी।

तीसरे विकल्प के तहत प्रभावितों के पुनर्वास हेतु चिन्हित स्थान पर अधिकतम 75 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की सीमा तक की भूमि पर भवन निर्माण कर दिया जायेगा। यदि प्रभावित आवासीय भवन या भूमि का मूल्यांकन प्रदान किये जा रहे भूमि या आवास से अधिक है तो शेष धनराशि का भुगतान प्रभावित को किया जायेगा। प्रभावित भूमि भवन के सापेक्ष अधिकतम 75 वर्ग मीटर क्षेत्रफल की सीमा तक की भूमि पर भवन निर्माण कर आवंटित करने से पूर्व संबंधित आपदा प्रभावित की भूमि या भवन की रजिस्ट्री राज्य सरकार के पक्ष में की जानी होगी।

आपदा में आवास है मगर आजीविका शामिल नहीं

एनडीएमए के नियमों के अनुसार इस तरह की आपदा की स्थिति में केवल आवासीय भवनों, घरेलू सामान के नुकसान, खेतों और बगीचों के नुकसान आदि के लिये ही मुआवजे का प्रावधान है। इसमें होटल, दुकान या किसी भी आर्थिक गतिविधि वाले व्यावसायिक  केन्द्र के नुकसान के लिये मुआवजा देने का प्रावधान नहीं है। एनडीएमए के नियमों में स्पष्ट किया गया है कि व्यावसायिक गतिविधियों वाले केन्द्र को मुआवजे से बाहर रखा गया है। यह प्रावधान सभवतः इन्स्यौरेंश की व्यवस्था के कारण रखा गया है। जबकि जोशीमठ बदरीनाथ यात्रा का बेस होने के साथ ही पर्यटन और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के कारण एक प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र है। वहां कई मंजिले होटलों के अलावा लोगों ने यात्रा सीजन में भीड़ को देखते हुये घरों पर ही यात्रियों के ठहरने के लिये कमरे बनाये हुये है। छोटे दुकानदरों, ढाबों और खोमचों का कोई बीमा नहीं है।

 

करोड़ के मकान का भी सवा लाख मुआवजा

एनडीएमए के नियमों में पूर्णरूप से क्षतिग्रस्त आवासीय भवन का मुआवजा पहाड़ी क्षेत्रों में 1,30,000 रुपये प्रतिघर और मैदानी क्षेत्र में 1,20,000 प्रति घर तय है। आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त पक्के घर का मुआवजा 65,000 रुपये तथा कच्चे घर का 40,000 रुपये तय है। मकानों के साथ ही क्षतिग्रस्त झोपड़ी के लिये 8000 रुपये तथा पशुओं के बाड़े के लिये 3000 रुपये का मुआवजा तय है। इसी तरह बाढ़ की स्थिति में 3 सेमी तक गाद हटाने के लिये अधिकतम् 18,000 रुपये और न्यूनतम् 2200 रुपये तय है। जोशीमठ में बाढ़ नहीं आयी, इसलिये गाद का सवाल ही नहीं। मगर वहां गहरी और चौड़ी दरारों के कारण खेत ही बेकार हो गये हैं। हल चलाते समय हल और बैल दानों ही दरारों और गड्ढों में फंस सकते हैं। जमीन भी खिसक रही हो तो फिर खेत कैसे सुरक्षित रह सकते हैं। मुआवजे में बागवानी फसलों के लिये वर्षा सिंचित क्षेत्रों में 8,500 प्रति हेक्टेअर अधिकतम् और 1,000रुपये न्यूनतम तय है। इसी तरह सुनिश्चित सिंचित क्षेत्रों में अधिकतम् मुआवजा 17,000 और न्यूनतम् 2,000 रुपये है। बारामासी फसलों, एग्रो फारेस्ट्री ( अपने खेतों में वृक्षारोपण) पर अधिकतम् 22,500 और न्यूनतम् 2,500 न्यूनतम प्रति हेक्टेअर है। ऐरी, मलबरी, और टसर के लिये 6,000 रुपये प्रति हेक्टेअर और मूंगा के लिये 7,500 प्रति हेक्टेअर तय है। अगर सरकार इस हिसाब से मुआवजा बांटती है तो उसे भारी जनाक्रोश का सामना करना पड़ेगा। करोड़ रुपये तक के मकान के लिये 1लाख 30 हजार दोगे तो लोग भड़केंगे ही।

खिसकती धरती पर बने मकान कैसे सुरक्षित हो सकते?

भूधंसाव के कारण बरबाद हो रहे जोशीमठ में 30 जनवरी  तक 863 मकानों पर दरारें और केवल 181 को असुरक्षित घोषित किया गया था। सरकारी भाषा में मकानों को पूर्ण रूप से या आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त घोषित नहीं किया गया है। सरकार द्वारा जो एक्सग्रेसिया दिया जाना है वह क्षति के आधार पर ही दिया जाना है। जिन मकानों के नीचे धरती खिसक रही हो उनमें चाहे जितनी और जैसी भी दरारें हो, उन्हें कैसे सुरक्षित या आंशिक क्षतिग्रस्त माना जा सकता है? इसलिये जितने भी मकान भूधंसाव के क्षेत्र में हैं वे सभी खतरे में हैं और उनको पूर्ण क्षतिग्रस्त ही माना जा सकता है।

देश में आपदा का मुआवजा अलग-अलग नहीं हो सकता

बदरीनाथ में मास्टर प्लान के तहत निर्माण कार्य के लिये सरकार ने पूराने मकान, सराय और होटल, और निजी आवास आदि ध्वस्त करा दिये। इसलिये जोशीमठ के आपदा प्रभावित अपने लिये भी बदरीनाथ का जैसा मुआवजा और पैकेज चाहते हैं। कुछ लोग टिहरी बांध विस्थापितों का जैसा पैकेज देने की बात कर रहे है। मगर राज्य सरकार आर्थिक रूप से उस स्थिति में नहीं है। बदरीनाथ में भारत सरकार के हिसाब से और उसी के परिव्यय से काम हो रहा है। टिहरी में बांध बनाकर प्रतिदिन अरबों रुपये के राजस्व अर्जित करने के लिये लोगों को विस्थापित किया गया। इसलिये टीएचडीसी के लिये मुआवजे की मुंहमांगी रकम देना मुश्किल नहीं था। किसी बड़े प्रयोजन के लिये हुये पुनर्वास और आपदा के कारण पुनर्वास के नियम बिल्कुल अलग होते हैं। जोशीमठ में  एनडीएमए के 10 अक्ूबर 2022 को संशोधित नियमों और मानकों के अनुसार ही मुआवजा दिया जाना है एनडीएमए केवल जोशीमठ के लिये अपने नियमों से बाहर नहीं जा सकता। अगर ऐसा हुआ तो सारे देश में उसी हिसाब से आपदा मुआवजा देना होगा। अगर राज्य सरकार अपनी ओर से मुआवजे की अतिरिक्त राशि देती है तो आपदाओं की दृष्टि से अति संवेदनशील उत्तराखण्ड में अन्य स्थानों में भी उतना ही मुआजा देना देना पडेगा। उत्तराखण्ड में हर साल भूस्खलन, त्वरित बाढ़, बिजली गिरने, एवलांच जैसी प्राकृतिक आपदाएं होती रहती है सबसे बड़ा भूकम्प का खतरा तो हर समय मंडराता ही रहता है अगर बदरीनाथ के पैटर्न पर मुआवजा दिया गया तो प्रदेश भर में आपदा प्रभावितों को उसी पैटर्न पर मुआवजा दिया जायेगा। ऐसी स्थिति में मुआवजे के मानकों में आम लोगों की आजीविका को अवश्य शामिल किया जाना चाहिये।

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