इसको निन्दा *रस* कहते हैं जो सिर्फ मोहब्बत में ही मीठा लगता है
– गोविंद प्रसाद बहुगुणा
दरअसल मोहब्बत में ही निन्दा रस मीठा लगता है,किसी भी बहाने अपने प्रेमी की चर्चा छेड़ना लेकिन अन्य मामलों में इसको दुर्भावनापूर्ण चर्चा समझिए। श्रीमद्भागवत में यह शिकायत गोपियां कर रही है, सुनिए जरा-
“मृगयुरिव कपीन्द्रं विव्यते लुब्धधर्मा स्त्रियमकृत विरूपां स्त्रीजित:कामयानाम्।बलिमपि बलिमत्वावेष्टयद् ्ध्वाँक्षवद य-स्तदलमसितसख्यैर्दुस्त्यजस्तत्कथार्थ:।। अरे मधुप!जब वे राम बने थे तब उन्होंने कपिराज बालि को व्याध के समान छिपकर बड़ी निर्दयता से मारा था।बेचारी शूपर्णखा कामवश उनके पास आई थी, परन्तु उन्होंने अपनी स्त्री के वश होकर उस बेचारी के नाक कान काट लिए और इस प्रकार उसको कुरूप कर दिया। ब्राह्मण के घर वामन के रूप में जन्म लेकर उन्होने क्या किया? बलि ने तो उनकी पूजा की,उनकी मुंह मांगी वस्तु दी और उन्होंने उसकी पूजा ग्रहण करके भी उसे वरुणपाश में बांधकर पाताल पहुंचा दिया,ठीक वैसे ही जैसे कौआ बलि खाकर भी बलि देने वाले को अपने साथियों के साथ मिलकर घेर लेता है और उसे परेशान करता है। अच्छा तो अब जाने दे; हमें श्रीकृष्ण से क्या किसी भी काली वस्तु के साथ मित्रता से कोई प्रयोजन नहीं है। परन्तु यदि तू यह कहे कि,”जब ऐसा है तब तुम लोग उनकी चर्चा ही क्यों करती हो ! तो भ्रमर हम सच कहती हैं कि एक बार जिसे उसका चसका लग जाता है,वह उसे छोड़ नहीं सकता।ऐसी दशा में हम चाहने पर भी उसकी चर्चा छोड़ नहीं सकती।”