देहरादून नगर निगम के प्रेक्षागृह में प्रेमचंद के गोदान का मंचन
–अनंत आकाश —
आजकल हमारे राज्य उत्तराखण्ड की सर्वाधिक लोकप्रिय एवं पुरानी संस्थाओं में से एक वातायन उपन्यास सम्राट मुन्शी प्रेंमचन्द के सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय उपन्यास गोदान पर आधारित नाट्य की प्रस्तुतियों का मंचन चल रहा है।
नाटकों की श्रृंखला की तीसरी प्रस्तुति आज नगरनिगम प्रेक्षागृह में पेश की गयी। इससे पहले ओएनजीसी में प्रस्तुतियां दी जा चुकी है। कल पहली नगर निगम प्रेक्षागृह की पहली प्रस्तुति में कलाकारों ने गोदान नाट्य की सजीव प्रस्तुति पेश कर दर्शकों को आत्मविभोर किया ।हमारे राज्य के सर्वाधिक लोकप्रिय नाट्य कर्मी श्री गजेंद्र वर्मा की देखरेख में इन नाट्यों की प्रस्तुति अपने आप सराहनीय प्रयास है ।वे वातायन के संस्थापक सचिव है ,यह संस्था अपनी यात्रा के 45 बर्ष पार कर चुकी है । संस्था ने अनेक नवोदित कलाकारों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । संस्था से जुड़े अन्य पदाधिकारी भी ऊर्जावान हैं ,संस्था इसी तरह समाज में अपना योगदान देती रहे।
मुंशी प्रेमचंद ने सरल सहज हिन्दी को, ऐसा साहित्य प्रदान किया जिसे लोग, कभी नही भूला नहीं पाएंगे। विपरीत परिस्थियों के बावजूद उन्होंने हिन्दी पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। मुंशी प्रेमचंद हिन्दी के लेखक ही नही बल्कि एक महान साहित्यकार, नाटककार, उपन्यासकार ,समाज सुधारक जैसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे ।
गोदान मुन्शी प्रेमचंद सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सबसे अधिक पढ़ें जाने वाला उपन्यास है, जिसने उनकी प्रतिभा को अपने चरम उत्कर्ष पर पहुँचा दिया है ।
इस उपन्यास में ग्रामीण जीवन की सामन्ती व्यवस्था का सजीव चित्रण है । भारतीय किसान का संपूर्ण जीवन – उसकी आकांक्षा और निराशा, उसकी धर्मभीरुता और भारत परायणता के साथ स्वार्थपरता ओर बैठकबाजी, उसकी बेबसी और निरीहता- का जीता जागता चित्रण मौजूद है । ग्रामीण जीवन में उसकी गर्दन जिस पैर के नीचे दबी है ,उसे सहलाता, क्लेश और वेदना को झुठलाता, ‘मरजाद’ की झूठी भावना पर गर्व करना वह ऋणग्रस्तता के अभिशाप में पीसता, तिल तिल शूलों भरे पथ पर आगे बढ़ता, भारतीय समाज का मेरुदंड यह किसान कितना शिथिल और जर्जर हो चुका है।
नगरीकरण ने गाँवों की शान्ति पूर्ण जीवन को कैसे प्रभावित कर दिया है। जमींदार, मिल मालिक, पत्र संपादक, अध्यापक, पेशेवर वकील और डाक्टर, राजनीतिक नेता और राजकर्मचारी कैसे गाँव के इस निरीह किसान का निर्मम शोषण कर रहे हैं और महाजन और पुरोहित उनकी लूट में शामिल हैं । गोदान में इनकी लूटखसोट एवं चालबाजियों को प्रत्यक्ष रूप से पात्रों की अभिव्यक्ति के माध्यम से समझा जा सकता है । गोदान सही मायनों में २०वीं शताब्दी की 1930 दशक का दुर्लभ हकीकत है।
गोदान मुन्शी प्रेंमचन्द का सही मायने में संपूर्ण जीवन का व्यंग , विनोद, कसम कसाहट , पीड़ा, विद्रोह और वैराग्य, अनुभव और आदर्शवाद का चरम है । गोदान में मुन्शी प्रेंमचन्द का अद्भुत उपन्यास-कौशल दिखाई पड़ेगा क्योंकि उन्होंने जितनी बातें कहीं हैं , वे समग्र विकास की कही । प्रेमचंद ने एक स्थान पर लिखा है – ‘उपन्यास में आपकी कलम में जितनी शक्ति हो अपना जोर दिखाईऐ, राजनीति पर तर्क कीजिए, कोई दूषण नहीं।’ प्रेमचंद ने गोदान में अपनी कलम का पूरा जोर दिखाया है। सभी बातें कहने के लिये उपयुक्त प्रसंग कल्पना, समुचित तर्कजाल और सही मनोवैज्ञानिक विश्लेषण प्रवाहशील, चुस्त और दुरुस्त भाषा और वर्णनशैली में उपस्थित कर देना प्रेमचंद का अपना विशेष कौशल है और इस दृष्टि से उनकी तुलना में शायद ही किसी उपन्यास लेखक से हो ।
जिस समय प्रेमचन्द का जन्म हुआ वह युग सामाजिक-धार्मिक रुढ़िवाद से भरा हुआ था। इस रुढ़िवाद से स्वयं प्रेमचन्द भी प्रभावित हुऐ। जब अपने कथा-साहित्य का सफर शुरु किया अनेकों प्रकार के रुढ़िवाद से ग्रस्त समाज को यथाशक्ति कला के शस्त्र द्वारा मुक्त कराने का संकल्प लिया। अपनी कहानी के बालक के माध्यम से यह घोषणा करते हुए कहा कि “मैं निरर्थक रूढ़ियों और व्यर्थ के बन्धनों का दास नहीं हूँ।”
प्रेमचन्द और शोषण का बहुत पुराना रिश्ता माना जा सकता है। क्योंकि बचपन से ही शोषण के शिकार रहे प्रेमचन्द इससे अच्छी तरह वाकिफ हो गए थे। समाज में सदा वर्गवाद व्याप्त रहा है। समाज में रहने वाले हर व्यक्ति को किसी न किसी वर्ग से जुड़ना ही होगा।
प्रेमचन्द ने वर्गवाद के खिलाफ लिखने के लिए ही सरकारी पद से त्यागपत्र दे दिया। वह इससे सम्बन्धित बातों को उन्मुख होकर लिखना चाहते थे। उनके मुताबिक वर्तमान युग न तो धर्म का है और न ही मोक्ष का। अर्थ ही इसका प्राण बनता जा रहा है। आवश्यकता के अनुसार अर्थोपार्जन सबके लिए अनिवार्य होता जा रहा है। इसके बिना जिन्दा रहना सर्वथा असंभव है।
वह कहते हैं कि समाज में जिन्दा रहने में जितनी कठिनाइयों का सामना लोग करेंगे उतना ही वहाँ गुनाह होगा। अगर समाज में लोग खुशहाल होंगे तो समाज में अच्छाई ज्यादा होगी और समाज में गुनाह नहीं के बराबर होगा। प्रेमचन्द ने शोषित वर्ग के लोगों को उठाने का हर संभव प्रयास किया। उन्होंने आवाज लगाई “ऐ लोगों जब तुम्हें संसार में रहना है तो जिन्दों की तरह रहो, मुर्दों की तरह जिन्दा रहने से क्या फायदा ?।”
प्रेमचन्द ने अपनी कहानियों में शोषक-समाज के विभिन्न वर्गों की करतूतों व हथकण्डों का पर्दाफाश किया है।गोदाम भी इसी अभिव्यक्ति का चरमोत्कर्ष है ।