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झण्डा मेले पर बिशेष :  दरबार साहिब ने शिक्षा क्षेत्र में अद्वितीय कार्य किया 

-अनन्त आकाश
दरबार साहिब ने शिक्षा के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य किया एक समय था, जब सामान्य परिवारों का छात्र अच्छी शिक्षा पाने में असमर्थ था तो गुरूरामराय शिक्षा मिशन ने समाज के लिए अनेक शिक्षण संस्थानों को खोलकर न केवल उन्हें योग्य बनाया बल्कि हजारों हजार परिवारों को रोजगार भी दिया,यह कार्य स्वर्गीय महन्त इन्द्रेश चरण दासजी के समय पर तेजी से हुआ ,उन्होंने जीवन के अन्तिम बर्षों में हमारे राज्य के लिये मेडिकल शिक्षा एवं स्वास्थ्य की नीव रखी ,जिसे उनकी मृत्यु के बाद वर्तमान महन्त देवेंद्र दासजी ने आगे बढ़ाया ।
जब महन्त इन्द्रेश चरण दास जी गद्दी पर थे तो उस दौर में आजादी का आन्दोलन भी तेजी पर था एक तरफ गांधी जी के नेतृत्व में अंग्रेजों भारत छोड़ो आन्दोलन छेड़ रखा था तो दूसरी तरफ क्रान्तिकारी अपने तरीके से आजादी के आन्दोलन में अपना अभूतपूर्व योगदान दे रहे थे ,कहते हैं कि महन्तजी आजादी के लिये लड़ रहे सभी विचारधाराओं को समान रूप से मदद करते थे ।

सन् 1983 में जब स्टूडेंट्स फैडरेशन आफ इण्डिया (एस एफ आई)उत्तर प्रदेश का राज्य सम्मेलन देहरादून के अग्रवाल धर्मशाला हो रहा था ,तब शहीदे आजम भगतसिंह के अन्यय साथी रहे क्रान्तिकारी शिव वर्मा सम्मेलन के मुख्य अतिथि थे । अपने सम्बोधन में उन्होंने अनेक संस्मरण सुनाये जिसमें उन्होंने यह भी कहा कि जब भी क्रान्तिकारियों पर दबिश पड़ती थी तो वे सुरक्षित देहरादून आते थे ,महन्त जी न केवल उन्हें शरण देते थे अपितु उनकी मदद भी किया करते थे । उन दिनों सहारनपुर क्रान्तिकारी आन्दोलन का केन्द्र था, जहाँ से पंजाब तथा लाहौर आसानी से आया जाया जा सकता था । इस प्रकार महन्त जी बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे । कामरेड शिव वर्मा से आजादी के आंदोलन के बाद 1983 में यह दूसरी मुलाकात थी ,कहते हैं कि एक दूसरे को देखकर दोनों अभिभूत हो गये थे ।ऐसे थे महन्त इन्द्रेश चरण दास जो जरूरतमंदों के लिए हर समय उपलब्ध थे ।
उदासीन सम्प्रदाय सिखों के 7 वे गुरू श्री हररायजी के जेष्ठ पुत्र गुरू रामरायजी ने 1676 मे देहरादून मे डेरा डाला था , तब ही से यह देहरादून से जाने जाना लगा उस दौरान देश मे मुगल शासक औरन्जेब का शासन था ।कहते हैं ,ईस्ट इण्डिया कम्पनी के अंग्रेजो अधिकारियों को उस समय दरबार से अनुमति लेनी पड़ती ,दरबार स्थापित होने के बाद देहरादून का चहुंमुखी विकास की शुरुआत हुई ।आज भी देहरादून की बड़ी आबादी का हिस्सा दरबार साहिब की दान की गई भूमि पर ही बसा है ।कुल मिलाकर दरबार साहिब की जनपक्षधरता के चलते हजारों हजार परिवारों ने तरक्की का रास्ता देखा ।
दरबार साहिब की परम्परा के अनुसार प्रमुख, जिन्हें सज्जादा नशीन श्री महंत कहा जाता है,जो ब्रह्मचर्य का जीवन जीते हैं, और समाज की सेवा के लिए आजीवन अपने को समर्पित करते हैं ,उनका त्याग ,व्यक्तित्व और कार्य कुशलता समाज के लिये उदाहरण है ।
श्री गुरु राम राय जी महाराज 1687 में अपने स्वर्गीय निवास के लिए चले गए और दरबार साहिब का काम माता पंजाब कौर द्वारा प्रबंधित किया गया। उन दिनों महिलाओं को एक धार्मिक संप्रदाय या महंत की गद्दी पर बैठने की मनाही थी, इसलिए उन्होंने दरबार साहिब के एक अनुभवी सहायक और भक्त श्री औद दास जी और मुख्य कर्मचारी की मदद से काम को आगे बढ़ाया। श्री हर प्रसाद जी। श्री औद दास जी को प्रथम श्री महंत घोषित किया गया। उन्होंने श्री गुरु राम राय जी के मार्गदर्शन में काम किया था और उन्हें बहुत अनुभव प्राप्त हुआ था।
इस प्रकार श्री महंत औद दास जी श्री महंत हर प्रसाद जी ,श्री महंत हर सेवक जी ,श्री महंत हर स्वरूप दास जी ,श्री महंत प्रीतम दास जी ,श्री महंत नारायण दास जी ,श्री महंत प्रयाग दास जी ,
श्री महंत लक्ष्मण दास जी,श्री महंत इन्दिरेश चरण दास जी आज
श्री महंत देवेंद्र दास जी इस परम्परा का बखुबी निर्वहन कर रहे है ।

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