नव निर्मित राजभवन में गृह-प्रवेश कैसे हो ?
–गोविंद प्रसाद बहुगुणा-
जब हम इंटरमीडिएट में पढ़ते थे तो हमने संस्कृत की पाठ्यपुस्तक में “भोजप्रबंध” में वर्णित एक दिलचस्प कथा पढ़ी थी कि राजा विक्रमादित्य/भोज ने अपने लिए एक नये राजभवन का निर्माण करवाया -लेकिन उसमें गृह प्रवेश से पहले ही एक ब्रह्मराक्षस घुस गया जो उसमें प्रवेश करने वालों से सवाल पूछता था और जो व्यक्ति उसका संतोषजनक उत्तर न दे पाता ,उसको वह राक्षस मार डालता था ।
-अपनी सुरक्षा की दृष्टि से राजा रोज ही एक आदमी को वहां सोने -रहने के लिए भेज देता था, जो सुबह मरा हुआ मिलता था -यह समस्या खड़ी हो गयी कि इससे कैसे छुटकारा पाया जाय ? विक्रमादित्य ने अपने सभासदों से सलाह मशविरा किया तो उन्होंने कहा कि महाराज ,लगता है कि वहां कोई विद्वान् राक्षस घुस गया है, अब उसका मुकाबला तो कोई विद्वान् ही कर पायेगा -हमारी राय है कि वहां कालिदास को भेज दीजिये वह उससे निपटने के लिए सक्षम है -दरवारियों ने सोचा अब कालिदास की छुट्टी हो गयी समझ लो बड़ा बनता था अपने को विद्वान् !! -खैर कालिदास ने इस चुनौती को स्वीकार किया और एक रात इस महल में सोने के लिए चले गये -रात्रि के पहले प्रहर में वह राक्षस प्रकट हुआ। वह व्याकरण का विद्वान निकला था , जब उसने कालिदास से सीधे पाणिनी के अष्टाध्याय से ही एक सूत्र की समस्या पर सवाल दाग दिया कि बताओ ये क्या सूत्र है -” सर्वस्य द्वे’ इति” -( सब के दो ) अब कालिदास तो कवि थे तो उन्होंने साहित्यिक दृष्टि से उत्तर दिया कि – “सर्वस्य द्वे सुमतिकुमती सम्पदापत्तिहेतू’ इति ।” राक्षस ने सोचा कि यह भी ठीक ही कह रहा है कि सब मनुष्यों में सुमति और कुमति दोनों निवास करती है -जब सुमति का प्रभाव रहता है तो मनुष्य को सम्पदा और एश्वर्य मिलता है, और जब कुमति सवार हो जाती है तो फिर उसको जीवन में आपत्ति- विपत्तियां झेलनी पड़ती हैं I
राक्षस चला गया लेकिन दूसरे पहर वह फिर प्रकट हुआ और उसने फिर एक व्याकरण के सूत्र की समस्या रख दी कि ‘वृद्धो यूना’ इति(बूढ़ों को युवा ) तो कालिदास ने फिर उसी काव्यमय अंदाज में उत्तर दिया कि- ‘वृद्धो यूना’ सहपरिचयात्त्यज्यते कामिनीभिः । इति:
इसका अर्थ हुआ कि युवा स्त्रियों को यदि कोई जवान पुरुष मिल जाय तो वे अपने बूढ़े पति को छोड़कर उसके साथ भाग सकती है –राक्षस को यह उत्तर भी पसंद आया तो वह फिर अदृश्य हो गया I
राक्षस तीसरे पहर फिर प्रकट हो गया और अपनी तीसरी समस्या रखी कि बताओ ये क्या है- ‘एको गोत्रे’ इति ? ( एक ही गोत्र में’) कालिदास ने इसका उत्तर दिया कि ” एको गोत्रे प्रभवति पुमान्यः स कुटुम्बं बिभर्ति’ इति अर्थात ‘एक ही गोत्र में उत्पन्न पुरुष ऐसा होता है, जिसके द्वारा कुटुंब का पालन-पोषण होता है I यह उत्तर भी राक्षस को पसंद आया तो वह चला गया लेकिन उसकी एक शंका फिर भी रह गयी तो रात्रि के चौथे पहर आया इस बार उसने एक अंतिम प्रश्न पूछा कि
” स्त्री पुंवच्च’ इति (स्त्री यदि पुरुष की तरह हरकत करे ) कालिदास ने इसका जबाब दिया कि ” स्त्री पुंवच्च’ प्रभवति यदा तद्धि गेहं विनष्टम्’ अर्थात जिस घर में स्त्रियां फ़ोंसा बनने की कोशिश करती है तो उस घर की बर्बादी निश्चित है ”
राक्षस इन सभी उत्तरों से संतुष्ट हुआ और वह अन्तत: कालिदास के सामने प्रकट होकर प्रसन्नतापूर्वक बोला – मैं तुम्हारी विद्वता से प्रभावित हुआ । अस्तु, मांगो मैं आपको क्या दूँ ? आपकी क्या इच्छा है ? -कालिदास ने कहा -महाराज! मुझे कुछ नहीं चाहिए , बस आप मेहरबानी करके इस घर को खाली कर दीजिये I ब्रह्म राक्षस ने राजभवन खाली कर दिया।
इस कथा प्रसंग के कई अर्थ हो सकते हैं लेकिन वर्तमान सन्दर्भ में सोचें तो नवनिर्मित संसद भवन के उद्घाटन होने के बाद भी उसमें मानसून सत्र का शुभारम्भ नहीं हो सका -कहीं यहां भी सवाल पूछने वाले उस राक्षस की आत्मा तो नहीं भटक रही ? शायद इसलिए सिक्योरिटी की गहन जांच हो रही है,बताई जाती है,ऐसा कुछ अखबारों में खबर पढ़ी थी !!
GPB