ब्लॉग

पर्यावरण की चिन्ताएं -हम बदलेंगे तो जग बदलेगा : Environmental concerns – If we change, the world will change

It is  rightly said that “if we change, the era will change”. In fact, if we want to change the world or era, then we have to start it from ourselves. Inspired by this spirit, the theme of this year’s World Environment Day is “Life”, which means lifestyle. The intention is that if we adapt our lifestyle to nature, then the protection of the environment will happen automatically. Because we are not the owner of nature but its part like other living beings. We cannot operate nature according to our own and if we want to live a happy and safe life, then we have to walk according to nature.–JSR


-जयसिंह रावत
किसी ने सही कहा है कि ‘‘ हम बदले तो युग बदलेगा’’। वास्तव में जग या युग बदलना है तो हमें उसकी शुरूआत स्वयं से करनी होगी। इसी भावना से प्रेरित इस साल के विश्व पर्यावरण दिवस की थीम ’’लाइफ’’ भी है जिसका अभिप्राय जीवन शैली से है। अभिप्राय यह कि अगर हमने अपनी जीवन शैली प्रकृति के अनुकूल कर दी तो पर्यावरण का संरक्षण स्वयं ही हो जायेगा। क्योंकि हम प्रकृति के मालिक नहीं बल्कि अन्य जीवधारियों की ही तरह उसके अंग हैं। हम प्रकृति का संचालन अपने हिसाब से नहीं कर सकते और अगर सुखी और सुरक्षित जीवन जीना है तो प्रकृति के अनुसार ही हमें चलना होगा।

पर्यावरणीय मुद्दे जो चिन्ता पैदा करते हैं

हमारे समक्ष आज कई मुख्य पर्यावरणीय मुद्दे हैं जो गंभीर चिंता का विषय बने हुये हैं। इनमें से सर्वाधिक ज्वलंत मुद्दा जलवायु परिवर्तन का है। यह समस्या मुख्य रूप से मानव गतिविधियों से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण मानी गयी है। यह समस्या बढ़ते वैश्विक तापमान, बदलते मौसम के पैटर्न, समुद्र के स्तर में वृद्धि और अन्य प्रतिकूल प्रभावों के रूप् में सामने आ रही है। इसके कारण दैवी आपदाओं में बृद्धि हो रही है। कृषि, लॉगिंग, शहरीकरण और अन्य उद्देश्यों के लिए जंगलों की बड़े पैमाने पर कटाई के कारण आक्सीजन के सबसे बड़े भण्डार वनों का दायरा सिकुड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप वन्यजीव निवास की हानि, जैव विविधता में गिरावट और वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि हुई है। जैव विविधता का तेजी से नुकसान भी एक गंभीर मुद्दा है। मानव गतिविधियों जैसे प्राकृतिक आवास का विनाश, प्रदूषण, अतिदोहन और जलवायु परिवर्तन वन्यजीवों की आबादी और निवास स्थान कीे गिरावट का कारण बन रहे हैं। बढ़ते मानव और वन्य जीव संघर्ष का भी यह एक कारण है।

प्रदूषण से जीवन को खतरा

दुनिया भर के कई क्षेत्र पानी के अत्यधिक उपयोग, प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन जैसे कारकों के कारण पानी की कमी का सामना कर रहे हैं। इसका पारिस्थितिकी तंत्र, कृषि और मानव आबादी पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और मृदा प्रदूषण सहित विभिन्न रूपों में प्रदूषण एक प्रमुख चिंता का विषय बना हुआ है। यह मानव स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र और वन्य जीवन पर नकारात्मक प्रभाव डालता है। औद्योगिक गतिविधियों, परिवहन और जीवाश्म ईंधन के जलने से होने वाले उत्सर्जन के कारण खराब वायु गुणवत्ता का मानव स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है और श्वसन संबंधी बीमारियों और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं को बढ़ा रहा है। उचित प्रबंधन और संरक्षण के बिना, जीवाश्म ईंधन, खनिजों और मीठे पानी सहित प्राकृतिक संसाधनों की अत्यधिक खपत, संसाधनों की कमी हमें भविष्य के संकट की ओर ले जा रही है।

पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली मूल मंत्र

अगर हम अपनी जीवन शैली को बदलें तो पर्यावरणीय असन्तुलन के कारण हम जिस गंभीर संकट की ओर बढ़ रहे हैं, उसे रोका जा सकता है और हम बेहतर जीवन पा सकते हैं। उदाहरणार्थ अगर हम ऊर्जा-कुशल उपकरणों का उपयोग करके, उपयोग में न होने पर लाइट और इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरणों को बंद करें और हीटिंग तथा कूलिंग सिस्टम को अनुकूलित करके ऊर्जा की बचत करें या सौर या पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करें तो पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे सकते हैं। इसी प्रकार यदि हम जब भी संभव हो आवागमन के लिये साइकिल चलाने या सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने का विकल्प चुनें। कार का उपयोग करने की आवश्यकता है, तो कारपूलिंग या इलेक्ट्रिक या हाइब्रिड वाहनों का उपयोग करें तो कार्बनडाऑक्साइड जैसी गैसों के उत्सर्जन को कम करने में मदद मिल सकती है। पानी के रिसाव को ठीक करके, छोटे शावर लेकर, और पानी की बचत करने वाले उपकरणों का उपयोग करके पानी का संरक्षण कर सकते हैं। बागवानी के लिए वर्षा जल एकत्र कर और ड्रिप सिंचाई जैसी जल-बचत तकनीकों का उपयोग कर सकते हैं। पर्यावरण संरक्षण के लिये हम पुनः उपयोग की जाने वाली वस्तुओं और पुनर्चक्रण सामग्री को कम करके अपशिष्ट प्रबंधन पदानुक्रम अपना सकते हैं। सिंगल-यूज प्लास्टिक से बच कर पुनः प्रयोज्य विकल्प चुन सकते हैं। लैंडफिल योगदान को कम करने के लिए जैविक कचरे को कम्पोस्ट बना सकते हैं।

खान पान की आदतें भी बदलनी जरूरी

पर्यावरण संरक्षण के लिये हम अपनी खाने की आदतें भी बदल सकते हैं। स्थानीय रूप से उत्पन्न किए गए, ऑर्गेनिक और मौसमी उत्पादों को चुनकर अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम कर सकते हैं। भोजन को संतुलित और नियोजित कर, बचे हुए को कंपोस्ट करके, और स्थायी कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करके भोजन की बर्बादी को कम कर सकते हैं। पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों, नैतिक और टिकाऊ ब्रांडों और पर्यावरण प्रबंधन को प्राथमिकता देने वाले व्यवसायों का समर्थन करके सूचित विकल्प बना सकते हैं।

बिजली और पानी को बचाना भी जरूरी

विश्व पानी के संकट की ओर बढ़ रहा है। अतः हमें पानी के संरक्षण पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इसके साथ ही हमें कागज के उपयोग को सीमित करके और बिजली की खपत के प्रति सचेत रहकर संसाधनों का जिम्मेदारी से उपयोग करना चाहिये। हमें न्यूनतम पैकेजिंग वाले उत्पाद चुनने चाहिये और अनावश्यक खरीदारी से बचना चाहिये। प्रकृति में अधिक समय बिताएं, इसकी सुंदरता की सराहना करें और पर्यावरण के साथ आत्मिक संबंध विकसित करें। हमें संरक्षण को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों में शामिल होना चाहिये, जैसे स्थानीय पर्यावरण संगठनों के लिए स्वेच्छा से काम करना या सामुदायिक सफाई आदि कार्यक्रमों में भाग लेना।

औरों को भी जागरूक करिये

हमें पर्यावरण संरक्षण की वकालत करने के लिए अपनी आवाज उठानी चाहिये। उन नीतियों का समर्थन करना चाहिये जो कि नवीकरणीय ऊर्जा और सतत विकास को बढ़ावा देती हैं। पर्यावरण चेतना जगाने के लिये दूसरों को प्रोत्साहित करना चाहिये।हमें याद रखना चाहिये कि प्रत्येक छोटा कार्य मायने रखता है, और सामूहिक रूप से, इन परिवर्तनों का पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। पर्यावरण के प्रति जागरूक जीवन शैली अपनाकर हम आने वाली पीढ़ियों के लिए हमारे ग्रह के संरक्षण और सुरक्षा में योगदान दे सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!