पेट्रोल डीज़ल सस्ता कैसे होगा ?
The oil marketing companies (OMCs) have to recoup Rs 18,000 crore in accumulated losses owing to high crude prices in the past quarters, so petrol and diesel prices may not fall anytime soon in India, according to CNBC-TV18 report.
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पिछले 20 महीने से पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमत जस की तस है. सूत्रों के हवाले से ख़बर आयी है कि सरकार पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतें घटा सकती हैं. हिसाब किताब आज पेट्रोल और डीज़ल का. इसकी क़ीमत कैसे तय होती है? सरकार का रोल क्या होता है?
पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमत सरकार को तय करते हुए क़रीब 50 साल हो गए. 1973 में इस्लामिक देशों ने तेल संकट खड़ा कर दिया था. कच्चे तेल का उत्पादन घटा दिया था. पूरी दुनिया में क़िल्लत हो गई थी. भारत सरकार ने तेल कंपनियों को सरकारी बना दिया. पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमत सरकार तय करने लगीं. सरकार सब्सिडी देती थीं. आम तौर पर पेट्रोल और डीज़ल बाज़ार भाव से कम मिलता था. इंडियन ऑयल, हिंदुस्तान पेट्रोलियम या भारत पेट्रोलियम जैसी कंपनियों को जो घाटा होता था वो सरकार पूरा करती थी. 2012 में यह सब्सिडी 92 हज़ार करोड़ रुपए तक पहुँच गई थी. सरकार मनरेगा मज़दूरों से ज़्यादा खर्च पेट्रोल और डीज़ल की सब्सिडी पर खर्च करती थी. 2010 में सरकार ने पेट्रोल के दाम बाज़ार के हवाले कर दिए जबकि 2014 में डीज़ल के. इसका मतलब है कि सरकार पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमतों में कोई दख़लंदाज़ी नहीं करेंगी. अब भी सरकार के मर्ज़ी के बिना दाम घटते बढ़ते नहीं है. एक बात ज़रूर हुई है कि सरकार पिछले 8 साल से पेट्रोल और डीज़ल पर कोई सब्सिडी नहीं दे रही है.
पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमत अब भी तय तो पेट्रोलियम कंपनी करती है. सरकार इनकी सबसे बड़ी शेयरहोल्डर है तो उसकी मर्ज़ी के बिना फ़ैसला नहीं हो पाता है. दिल्ली में पेट्रोल प्रति लीटर क़रीब 97 रुपये मिलता है. इसमें 57 रुपये पेट्रोल की क़ीमत है. बाक़ी 40 रुपये केंद्र सरकार, राज्य सरकार और डीलर कमीशन होता है. केंद्र सरकार क़रीब 20 रुपये एक्साइज ड्यूटी लेती है, राज्य सरकार क़रीब 16 रुपये सेल्स टैक्स VAT और क़रीब 4 रुपये डीलर को मिलता है.
केंद्र सरकार और राज्य सरकार चाहे तो टैक्स कम कर सकती है लेकिन वो अपनी कमाई का बड़ा ज़रिया खोना नहीं चाहती है. पिछले साल केंद्र और राज्य सरकारों ने पेट्रोलियम पदार्थों पर 7 लाख करोड़ रुपये से ज़्यादा टैक्स कमाया. पेट्रोलियम पदार्थों को गुड्स एंड सर्विस टैक्स के दायरे में लाने की बात हो रही है ताकि पूरे देश में पेट्रोल डीज़ल का रेट एक जैसा हो लेकिन राज्य सरकारें मान नहीं रही है. कमाई का बड़ा ज़रिया वो हाथ से जाने नहीं देना चाहती है. केंद्र सरकार भी पीछे नहीं रही है. 2014 में पेट्रोल पर एक्साइज ड्यूटी प्रति लीटर 9.48 रुपये थी जो अब क़रीब 20 रुपये है. डीज़ल पर क़रीब 4 रुपये थी और अब क़रीब 16 रुपये हैं.
अब पेट्रोल और डीज़ल की क़ीमत 4 से 6 रुपए प्रति लीटर कम करने की खबरें आ रही है. इसके दो कारण हैं. तीन महीने में लोकसभा चुनाव है. अभी दाम कम होने पर महंगाई कम होने की संभावना है. दूसरा कारण है पेट्रोलियम कंपनियों का मुनाफ़ा. JM फ़ाइनेंशियल की रिपोर्ट के मुताबिक़ प्रति लीटर मार्जिन 6.40 रुपये तक पहुँच गया है जबकि आम तौर पर यह 3.50 रुपये प्रति लीटर होता है यानी पेट्रोलियम कंपनी दाम कुछ कम कर सकती है. केंद्र सरकार भी एक्साइज ड्यूटी घटा कर और राहत दे सकती है. क़रीब 20 महीने से दाम जस के तस हैं. यहाँ यह बात नोट करना महत्वपूर्ण है कि रुस यूक्रेन युद्ध के कारण पूरी दुनिया में पेट्रोल के दाम 70% तक बढ़े लेकिन भारत में जहां के तहाँ रहें क्योंकि सरकार ने रुस से सस्ता तेल ख़रीदा. अगर यह नहीं किया जाता तो हमें भी और क़ीमत चुकानी पड़ती.