पवित्र नदी अलकनन्दा बदरीनाथ में हो रही मैली : नमामि गंगे को उद्गम पर ही लग रहा पलीता
–जयसिंह रावत/प्रकाश कपरुवाण
बैकुंठ धाम के नाम से भी पुकारे जाने वाले बदरीनाथ धाम का मलजल शोधन संयंत्र याने कि सीवेज ट्रीटमेंट प्लाण्ट (एसटीपी) एक बार फिर चर्चाओं में आ गया है। नामामि गंगे परियोजना के तहत गंगा की निर्मलता और पवित्रता को बनाये रखने के लिये स्थापित यह प्लांट स्वयं गंगा को इसके उद्गम स्थल पर और वह भी बदरीनाथ में अपमल या सीवेज डाल कर प्रदूषित कर रहा है। इस संयंत्र द्वारा फैलाई जा रही गंदगी का मुद्दा दो बार नैनीताल हाइकोर्ट के समक्ष उठ चुका है।
नमामि गंगे परियोजना पर स्वयं ही लगा रहे पलीता
केंद्र सरकार ने फरवरी 2009 में नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी का गठन किया था। एनजीआरबीए को ही गंगा नदी के संरक्षण और उसके प्रदूषण को रोकने और कम करने का जिम्मा गया है। नमामि गंगे कार्यक्रम एक एकीकृत संरक्षण मिशन है, जिसे केंद्र सरकार द्वारा जून 2014 में 20,000 करोड़ रुपये के बजट परिव्यय के साथ राष्ट्रीय नदी गंगा के प्रदूषण, संरक्षण और कायाकल्प के प्रभावी उन्मूलन के दोहरे उद्देश्यों को पूरा करने के लिए ‘फ्लैगशिप प्रोग्राम’ के रूप में अनुमोदित किया गया था। नमामि गंगे परियोजना के 2021 के आंकड़ों के अनुसार परियोजना के तहत उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान राज्यों में कई सीवेज प्रबंधन परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही हैं। अलकनन्दा नदी में गंदगी रोकने के लिये जोशीमठए गोपेश्वर, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग एवं श्रीनगर तथा भागीरथी के लिये उत्तरकाशी में एसटीपी लगे है। बद्रीनाथ से लेकर हरिद्वार तक गंगा के किनारे 13 नगर बसे हुये हैं। उत्तराखण्ड पेयजल निगम द्वारा कराये गये एक अध्ययन के अनुसार बद्रीनाथ से लेकर हरिद्वार तक विभिन्न नगरों से प्रतिदिन लगभग 132 मिलियन लीटर सीवेज या मलजल जेनरेट होता है। इसमें से कितने सीवेज का ट्रीटमेंट होता होगा, उसकी सच्चाई बदरीनाथ का प्लांट बता रहा है।
बदरीनाथ में 19 करोड़ की लागत से बने तीन एसटीपी
यात्रा सीजन में तीर्थ यात्रियों की भारी भीड़ और अलकनन्दा के साथ ही बदरीनाथ धाम की पवित्रता को देखते हुये नमामि गंगे परियोजना के तहत एक नहीं बल्कि तीन-तीन एसटीपी 19 करोड़ की लागत से बदरीनाथ पुरी में स्थापित किये गये थे। इनमें से एक खाक चौक पर ( दशमलब 26 एमएलडी क्षमता) दूसरा खाक चौक के सामने नदी पार मानव कल्याण आश्रम के निकट ( 1 एमएलडी) और तीसरा मंदिर की सीढ़ियों के नीचे पुल के पास स्थापित किया गया है। इन तीनों में सबसे चर्चित खाक चौक वाला प्लांट है। स्थानीय लोगों को आशंका है कि प्लांट से जब दिन दहाड़े सीवेज नदी में प्रवाहित किया जा सकता है तो रात के अंधेरे में और यात्रा सीजन के बाद भी प्लांट के टैंक को नदी में खाली कराया जा सकता है।
एक हफ्ते में लोगों ने तीन बार देखी अलकनन्दा की दुर्दशा
यात्रा सीजन में बदरीनाथ में रह रहे लोगों के अनुसार गत 19 मई से लेकर 25 मई तक तीन बार “खाक चौक” पर बने 26 हजार लीटर प्रति दिन ( दशमलब 26 एमएलडी) क्षमता सीवेज ट्रीटमेंट प्लाण्ट (एसटीपी) से मलजल सीधे गंगा में प्रवाहित किये जाने के वीडियो सोशियल मीडिया में वायरल हो चुके हैं। इतनी पवित्र नदी को ऐसे पवित्र स्थान पर और स्वयं पवित्रता बनाये रखने के लिये जिम्मेदार व्यवस्था द्वारा अपवित्र किया जाना बेहद चिन्ताजनक है। प्रतिदिन हजारों की संख्या में तीर्थयात्रियों की मौजूदगी में गंगा की पवित्रता का भंग होना और भी चिन्तनीय हो जाता है।
अक्सर खराब हो जाता है सीवेज का ट्रीटमेंट प्लांट
पवित्र अलकनन्दा में एसटीपी में जमा मलमूत्र आदि गंदगी को बहाये जाने पर उत्तराखण्ड जल संस्थान के अधीक्षण अभियन्ता सुशील कुमार पूछने पर एक सप्ताह के अन्दर तीन दिन नदी में मलजल प्रवाहित करने का तो खण्डन करते हैं मगर एक दिन 19 मई को प्लांट में खराबी आ जाने के कारण सीवेज को अलकनन्दा में प्रवाहित किये जाने की पुष्टि अवश्य करते हैं। सुशील कुमार बताते हैं कि संयत्र में खराब मशीन को 19 मई को ही बदल दिया गया था और नदी में सीवेज के प्रवाह को रोक दिया गया था। अधीक्षण अभियन्ता यह भी बताते हैं कि मशीनरी का खराब हो जाना सामान्य बात है जिसे तत्काल ठीक करा दिया जाता है। लेकिन इस एसटीपी से नदी में सीवेज को प्रवाहित करने के जो तीन वीडियो वायरल हुये हैं वे 19 से लेकर 24 मई के बीच तीन अलग-अलग दिनों के हैं। जाहिर है कि जितनी बार प्लांट में गड़बड़ी होगी उतनी बार सीवेज सीधे अलकनन्दा में जायेगा।
प्रति दिन हजारों लोगों की गंदगी का दबाव
यात्रा सीजन में बदरीनाथ धाम में प्रतिदिन लगभग 15 हजार यात्री पहुंचते हैं। इनके अलावा व्यवसायी, पण्डा पुरोहित, पुलिस, प्रशासन के कर्मचारी, मंदिर समिति के कर्मचारी, नगर पंचायत के कर्मचारी और साधू सन्तों के अलावा मास्टर प्लान के सेकड़ों कर्मचारी और मजदूर वहां जमा होते हैं। जिनके मलमूत्र की निकासी इन्हीं प्लांटों तक पहंुचती है। और पावर फ्लक्चुएशन या प्लांट में खराबी आने पर गंदगी सीधे अलकनन्दा में आ जाती है।
गंगा की मुख्य धारा है अलकनन्दा
अलकनन्दा नदी देवप्रयाग से चलने वाली पतित पावनी गंगा की मुख्य जलश्रोत है। गंगा में 60 प्रतिशत जलराशि का योगदान अलकनन्दा नदी के जलागम से और 40 प्रतिशत जलराशि भागीरथी के जलागम से है। उत्तराखण्ड हिमालय पर कुल 963 प्रमुख ग्लेशियर चिह्नित किये गये हैं जिनमें 427 अलकनन्दा जलागम के हैं। बाकी 238 भागीरथी, 52 यमुना के और 250 काली नदी जलागम के है। अलकनन्दा के धार्मिक महत्व को इसी बात से समझा जा सकता है कि इसी नदी पर उत्तराखण्ड के पंच प्रयाग स्थित हैं जिन पर हर साल विशेष पर्वों पर लाखों लोग स्नान करते हैं। इसी नदी के क्षेत्र में बदरीनाथ और केदारनाथ धाम स्थित है। इसी नदी के किनारे महत्वपूर्ण नगर होने के कारण प्रदूषण का सर्वाधिक खतरा अलकनन्दा किनारे ही रहता है। इसीलिये नमामि गंगे परियोजना का फोकस इस नदी पर ज्यादा किया गया है।
अक्सर रहती है सीवेज बहाने की शिकायत
सनातन धर्मावलम्बियों के चार सर्वोच्च धामों में से एक बदरीनाथ में मलजल की बेतरतीव निस्तारण से उत्पन्न गंदगी की शिकायत पहली बार नहीं है। इससे पहले 15 जून 2018 को चेतना भरद्वाज नाम की महिला की जनहित याचिका पर नैनीताल हाइकोर्ट की जस्टिस वी.के. बिष्ट और जस्टिस अलोक सिंह की खण्डपीठ ने इसी मुद्दे को लेकर केन्द्र और राज्य सरकार को नोटिस जारी किया था। यही नहीं सन् 2005 में भी हाइकोर्ट के समक्ष यह मुद्दा उठा था।
हाइकोर्ट में जा चुका है मामला
अपनी पीआइएल में चेतना भारद्वाज ने शिकायत की थी कि बदरीनाथ मंदिर से 500 मीटर से भी कम दूरी पर अलकनन्दा नदी के किनारे मानकों की अनदेखी कर एसटीपी लगाया गया है। इसके निकट अन्न क्षेत्र आश्रम है जहां बड़ी संख्या में साधू सन्तों को भोजन कराया जाता है। जबकि वहां बदूबू फैली रहती है। चेतना ने अपनी याचिका में कहा था कि उन्होंने 6 जून 2018 को एसटीपी का दौरा किया तो वह हैरान रह गयीं। नदी किनारे एक आवासीय और धार्मिक क्षेत्र में सीवेज ट्रीटमटें प्लांट न केवल नामामि गंगे कार्यक्रम के उद्देश्य को विफल करता है अपितु वहां के निवासियों और वहां आने वाले श्रद्धालुओं के लिये तनाव और बीमारी पैदा करता है। याचिका में कहा गया है कि प्लांट को पहले मंदिर से काफी दूर जोशीमठ मार्ग पर अलकनन्दा वन्य विहार में लगाया जाना था लेकिन बाद में प्लांट खाक चौक पर लगा दिया गया।