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दून विश्वविद्यालय में भारतीय महिला : सत्य आधारित दृष्टिकोण पर अन्तरतरष्ट्रीय कांफ्रेंस

महिला को सही स्थान मिलेगा तो होगा राष्ट्र निर्माण : राज्यपाल

–उत्तराखंड हिमालय ब्यूरो –
देहरादून, 25 नवंबर। जिस दिन महिला को सही स्थान मिलेगा उस दिन राष्ट्र और समाज का सही निर्माण होगा। एक नारी के प्रति सही दृष्टिकोण क्या हो इसके लिए हमें अपनी जड़ों की तरफ लौटना होगा। दून विश्वविद्यालय में ” भारतीय महिला: सत्य आधारित दृष्टिकोण”  विषयक अन्तरतरष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस का उद्घाटन उत्तराखंड के राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) गुरमीत सिंह अपने इन शब्दों के साथ किया।
शुक्रवार को एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय मुंबई और संवर्धिनी न्यास के सहयोग से हुए आयोजन में उन्होंने कहा कि हमें कुछ डिलर्न करना यानी बिसराना होगा, जैसे  कि बाहरी सभ्यताओं के प्रभाव से हमारी सोच में आयी विकृतियां। हमें कुछ रीलर्न यानी फिर से सीखना होगा और वो है नारी को नारायणी और पुरुष का पूरक मानने वाली हमारी प्राचीन सभ्यता का ज्ञान। बेहतर समाज के लिए यह सब एक आंदोलन की तर्ज़ पर होना चाहिए।उन्होंने कहा की वह महिला सशक्तिकरण और बालिका शिक्षा को अपनी प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर रखते हैं। वैदिक परंपरा और गुरु ग्रंथ साहिब के हवाले के कई उद्धरण देकर उन्होंने नारी के उस रूप के कई आयाम सामने रखे जो स्वयं सिद्धा और धारिणी शब्दों को सार्थक करते हैं।


राज्यपाल ने डॉ. लीना गहाने, डॉ. सुरेखा डंगवाल, डॉ. उज्ज्वला चक्रदेव द्वारा संपादित पुस्तक ‘भारतीय महिला: सच आधारित दृष्टिकोण ‘का भी विमोचन किया

यूकोस्ट के महानिदेशक प्रोफेसर दुर्गेश पंत ने बहुत भावुक वक्तव्य की शुरुआत माँ शब्द करते हुए बताया इसी शक्ति की वजह से गांव बचे हुए हैं, आर्थिकी संभली हुई है। वह समाज की मसल भी है बैकबोन भी। सारे बड़े काम महिलाएं चुपचाप कर जाती हैं ।
राष्ट्र सेविका समिति की प्रमुख शांता अक्का जी ने कहा कि  उत्तराखंड के अलग राज्य की स्थापना मातृ शक्ति के प्रयासों से हुई इसलिए पहली विचार गोष्ठी यहाँ होना गर्व की बात है। उन्होंने विवेकानंद जी के एकात्म भाव की बात करते हुए कहा कि भारतीय दर्शन में महिला और पुरुष एक दूसरे के पूरक हैं तथा उनमें कोई स्पर्धा नहीं है। एक बाज़ की परवाज के लिए उसके दोनों पंखों का एक समान मजबूत होना जरूरी है। स्त्री पुरूष उन दोनों पंखों की तरह हैं। स्त्री कई मायनों में श्रेष्ठ भी है। आदि शंकराचार्य ने मंडन मिश्र के साथ शास्त्रार्थ में उनकी पत्नी को निर्णायक रखा। उन्हें विश्वास था कि चूंकि वह स्त्री है इसलिए न्याय को पति से भी ऊपर रखेगी। हम उस समृद्ध परंपरा से हैं लेकिन फिर भी कालांतर में महिलाओं का शोषण हुआ जिसके लिए सावित्री बाई फुले जैसी महिलाएं आगे आयीं।
भारत के पहले महिला विद्यापीठ एसएनडीटी यूनिवर्सिटी मुंबई की कुलपति  डॉ. उज्जवला चक्रदेव ने प्री कॉन्फ्रेंस पर रिपोर्ट पेश करते हुए बताया कि इस आयोजन के विचार में देश के 91 कुलपति शामिल हैं। लंबे विमर्श के बाद इसे मूर्त रूप दिया गया।  हम इस विचार को लेकर चलते हैं एक महिला का संस्कृता होना समाज का शिक्षित होना है।
नैक की उप सलाहकार लीना लहाणे में मुक्ता बाई, रत्नावली, जीजाबाई,पन्ना धाय, आदि ऐतिहासिक पात्रों की कहानियों के जरिये सप्त शक्तिधारिणी, चतुर्गुण संपन्न स्त्री शक्ति का अपने अंदाज में परिचय कराया।
इससे पहले अपने स्वागत भाषण में कुलपति प्रो. सुरेखा डंगवाल ने कहा कि महिला के बारे में भारतीय  नजरिया पश्चिमी विचारों से काफी अलग है।  उन्होंने कहा कि इस विमर्श के विषयों में सीता के साथ ही मांडवी और सुतश्री, मैत्रेयी, अहिल्याबाई होलकर से लेकर गौरा देवी का भी दृष्टिकोण शामिल है। इस दो दिन के विचार मंथन से ऐसा कुछ निकलेगा जो सरकारों को भी प्रेरित करेगा।
संवर्द्धिनी न्यास की संयोजक माधुरी मराठे ने धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने कहा कि सम्मेलन का उद्देश्य भारतीय महिलाओं की कहानी को सही परिप्रेक्ष्य में रखना है। उन्होंने महिलाओं की ताकत, शक्तियों पर अपने विचार व्यक्त किए, जो हर कार्य और क्षेत्र में महिलाओं से जुड़ी हुई है।
आयोजन में बाहर से आये तीन विश्वविद्यालयों के कुलपति और प्रोफेसर के अलावा देहरादून जिले के कई महाविद्यालयों और विश्विद्यालयों के प्रोफेसर भी आमंत्रित थे। कई प्रतिभाग भी कर रहे हैं।

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